बाराबंकी, लखनऊ मरकज के माथे पर इंदूरी बिंदी रहा है। अदब में, सियासत में, सामाजिक समरसता में यह बसावट आज भी अपनी जिंदादिली लिए तन कर खड़ा है। इस जमीन से उठ कर देश भर के नौजवानों के बीच छा गए एक शख्सियत का नाम है राजनाथ शर्मा। 80 साल का यह चिर युवजन आज भी लोगो के हक और हुक़ूक़ के लिए उनका अलम्बरदार है। गांधी लोहिया की दी हुई सीख पर खड़े राजनाथ शर्मा की सियासी जिंदगी घर मकान की कभी भी बंधक नही रही, इस शख्स को मोहब्बत थी सत्ता से टकराने की, सड़क गर्म करने की, जेल काटने की।
राजनाथ शर्मा समाजवाद के अभिलेखागार हैं। अगर आप समाजवाद को जानना समझना चाहते हैं। तो उन्हें खंगालना पड़ेगा। वो वह जिन्दा कौम है जो पांच साल इन्तजार नही करती। राजनाथ जी जब सत्ता में रहते हैं। तब भी सडक पर संघर्ष के हिमायती है। भाषा में भदेस राजनाथ जी के राजनीति में दोस्त कम दुश्मन ज्यादा है। क्योंकि कबीर की तरह लुकाठी हाथ में लेकर सच कहने का उनमें बूता है। इसलिए बारी बारी में सभी समाजवादियों ने सत्ता का स्वाद चखा। पर शर्मा जी अस्सी बरस से सत्ता के हाशिए पर ही बैठे रहे। खादी राजनाथ जी का वस्त्र है और गांधी विचार। सिविल नाफरमानी के वह योद्धा हैं। ना मानेंगे ना मारेंगे उनके जीवन का सूत्र है। जब भी उनके समाजवादी दोस्त सत्ता में आए और दोस्तों को मुगालता हुआ कि वे सरकार हैं। तो राजनाथ शर्मा उनके खिलाफ भी खड्गहस्त हुए। इसलिए वे हमेशा सड़क पर रहे। यहीं जज्बा उन्हें दुर्लभ और विकट समाजवादी बनाता है।
छात्र जीवन से शुरू हुआ समाजवादी सफर अपने अस्सी बसंत की शुरूआत तक चिरयुवा बना हुआ है। साल 1944-45 के चैत्र मास की तेरस को माता राम कुमारी जी और पिता पं गोकुल प्रसाद शर्मा के घर राजनाथ शर्मा का जन्म हुआ। पिता की सामाजिक गतिविधियों में सक्रियता के चलते वह बचपन से ही समाजवादी विचारधारा से जुड़ गए। आजादी के बाद 1952 में हुए पहले आम चुनाव में राजनाथ शर्मा के परिवार के एक वरिष्ठ सदस्य स्व. डॉ राम अभिलाष शर्मा स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े। उनका चुनाव निशान तराजू था। इस चुनाव में नन्हें राजनाथ शर्मा बैलगाड़ी पर बैठकर लाउड स्पीकर से भीड़ जुटाने का काम करते थे। कुछ समय बाद पढ़ाई के लिए बाराबंकी आ गए। जहां उन्होंने जिला छात्र संघ नामक संगठन बनाया और छात्रों की समस्याओं की लड़ाई शुरू की। कुछ समय बाद नगर पालिका के अध्यक्ष रहे बाबू राम सिंह, जिन्हें बाराबंकी का आयरन मैन कहा जाता था। 15 अगस्त के जलसे में कुछ विद्यार्थियों पर नगर पालिका के कर्मचारी और सदस्यों ने अभद्र व्यवहार किया। इसको लेकर राजनाथ शर्मा ने एक आंदोलन चलाया। जिसमें उन्होंने मांग रखी कि नगर पालिकाध्यक्ष बाबू राम सिंह सार्वजनिक माफी मांगे। तब यह आंदोलन खत्म होगा। इस अन्दोलन में छात्रों के साथ-साथ आमजन का भी जुड़ाव होने लगा। तब देर रात घंटाघर पर जुटी को सम्बोधित करने बाबू राम सिंह आए और सार्वजनिक माफी मांगी।
उन्नीस साल की उम्र में वे जेल इसलिए गए कि डा. लोहिया के नेतृत्व में वे किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम दिलाना चाहते थे। फिर बीस बरस की उम्र में वे जेल इसलिए गए कि अंग्रेजी हटाना चाहते थे। क्योंकि वे चाहते थे कि गॉधी लोहिया की अभिलाषा, चले देश में देश की भाषा। तीसरी बार राजनाथ जेल गए ‘सोशलिस्टों ने बांधी गांठ पिछाड़ पावें सौ में साठ’ इस उद्घोष के साथ। जीवन में अब तक राजनाथ जी का दूसरा ठिकाना जेल बन गया।
डा राममनोहर लोहिया से समाजवाद का पाठ सीखने वाले श्री शर्मा गांधी के विचारों का अनुसरण कर देश व समाज में सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह का परचम आज तक लहरा रहे हैं। इस मार्ग पर चलते हुए उन्हें अनेक बार जेल जाना पड़ा। हिन्दी आन्दोलन रहा हो, किसानों की समस्या रही हो या आपातकाल का विरोध रहा हो, अन्याय और शोषण के विरूद्ध राजनाथ शर्मा खुद संघर्ष करते नज़र आते हैं।
सन् 1965 में राजनाथ शर्मा नें डा. लोहिया के निर्देश पर भारत, पाकिस्तान, बंग्लादेश का महासंघ बनाने का आन्दोलन शुरू किया। इस सपने को धरातल पर उतारने का उनका प्रयास आज भी जारी है। आज भी वह देश में बढ़ती हुई असहिष्णुता और साम्प्रदायिकता के विरोध में अनेक आयोजन करते रहते हैं। राजनाथ शर्मा ने समय-समय पर जनसरोकार से जुड़े मुददों को शासन एवं प्रशासन के सामने रखा। उन्होंनें आमजन के बीच पैदा होने वाली प्रमुख समस्याओं से भी सरकारों को चेताया है। राजनाथ शर्मा द्वारा सरकार से जुड़ी स्वच्छता, पेयजल, जल संचयन, पर्यावरण संरक्षण जैसी अति महत्त्वपूर्ण योजनाओं में भी सार्थक भूमिका अदा की गई है। जनपद बाराबंकी ही नहीं अपितु कई अन्य जनपदों एवं प्रांतों में भी वह किसानों, गरीबों, मजदूरों एवं नौजवानों के हितार्थ लगातार आन्दोलन करते रहते हैं। फिर भी उनका व्यक्तित्व अत्यन्त मधुर एवं सरल स्वभाव का है।
राजनाथ शर्मा विगत पांच दशक से गांधी जयन्ती समारोह ट्रस्ट के माध्यम से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन दर्शन, मद्यनिषेध, कौमी एकता एवं स्वदेशी स्वालम्बन पर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने बाराबंकी जनपद में एक गांधी भवन की स्थापना की है। यह आज सम्पूर्ण जनपद का एकाकी वैचारिक केन्द्र है जहां गांधीवाद से लेकर समाजवाद, राष्ट्रवाद से लेकर वैश्वीकरण तक राष्ट्र, समाज, केन्द्र, अर्थव्यवस्था की चर्चाएं भारतीयता के मूल बिन्दु से होकर गुजरती हैं। तमाम जन आन्दोलनों में उन्होनें कड़कड़ाती ठण्ड, तेज बारिश और चिलचिलाती धूप के बीच भी अगुवाई की है। अपने उम्र के सातवें दशक में आज भी राजनाथ शर्मा पूर्ण रूपेण ऊर्जावान एवं राष्ट्रोन्मुख विचारधारा से ओतप्रोत हैं जो कि नई पीढ़ी के लिए एक आदर्श मानक हैं।
वर्तमान समय में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों, उनके आदर्शों को समाज में पूर्ण जागरूकता के साथ अगर किसी ने सबके सम्मुख उपस्थित करने का प्रयत्न किया है तो वह केवल और केवल राजनाथ शर्मा ही हैं। भीड़ और अंधेरे से, प्रचार और आत्म-लाघा से दूर रहने वाले श्री शर्मा ने व्यक्तिगत लाभ को सदा दूर रखा। उच्चस्थ राजनीतिक पहुंच एवं पकड़ होने के बावजूद कभी भी राजनाथ शर्मा कुर्सी की ओर मुखर नहीं हुए। उनका मानना है कि समाज एवं राष्ट्र की प्रगति में हम सब भागीदार हैं। समाज में आगे बढ़ने का अधिकार जितना अमीरों को है, उतना ही गरीबों को भी है। समाजवाद का असली तात्पर्य संतति एवं सम्पत्ति का मोह त्यागना है। हमेशा अपने कर्म पर विश्वास रखने वाले राजनाथ शर्मा ने देश एवं समाज में व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध सदा ही संघर्ष किया है। वह जय पराजय, हानि लाभ से परे रहकर अन्याय और शोषण के प्रति सदैव ही संघर्षशील रहें हैं।
वर्तमान समय में, राजनाथ शर्मा द्वारा भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश का महासंघ बनाओ, जल संचयन, जाति तोड़ो, दाम बांधो, हिमालय बचाओ, हिन्दी आन्दोलन आदि तमाम विषयों पर वृहद् स्तर पर कार्य किये जा रहे हैं। उम्र में वैदिक आयु सीमा के पार पहुंचने वाले राजनाथ शर्मा उम्र के इस पड़ाव में भी सृजन के विविध आयामों को पार करते हुए उषा और संध्या के मानिंद संयुक्त त्वरा से गतिशाल हैं। वैदिक ऋषि के चरैवेति चरैवेति एवं जिजिविषा वादी सिद्धान्त को आत्मसात् करने वाले राजनाथ शर्मा शुभान् ते पंथाः के साथ आत्म दीपो भव की प्रतिमूर्ति बनें रहें।
पाटेश्वरी प्रसाद
(लेखक के स्वयं के विचार है)