आद्य पत्रकार देवर्षि नारद की पत्रकारिता में उपादेयिता

पत्रकारिता जगत में आद्य पत्रकार भगवान देवर्षि नारद की जयंती ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया पत्रकारिता दिवस के रुप में मनाई जाती है। देवर्षि नारद का नाम सुनते ही हम सभी के मन में नारद जी से संबंधित संवाद शैली, उनके जन कल्याण के कार्य और उनके द्वारा निरन्तर श्री हरि नारायण नाम जप मानस पटल पर अंकित हो जाता है। कालांतर में भारत के महापुरूषों को बदनाम करने के उद्देश्य से आततायियों, परकियों ने मनमाने ढंग से उन्हें परिभाषित किया, उसी श्रृंखला में देवर्षि नारद का भी नाम आता है। सनातन विरोधियों ने देवर्षि नारद को बदनाम करने के उद्देश्य से उन्हें चुगुलखोर, विदूषक जैसे निरर्थक शब्दों से अपमानित कर भारत की ज्ञान परम्परा व पत्रकारिता जगत को अपमानित करने का घृणित कार्य किया है। जबकि वास्तविक कुछ और है।

विश्व गुरु की पदवी से अलंकृत हो चुके भारत देश के धर्म ग्रंथ, वेद , उपनिषद आदि में निहित व्यक्तित्वों में हमारे जीवन के हर पहलू का समाधान छुपा है जरूरत है इसे समझने की और उसमें दिखाए मार्ग पर चलने की। हमारे शास्त्रों में ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक देवर्षि नारद को भगवान का “मन” कहा गया है। यही कारण है कि उन्हें सभी युगों में, सभी लोकों में, समस्त विद्याओं में और समाज के सभी वर्गों में सदैव महत्वपूर्ण स्थान मिला। नारद ने धर्म, न्याय, लोक कल्याण, लोक मंगल, लोक हित के संरक्षण का कार्य किया। उनके इन गुणों के कारण देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों- राक्षसों ने भी उन्हें सम्मान और आदर दिया।

आधुनिक समय में आम तौर पर यदि कोई दो लोगों के बीच लड़ाई कराये तो उसे हम ‘नारद मुनि’ की उपाधि देते है। लेकिन नारदजी की नीयत हमेशा साफ होती है। वे परोपकारी एवं जनउद्धारक हैं। वे जो कुछ भी करते हैं प्रभु की इच्छा अनुसार ही करते हैं, कभी बदले की भावना या कभी किसी को नुकसान पहुंचाने की भावना से नहीं करते। जन-जन का कल्याण ही उनकी इच्छा होती है। सकारात्मकता, सज्जनता एवं परोपकार उनका मुख्य ध्येय होता है। देवर्षी नादर निरंतर तीनों लोकों में घूम- घूम कर जन कल्याण की सूचनाओं का आदान प्रदान करते थे उनकी पत्रकारिता निष्पक्ष, लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित, सत्य के मापदंडों पर निर्धारित होती थी किन्तु वर्तमान परिदृश्य में जहां तक मीडिया का सवाल है इसे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का दर्जा प्राप्त है परंतु इसे विडंबना ही कहेंगे कि आज मीडिया पर अनेक प्रकार के आरोप लगते हैं कहीं यह कहा जाता है की मीडिया अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए निष्पक्ष खबरों का प्रसारण नहीं करता यह भी कहा जाता है कि अपनी प्रसार संख्या बढ़ाने के लिए मीडिया राष्ट्रहित को अहमियत नहीं देता इसके अलावा मीडिया पर जनकल्याण मानवीय संवेदनाओं को दरकिनार करके नकारात्मक भाव से कार्य करने के आरोप भी लगते रहते हैं।

ऐसी स्थिति में आदर्श पत्रकारिता कैसी हो पत्रकार और मीडिया संस्थान आखिर किसे अपना आदर्श मानकर कार्य करें यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। वर्तमान में इन्टरनेट मिडिया आ जाने से जन संचार व संवाद के नए – नए आयाम स्थापित हुए हैं जैसे सोशल मीडिया के अन्तर्गत फेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, यूट्यूब, जैसे बहुत सारे नए प्लेटफार्म आ जाने से कोई भी संचार द्रुति गति से पहुंचने के साथ ही आराजक तत्वों द्वारा बहुत सारे फेक अकाउंट के माध्यम से गलत समाचार प्रसारित कर समाज में षड्यंत्र के उपक्रम किए जाते हैं इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आज की इस पत्रकारिता दौर में चुनौतियां बढ़ी हैं । इस सवाल के जवाब के लिए भारतीय धर्म ग्रंथों में देवर्षि नारद का व्यक्तित्व और कृतित्व हमारे लिए खास करके मीडिया जगत के लिए आदर्श कहा जा सकता है। देवर्षि नारद का व्यक्तित्व बहु आयामी था। महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय में नारद को देवों में पूज्य, वेद, उपनिषदों के मर्मज्ञ, इतिहास – पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों को जानने वाले, नीतिज्ञ, मेधावी, भाषा, व्याकरण, आयुर्वेद और ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के ज्ञाता, योगबल से समस्त लोकों की गतिविधियां जानने में समर्थ कहा गया है। आदि पत्रकार नारद की पत्रकारिता अध्यात्म पर आधारित थी। उन्होंने स्वार्थ, लोक एवं माया के स्थान पर हमेशा परमार्थ को श्रेष्ठ माना।

उन्होंने ध्रुव को तपस्या तथा ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग बताया। प्रह्लाद को भी भक्ति एवं अध्यात्म का उपदेश करके आसुरी शक्तियों के समापन में सहयोग प्रदान किया। आदि पत्रकार नारदजी ने वर्तमान के पत्रकारों के लिए जो मानक रखे हैं, उनका भी विवेचन आवश्यक है। उन्होंने माया के ज्ञान के लिए एक बार स्त्री का रूप धारण किया। यह उनकी अनुभवात्मक पत्रकारिता व्यवहार का श्रेष्ठ उदाहरण है। उन्होंने मृत्यु का भी जीवनवृत्त लिखा है, जो दुनिया में अन्यत्र नहीं है। कलियुग में भक्ति को दिए वरदान के परिणामस्वरूप भक्ति के प्रचार के लिए भक्तिसूत्र भी लिखा।

उपरोक्त आधार पर हम यह कह सकते हैं कि आद्य पत्रकार देवर्षि नारद की पत्रकारिता के क्षेत्र में उनकी उपादेयता अतुलनीय है। इसी कारण नारद जी को सृष्टि का पहला पत्रकार माना जाता है। इस लोक से उस लोक तक की परिक्रमा, सर्वत्र भ्रमण, सतत, सजग और जीवन्त संवाद उनके पत्रकारिता धर्म का प्रत्यक्ष प्रमाण है। उनकी पत्रकारिता में मानव मात्र का लोक कल्याण, लोक हित और लोक मंगल का दर्शन है। अपने संवाद से सेतु अर्थात् सभी को जोड़ने का काम करने वाले पत्रकारिता के पितृ पुरुष देवर्षि नारद के मूल्यों को आज की पत्रकारिता के सन्दर्भों में देखें तो आत्म मंथन की आवश्यकता है। मीडिया की भूमिका वर्तमान परिवेश में कैसी हो, किन मूल्यों पर आधारित हो और मुद्दे क्या हों? इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढते समय हमको सबसे पहले भारत, भारतीयता और राष्ट्रीयता को प्राथमिकता देनी होगी साथ ही सकारात्मकता, परिश्रम, संवेदना, जन कल्याण की भावना जैसे गुणों का संवर्धन को जीवन का हिस्सा बनाना होगा।
बालभास्कर मिश्र
स्तम्भ लेखक

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