लिव इन रिलेशनशिप के लिए पंजीकरण अनिवार्य

देहरादून: समान नागरिक संहिता कानून लागू करने वाला उत्तराखंड पहला राज्य बन गया है। 13 मार्च 2024 बुधवार को राष्ट्रपति ने नागरिक संहिता विधेयक को मंजूरी दे दी है। इस कानून में लिव इन रिलेशनशिप के लिए भी कई नियम बनाए गए हैं। जिनका पालन न करने पर जेल हो सकती है और जुर्माना देना पड़ सकता है। आइए जानते हैं इनके बारे में…

लिव इन रिलेशनशिप का पंजीकरण अनिवार्य

समान नागरिक संहिता कानून का तीसरा खंड सहवासी (लिव इन रिलेशनशिप) पर केंद्रित किया गया है।

इसमें लिव इन रिलेशनशिप के लिए पंजीकरण अनिवार्य किया गया है।

यह स्पष्ट किया गया है कि इस अवधि में पैदा होने वाला बच्चा वैध संतान माना जाएगा। उसे वह सभी अधिकार प्राप्त होंगे, जो वैध संतान को प्राप्त होते हैं।

इसमें निषेध डिग्री के भीतर वर्णित संबंधों को लिव इन में रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

यह उन पर लागू नहीं होगा, जिनकी रूढ़ी और प्रथा ऐसे संबंधों में उनके विवाह की अनुमति देते हों। यद्यपि ऐसी रूढ़ी और प्रथा लोकनीति और नैतिकता के विपरीत नहीं होनी चाहिए।

युगल में से किसी एक पक्ष के नाबालिग होने अथवा विवाहित होने की स्थिति में लिव इन की अनुमति नहीं दी जाएगी।

लिव इन संबंध कोई भी पक्ष समाप्त कर सकता है। यद्यपि, इस स्थिति में उसे संबंधित क्षेत्र के निबंधक को जानकारी उपलब्ध करानी होगी। साथ ही दूसरे सहवासी को भी इसकी जानकारी देनी होगी।

राज्य के भीतर लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले चाहे उत्तराखंड के निवासी हों अथवा नहीं, उन्हें निबंधक के पास अनिवार्य रूप से पंजीकरण कराना होगा।

पंजीकरण के बाद निबंधक सबंधित युगल को इसका प्रमाणपत्र जारी करेगा। इसके आधार पर संबंधित युगल किराये पर घर, हास्टल अथवा पीजी में रह सकेगा।

लिव इन में रहने वालों में से यदि किसी एक की उम्र 21 वर्ष से कम होने पर इसकी सूचना उसके माता-पिता एवं अभिभावकों को निबंधक द्वारा दी जाएगी।

यही नहीं, यदि कोई युगल संबंध विच्छेद करता है तो इसका भी उसे पंजीकरण कराना होगा।
सजा व जुर्माना, दोनों का प्रविधान

लिव इन में पंजीकरण न कराने पर अधिकतम तीन माह का कारावास और 10 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रविधान है।

वहीं गलत जानकारी देने अथवा नोटिस देने के बाद भी जानकारी न देने पर अधिकतम छह माह के कारावास अथवा अधिकतम 25 हजार रुपये जुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं।

यदि कोई पुरुष महिला सहवासी को छोड़ता है तो महिला सहवासी उससे भरण पोषण की मांग कर सकती है।

विधेयक में लिव इन के लिए अलग से नियम बनाने के लिए राज्य सरकार को अधिकृत किया गया है।

6 फरवरी को सीएम धामी ने पेश किया था विधेयक
बता दें कि 6 फरवरी 2024 को विधानसभा में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड-2024 विधेयक पेश कर दिया था। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा सदन में पेश किए गए विधेयक में 392 धाराएं थीं, जिनमें से केवल उत्तराधिकार से संबंधित धाराओं की संख्या 328 थी।

महिला अधिकारों पर केंद्रित था विधेयक
विधेयक में मुख्य रूप से महिला अधिकारों के संरक्षण को केंद्र में रखा गया है। कुल 192 पृष्ठों के विधेयक को चार खंडों विवाह और विवाह विच्छेद, उत्तराधिकार, सहवासी संबंध (लिव इन रिलेशनशिप) और विविध में विभाजित किया गया है।

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