पीड़ित की शिकायत पर मुकदमा लिखने से कन्नी काट रही रामनगर पुलिस

दस माह बाद कोर्ट के आदेश पर जगा पुलिस महकमा, पीड़ित की दिखी न्याय की आस

बाराबंकी। जिले में रामनगर थाने पर एफआईआर दर्ज कराना ही पीड़ितों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं माना जा रहा है। आम तौर पर पुलिस एफआईआर दर्ज करने को जल्दी तैयार नहीं होती। जिसके बाद पीड़ितों को अधिकारियों या फिर कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। हालांकि जिले के पुलिस अधिकारियों का कहना है कि पीड़ितोें की एफआईआर तत्काल दर्ज कराने के साथ ही कार्रवाई की जाती है। साथ ही जिले में सभी थानों पर कंप्यूटरीकृत एफआईआर दर्ज करने का काम भी किया जा रहा है। इसके बावजूद रामनगर थाने में 10 माह पहले पीड़ित की दी गई शिकायत पर कोई कार्यवाई नहीं हुई। यही नहीं पंजीकृत डाक से थानाध्यक्ष, क्षेत्राधिकारी समेत पुलिस अधीक्षक को शिकायत भेजने के बाद भी पुलिस महकमा नहीं चेता। अंत में थक हार कर पीड़ित को न्यायालय की शरण में जाना पड़ा। न्यायालय ने प्रकरण पर गंभीरता से लेते हुए पुलिस अधीक्षक से जवाब मांगा है। बताते चले कि रामनगर थाना क्षेत्र के ग्राम नथना पुर में दिनांक 22 जून 2023 को दिनेश पुत्र भगौती प्रसाद ने पुश्तैनी भूमि पर दबंगों द्वारा कब्जा करने और खेत की मिट्टी खोदने की शिकायत थानाध्यक्ष से की थी।

पुलिस ने इस मामले में आरोपी मो इश्तियाक पुत्र मो उमर, मो इब्राहिम पुत्र अब्दुल हई, मो इकबाल, मो इसरार, मो एहसान पुत्रगण इरफान निवासी भवानी गंज भैसुरिया और रामनिवास पुत्र ब्रजलाल निवासी कटका व राजेश कुमार पुत्र राम गुलाम निवासी करौली, भिखारी पुत्र सुकई, मरजी राम पुत्र भगौती व रमेश पुत्र श्रीराम निवासी नाथनापुर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने में हीलाहवाली की। जिसके बाद पीड़ित दिनेश ने पुलिस अधीक्षक से शिकायत की। लेकिन उनकी शिकायत पर कोई कार्यवाई नहीं हुई। बाद में पीड़ित के अधिवक्ता बलराम सिंह ने धारा 156 (3) के अंतर्गत न्यायालय वाद प्रस्तुत किया। जिस प्रकरण में सुनवाई करते हुए एसीजीएम कोर्ट 11 के न्यायधीश ने पुलिस अधीक्षक से जवाब मांगा है। जबकि पीड़ितों की न्यायिक लड़ाई लड़ने वाले अधिवक्ता बलराम सिंह ने कोर्ट के समक्ष ऐसे तथ्य रखे जिसे सुनकर न्यायालय ने पुलिस की कार्यशैली पर चिंता व्यक्त की। बलराम सिंह ने बताया कि पीड़ित की दबंगों के खिलाफ शिकायत के बाद भी पुलिस ने इस मामले में रिपोर्ट दर्ज नहीं की। जिसके बाद पीड़ित युवक ने कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया था। इसके करीब 10 माह बाद न्यायालय के आदेश पर पुलिस ने मामले में कार्रवाई की। जबकि श्री सिंह ने उक्त प्रकरण में भारतीय दंड संहिता की धारा 329 का हवाला देते हुए कहा कि उक्त दबंग व्यक्तियों पर दंडात्मक कार्यवाही की जानी चाहिए। साथ ही पुलिस की कार्यशैली भी संदेहास्पद रही है। पुलिस ने अन्याय की पराकाष्ठा को तार तार कर दिया है। एक पीड़ित पिछले 10 माह से न्याय की मांग के लिए प्रशासन से गुहार लगा रहा है। और पुलिस किसी अप्रिय घटना के इंतजार में अंजान बनी रही।

अफसरों के यहां भाग दौड़ करते पीड़ित
पुलिस थानों पर रिपोर्ट दर्ज न होने की दशा में पीड़ित अफसरों के यहां चक्कर लगाते है। इसके साथ ही पुलिस विभाग में पीड़ितोें की सुनवाई के लिए शिकायत प्रकोष्ठ भी बना हुआ है। यहां पर एक इंस्पेक्टर तैनात हैं जो डाक या अन्य माध्यम से आने वाले शिकायती प्रार्थना पत्रों पर कार्रवाई के लिए संबंधित अधिकारियों व थानों में भेजते है। जबकि थानों पर मुकदमा लिखने से कन्नी काटने वाली पुलिस कोर्ट में मामला पहुंचने पर त्वरित कार्रवाई करती है। हालांकि कोर्ट के आदेश पर बहुत सारे फर्जी मामलों में भी पुलिस को एफआईआर लिखना पड़ जाता है।

सभी थाने हैं कंप्यूटरीकृट
जिले के 23 थानों में इस समय कंप्यूटर पर ऑनलाइन एफआईआर दर्ज करने का काम किया जा रहा है। प्रत्येक थानों मेें जहां इंटरनेट की बेहतर व्यवस्था है। वहीं बिजली के लिए जनरेटर भी लगाए गए हैं। लगभग सभी मामलों में पुलिस द्वारा कंप्यूटरीकृत एफआईआर ही लिखी जाती है। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 24 घंटे में एफआईआर अधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड करने के संबंध में भी कार्य शुरू किया गया है। प्रत्येक थानों में जहां कंप्यूटर सिस्टम उपलब्ध है वहीं कम्प्यूटर ऑपरेटर भी तैनात किए जा रहे हैं।

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