प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में आज शनिवार को भावुक कर देने वाला नजारा देखने को मिला वायरल हो रहा वीडियो

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में आज शनिवार को भावुक कर देने वाला नजारा देखने को मिला. पीएम मोदी रैली को संबोधित करने मंच पर पहुंचे तो मडिगा रिजर्वेशन पोराटा समिति (एमआरपीएस) के प्रमुख मंदा कृष्णा मडिगा भावुक हो गए. प्रधानमंत्री ने भावुक नेता की पीठ थपा-थपाकर उन्हें संबल दिया. इस सियासी घटनाक्रम का वीडियो अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है.

फूट-फूटकर रोने लगे मडिगा

तेलंगाना विधानसभा चुनाव को लेकर पीएम मोदी आज हैदराबाद के सिकंदराबाद में थे. पीएम मोदी के साथ मडिगा ने भी मंच साझा किया. इस दौरान एक पल ऐसा आया कि मडिगा भावुक हो गए. अगले ही पल पीएम मोदी ने उनका हाथ पकड़कर उन्हें सांत्वना दी. बता दें कि एमआरपीएस तेलुगु राज्यों में अनुसूचित जाति के महत्वपूर्ण घटकों में से एक है. यह रैली भी एमआरपीएस द्वारा आयोजित की गई थी.

क्यों विशेष थी पीएम की ये रैली?

यह रैली विशेष महत्व रखती है क्योंकि एमआरपीएस मडिगाओं पर प्रभाव रखता है. यह एक दलित समुदाय है जो ऐतिहासिक रूप से चमड़े के काम और हाथ से मैला ढोने के काम से जुड़ा हुआ है. पीएम मोदी ने 2013 से मंदा कृष्णा मडिगा के साथ हमेशा बातचीत करते रहे हैं. मडिगा के नेतृत्व वाले एमआरपीएस ने अनुसूचित जाति (एससी) श्रेणी के भीतर आंतरिक आरक्षण की लगातार वकालत की है. 2014 के घोषणापत्र में मंदा कृष्णा के साथ चर्चा के बाद भाजपा ने आंतरिक आरक्षण के लिए समर्थन का वादा किया थी.

एमआरपीएस का इतिहास

अब आपको बताते हैं एमआरपीएस के बारे में… तेलुगु राज्यों में दो प्रमुख दलित समुदाय हैं – माला और मडिगा. उनके अलावा, रेली, दक्कली, बुडागा जंगम आदि जैसी 55 उपजातियां हैं. तेलंगाना में चार प्रमुख जाति-विरोधी अंबेडकरवादी संगठन भी हैं – दलित माला महानडु (डीएमएम), एमआरपीएस, कुल विवाह पोराटा समिति (केवीपीएस) और कुल निर्मुलाना पोराटा समिति (केएनपीएस). इनमें से दलिता माला महानाडु का कई दशकों तक दबदबा रहा लेकिन वर्तमान में एमआरपीएस सबसे प्रमुख है.

मंदा कृष्णा मडिगा ने की एमआरपीएस की स्थापना

एमआरपीएस की स्थापना जुलाई 1994 में आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले के एडुमुडी गांव में मंदा कृष्णा मडिगा और अन्य के नेतृत्व में आंतरिक आरक्षण लागू करने के उद्देश्य से की गई थी. यह आंदोलन लोकप्रिय रूप से ‘मडिगा डंडोरा’ के नाम से जाना जाता है.

चुनावी अंकगणित में मडिगा क्यों मायने रखते हैं?

2011 की जनगणना के अनुसार तेलंगाना में 54.08 लाख दलित थे. जो राज्य की आबादी का 15.5% थे. मुख्यमंत्री के चन्द्रशेखर राव ने 2021 में केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना की मांग करते हुए कहा था कि यह प्रतिशत लगभग 17% हो गया है. राज्य में दलित आबादी के बीच, मडिगा संख्यात्मक रूप से मालाओं की तुलना में अधिक शक्तिशाली हैं. लेकिन उनकी तुलना में सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित हैं. ऐसा देखा जाता है कि मालाओं ने विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक कारकों के कारण अनुसूचित जाति के बीच आरक्षण का लाभ असमान रूप से उठाया है. माना जाता है कि राज्य में दलित आबादी का लगभग 50% मडिगा लोग हैं. जिसका अर्थ है कि वे तेलंगाना की 59 उप-जातियों में से सबसे बड़ा ब्लॉक हैं. 1994 में एमआरपीएस के गठन के बाद से, उन्हें मडिगास के अलावा अन्य एससी उप-जातियों जैसे दसारी, सिंधोलु, दंडासी और बिंदला का समर्थन मिला. मंदा कृष्णा भी इन समुदायों के चेहरे के रूप में प्रमुखता से उभरे.

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