झाँसी। ट्रेन की लेटलतीफी और दुर्घटना की आशंका को खत्म करने के लिये झाँसी के करारी से चिरुला और चिरुला से दतिया के बीच रेलवे ट्रैक को ऑटोमैटिक सिग्नल प्रणाली से लैस कर दिया है। इस सिस्टम लगने से अब कई ट्रेन एक ही ट्रैक पर आसानी से चल सकेंगी।
इस प्रणाली से बेधड़क ट्रेन दौड़तीं नजर आएंगी
धौलपुर से बीना के बीच सेक्शन में यह प्रणाली लगाने पर काम चल रहा है। इस प्रणाली से दुर्घटनाओं की आशंका पूरी तरह से खत्म होने का दावा किया गया है। अभी तक लीवर प्रणाली से ट्रेन को कण्ट्रोल किया जाता था। एक ट्रेन जब तक दूसरे स्टेशन तक नहीं पहुँच जाती थी, स्टेशन मास्टर का सन्देश न मिलने पर ट्रेन को कहीं भी खड़ा कर दिया जाता था। इस प्रणाली से बेधड़क ट्रेन दौड़तीं नजर आयेगीं।
करारी से चिरुला और चिरुला से दतिया सेक्शन में ऑटोमेटिक सिग्नलिंग प्रणाली की शुरूआत हो चुकी है। दिल्ली-मुम्बई सबसे व्यस्त रूट है। झाँसी स्टेशन में प्रवेश करने से पहले सिग्नल न मिलने के कारण ट्रेन दतिया, चिरुला और झाँसी स्टेशन के आऊटर पर आकर रुक जाती हैं। कई ट्रेन आधे घण्टे से अधिक तक फँसी रहती हैं।
ट्रेन बगैर किसी बाधा के आसानी से चल सकेगी
ऑटोमैटिक सिग्नल प्रणाली शुरू हो जाने से करारी से चिरुला और चिरुला से दतिया के बीच यह प्रणाली लगने से ट्रेन खड़ी नहीं होगी। रेल अधिकारियों के मुताबिक ऑटोमेटिक सिग्नलिंग प्रणाली बिना किसी अतिरिक्त स्टेशनों के निर्माण और रखरखाव के साथ ही ज्यादा से ज्यादा ट्रेन चलाने को प्रमुख जंक्शन स्टेशन के ट्रैफिक को नियन्त्रित करने में मदद करता है। इसके चलते एक ही पटरी पर एक के पीछे एक ट्रेन बगैर किसी बाधा के आसानी से चल सकेगी।
7 से 8 मिनट में ही दूसरी ट्रेन चलाई जा सकेगी
एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन के बीच की दूरी 12 से 15 किलोमीटर तक होती है। ट्रेन को यह दूरी तय करने में 15 मिनट का समय लगता है। पहले गई ट्रेन के पीछे 15 मिनट के बाद दूसरी ट्रेन चलाई जाती है। रेलवे इस समय को कम कर 7 से 8 मिनट करने जा रहा है। बीच के सिग्नल को पार करते ही पीछे से दूसरी ट्रेन चला दी जाएगी। इससे 15 मिनट के स्थान पर 7 से 8 मिनट में ही दूसरी ट्रेन चलाई जा सकती है।
अभी हर 10 मिनट में चलती है ट्रेन
वर्तमान में दिल्ली-मुम्बई ट्रैक पर ट्रेन का आवागमन ज्यादा है। झाँसी मुख्य स्टेशन है। यहाँ से कानपुर, इलाहाबाद, मुम्बई, दिल्ली समेत चारों दिशाओं के लिये हर समय ट्रेन का आवागमन होता है। साथ ही इस ट्रैक पर वन्दे भारत, गतिमान एक्सप्रेस, राजधानी समेत शताब्दी एक्सप्रेस भी दौड़ रही है। उसके अनुसार हर 10 मिनट में एक ट्रेन चलती है। इससे 1 ट्रेन की दूसरी ट्रेन से दूरी कम से कम 10 किलोमीटर की होती है या फिर एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन जितनी।
वन्दे भारत, गतिमान एक्सप्रेस, राजधानी समेत शताब्दी एक्सप्रेस जैसी प्रीमियम ट्रेन के लिये तीन स्टेशन तक ट्रैक को खाली रखा जाता है। इस दौरान अन्य मेल-एक्सप्रेस, पैसिंजर और मालगाड़ी को लूप लाइन पर खड़ा करके निकाला जाता है। जब यह ट्रेन अगले स्टेशन पर पहुँच जाती है, फिर अन्य ट्रेन को निकाला जाता है।
डेढ़ किलोमीटर में लगे हैं सिग्नल
ऑटोमेटिक सिग्नल प्रणाली पूरी तरह कम्प्यूटराइज्ड है। स्टेशन यार्ड से लगभग डेढ़ किलोमीटर पर एडवान्स स्टार्टर सिग्नल लगाया गया है। सिग्नल के जरिए ट्रेन स्टेशन यार्ड में प्रवेश करते ही स्टेशन मास्टर को सूचना दे देती है। आटोमेटिक सिग्नल प्रणाली की खासियत यह भी है कि एक ट्रेन दूसरे ट्रेन के पीछे चलती रहती है और यदि कोई तकनीकी खामी आई तो पीछे चल रही ट्रेन को सूचना मिल जाएगी, इससे जो ट्रेन जहाँ है, वहीं पर खड़ी हो जाएगी। इससे दुर्घटना की सम्भावना काफी कम हो जाएगी।