समाजसेवा फाउंडेशन के तत्वावधान में आयोजित हुआ सम्मान समारोह व कवि सम्मेलन

डॉ अनामिका जैन अम्बर सहित तमाम कवियो ने पढ़ी कवि रचनाएं

रामसनेहीघाट बाराबंकी। नववर्ष की पूर्व संध्या पर तहसील मुख्यालय स्थित जगजीवन लान परिसर में समाज सेवा फाउंडेशन(ट्रस्ट) के तत्वावधान में अखिल भारतीय विराट कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें प्रमुख कवियत्री अनामिका जैन अंबर सहित तमाम वरिष्ठ कवियों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कर लोगों को भाव विभोर कर दिया।
कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के चित्र पर दीप प्रज्वलन व पुष्पार्चन के साथ हुई, इसके पश्चात लखनऊ से पधारी कवियत्री शशि श्रेया ने मां सरस्वती की वंदना कर कवि सम्मेलन का शुभारंभ किया।

कवि सम्मेलन के सूत्रधार एवं तहसील क्षेत्र के ही निवासी युवा ओजस्वी कवि दुष्यंत शुक्ला सिंहनादी ने काव्य पाठ करते हुए कहा कविता उनके नाम लिखूं जो बारूदों पर लेटें हैं भुजदंडों में भारत का स्वर्णिम सम्मान समेटे हैं इसके उपरांत हास्य कवि विकास बौखल ने अपनी रचना पढ़ी किसी खंजर से ना तलवार से जोड़ा जाए सारी दुनिया को चलो प्यार से जोड़ा जाए ये किसी शख्स को दोबारा न मिलने पाए प्यार के रोग को आधार से जोड़ा जाए युवा कवि राम भदावर ने अपनी रचना पढ़ते हुए कहा कि मैं यह नहीं कहता कि जाकर के महामारी करो पर युद्धतम है युद्ध की पुरजोर तैयारी करो डॉ शिवा त्रिपाठी ने काव्य पाठ करते हुए कहा यह न समझो कि है बेनूहर आईना सच दिखाता है सच की डगर आईना हम भले एब अपने छुपाते रहे कुछ छुपाता नहीं है मगर आईना कार्यक्रम की प्रमुख कवयित्री अनामिका जैन अंबर ने अपनी मशहूर कविता पढ़कर श्रोताओं की खूब तालियां बटोरी जहां पर सच दया सम्मान और इनाम रहता है वही जाकर वह अल्लाह और वह भगवान रहता है अगर तूने निकाला है किसी के पांव का कांटा तो यह तय है तेरे दिल में कोई इंसान रहता है कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि रामेश्वर प्रसाद द्विवेदी प्रलयंकर ने अपनी कविता पढ़ते हुए कहा कि नए वर्ष के पूर्व दिवस पर काव्य सुमन की माला सिसोदिया आशीष सिंह ने संगम रचा निराला यह मृगेश की धरा यही नादान लोक हरसाए शंकर और बृजलाल भट्ट शर्मा जी धूम मचाए कार्यक्रम के अंतिम दौर में समारोह का संचालन कर रहे राम किशोर तिवारी “किशोर” ने भगवान राम पर एक कविता पढ़कर उपस्थित श्रोताओं में नया जोश पैदा कर दिया राम की छवि हृदय में उतारा करूं रूप सुंदर सलोना निहारा करूं कामना बस यही है जनम दर जनम मैं सिया राम के पग पखारा करूं

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