शक्ति रूपेण संस्थिता- मां कामाख्या भवानी…

अमेठी ‌जिलेकी सीमा पर स्थित मां कामाख्या भवानी मंदिर शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र है। शुक्ल बाजार से 12 किमी तथा रुदौली तहसील मुख्यालय से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मवई ब्लॉक के सुनवा के घने जंगलों में स्थित प्राचीन सिद्धपीठ कामाख्या भवानी के कपाट दिन में कभी बंद नहीं किये जाते। नवरात्र के दिनों में यहां मेले जैसा दृश्य रहता है। वासंतिक व शारदीय नवरात्र में सूबे के कई जिलों से यहां भक्त पूजन-अर्चन को आते हैं।

दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय में मां कामाख्या भवानी का जिक्र मिलता है। राजा सुरथ व समाधि वैश्य की तपस्या का स्थल यही बताया जाता है। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माता ने उन्हें इसी स्थान पर दर्शन दिया था। माना जाता है कि तभी से यहां मां महाकाली, महासरस्वती व महालक्ष्मी ¨पडी रूप में विराजमान हैं। कामाख्या मंदिर परिसर में राजा सुरथ व समाधि वैश्य की मूर्ति अक्षयवट के नाम से वर्तमान समय में भी स्थित है।

मंदिर का जीर्णोद्धार राजा दर्शन ¨सह ने कराया था। माना जाता है कि राजा दर्शन ¨सह अपने सैनिकों के साथ यहां से गुजर रहे थे। इसी दौरान किसी ने उन्हें यहां मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी की जानकारी दी। राजा दर्शन ¨सह की कामना भी पूर्ण हुई। इसके बाद उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। नवरात्र में मंदिर में माता का दर्शन करने के लिए फैजाबाद के साथ ही बाराबंकी, सुल्तानपुर, अमेठी, रायबरेली, अंबेडकर नगर समेत अन्य जिलों के श्रद्धालुओं का आना होता है। वर्ष भर यहां पर विभिन्न प्रकार के धार्मिक आयोजन होते रहते हैं।

-माता सदियों से अपने भक्तों की मुरादें पूरी करती आ रही हैं रात में आठ बजे आरती के बाद मंदिर में प्रवेश नहीं किया जाता। सुबह चार बजे मंदिर के कपाट खुल जाते हैं। पूरे दिन मंदिर के कपाट खुले रहते हैं।

बृज किशोर मिश्र

अर्चक

माता की कृपा सदैव बनी रहती है। जंगल व निर्जन स्थल पर मंदिर होने के बावजूद किसी भी हसक जीव ने मंदिर आने-जाने वाले श्रद्धालुओं पर कभी हमला नहीं किया। माता की कृपा हर भक्त पर रहती है।

-राम फेर यादव

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