मलिन बस्तियों को राजनीतिक दल वोट बैंक के रूप में भुनाते हैं…

देहरादून: स्मार्ट सिटी का सपना देख रहे दून के दामन पर लगा मलिन बस्तियों का दाग राजनीतिक संरक्षण में शायद ही कभी हट पाएगा।

दून में सियासत का केंद्र रहने वाली मलिन बस्तियों को राजनीतिक दल वोट बैंक के रूप में भुनाते हैं और मालिकाना हक की आस में बस्तीवासी भी राजनेताओं के झांसे में आ जाते हैं। हालांकि, नदी-नालों के किनारे व्यापक रूप से बस्तियां बसाने में भी राजनीतिक दल व जनप्रतिनिधियों का ही हाथ रहा है।

अब तक न तो इनके विस्थापन का कोई प्लान सरकारों के पास नजर आया, न मालिकाना हक देने पर कोई ठोस निर्णय ही हो सका। इस बार भी लोकसभा चुनाव में दून की मलिन बस्तियां टिहरी और हरिद्वार सीट पर निर्णायक साबित हो सकती हैं।

पृथक राज्य बनने के बाद दून में मलिन बस्तियां कुकुरमुत्ते की तरह उगती रहीं। देखते ही देखते बिंदाल-रिस्पना समेत दून के तमाम नदी-नाले झुग्गी व कच्चे मकानों से पट गए। बीते 23 वर्षों में देहरादून में 129 से अधिक मलिन बस्तियों ने आकार लिया, जिनमें 40 हजार से अधिक भवन हैं।

जबकि, दून की मलिन बस्तियों में वर्तमान में एक लाख से अधिक मतदाता हैं। यह संख्या किसी भी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाने के लिए काफी है। यही वजह है कि प्रदेश में सरकार किसी भी रही हो, मलिन बस्तियों को वोट बैंक बनाने के उपक्रम निरंतर चलते रहे। स्थानीय जनप्रतिनिधियों के संरक्षण में अवैध बस्तियां भी वैध हो गईं और अतिक्रमण की भेंट चढ़ी सरकारी जमीन।

वैध कालोनी में भले पेयजल या बिजली की लाइन न पहुंचे, लेकिन अवैध बस्तियों में तमाम सुविधाएं नेताओं के दबाव में पहुंच ही जाती हैं। कभी नगर निगम या प्रशासन ने अवैध कब्जे हटाने का प्रयास किया तो जनप्रतिनिधि ढाल बनकर आगे खड़े हो गए।

विडंबना देखिए कि न तो अवैध बस्तियों को कभी हटाया जा सका, न उनका नियमितीकरण ही किया गया। हालांकि, सभी सरकारों ने बस्तीवासियों को मालिकाना हक दिलाने का आश्वासन दिया और चुनाव में समर्थन मांगा। इस संबंध में तीन बार नियमितीकरण को लेकर अध्यादेश भी लाया जा चुका है, लेकिन अब भी इनके स्थायी समाधान के आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे।

नेता करते रहे सियासत, बढ़ती रही बसागत
दून की राजनीति मलिन बस्तियों पर केंद्रित होने के कारण यहां लगातार अवैध बस्तियां पनपीं और धीरे-धीरे नदी-नालों में हजारों की संख्या में अवैध निर्माण हो गए। वोट की चाहत में सरकारें अवैध निर्माण तोड़ने के बजाय इनके संरक्षण के तरीके खोजती रहीं। नेताओं की सियासत में अवैध बसागत बढ़ती रही और शहर बदरंग हो गया।

सरकारी आंकड़ों में 129 मलिन बस्तियां
राज्य बनने से पहले नगर पालिका रहते हुए दून में 75 मलिन बस्ती चिह्नित थीं। लेकिन, नगर निगम बनने के बाद वर्ष 2002 में ही इनकी संख्या 102 हो गई और वर्ष 2008-09 में हुए सर्वे में यह आंकड़ा 123 तक जा पहुंचा। तब से बस्तियों का चिह्नीकरण नहीं हुआ। सरकारी अनुमान के अनुसार वर्तमान में दून में 129 बस्ती और 40 हजार से अधिक घर हैं।

दून में यहां हैं मुख्य मलिन बस्ती
रेसकोर्स रोड, चंदर रोड, नेमी रोड, प्रीतम रोड, मोहिनी रोड, पार्क रोड, इंदर रोड, परसोली वाला, बदरीनाथ कालोनी, रिस्पना नदी, पथरियापीर, अधोईवाला, बृजलोक कालोनी, आर्यनगर, मद्रासी कालोनी, जवाहर कॉलोनी, श्रीदेव सुमननगर, संजय कॉलोनी, ब्रह्मपुरी, लक्खीबाग, नई बस्ती चुक्खुवाला, नालापानी रोड, काठबंगला, घास मंडी, भगत सिंह कॉलोनी, आर्यनगर बस्ती, राजीवनगर, दीपनगर, बाडीगार्ड, ब्राह्मणवाला व ब्रह्मावाला खाला, राजपुर सोनिया बस्ती।

हजारों हेक्टेयर भूमि पर कब्जा, नदी-नाले भी सिकुड़े
दून में बीते 23 वर्षों के दौरान हजारों हेक्टेयर सरकारी भूमि कब्जे की भेंट चढ़ गई। निगम की करीब 7,800 हेक्टेयर भूमि में से अब सिर्फ 240 हेक्टेयर ही बची है। माफिया निगम की जमीनों की लूट-खसोट में लगे हुए हैं, लेकिन न सरकार की नींद टूट रही, न निगम की ही। अवैध खरीद-फरोख्त के साथ ही बस्तियों के रूप में कब्जे और धीरे-धीरे निर्माण कर सरकारी जमीनों को लूट लिया गया और वोट के लालच में सरकारें मूकदर्शक बनी रहीं।

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