ओबीसी के बड़े वोटबैंक पर विपक्ष की नजर…

नई दिल्ली। देश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) एक बड़ा मतदाता वर्ग है। राजद और सपा जैसी समाजवादी पार्टियों के साथ आगे बढ़ रही कांग्रेस लगभग एक वर्ष से सामाजिक न्याय के मुद्दे को उछाल कर केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को घेरने का प्रयास कर रही है। विपक्ष के संयुक्त अभियान का अघोषित नेतृत्व कर रहे राहुल गांधी देशभर में घूम-घूमकर आबादी के अनुरूप सत्ता में सबकी हिस्सेदारी का नारा लगा रहे हैं तो इसकी वजह है कि ओबीसी के बड़े वोटबैंक पर विपक्ष की नजर है।

भाजपा भी इससे अनजान नहीं है। पहले कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न और फिर लोकसभा चुनाव की घोषणा से कुछ दिन पहले हरियाणा में मनोहर लाल के बदले ओबीसी समुदाय के नायब सिंह सैनी को सरकार की कमान देकर भाजपा ने संकेत कर दिया है कि उसके तरकश में तीरों की कमी नहीं है। मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव पहले से ही बिहार व उत्तर प्रदेश के ओबीसी वर्ग को लीक बदलने को प्रोत्साहित कर रहे हैं।

राहुल ने समझी अहमियत
ओबीसी वोटबैंक की जिस अहमियत को कांग्रेस के उत्तराधिकारी के रूप में राहुल गांधी ने हाल के दिनों में समझा है, उसे उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव एवं बिहार में लालू प्रसाद ने लगभग चार दशक पहले ही भांप लिया था। दोनों ने उसी लाइन पर बढ़ते हुए सियासत के फार्मूले को पलट दिया।

आज भी उनकी पार्टियां पुरानी लीक पर चलते हुए प्रासंगिक बनी हुई हैं। कांग्रेस ने देर से इस लीक पर कदम रखा। आजादी के वक्त ही यदि वह राजनीतिक करवट का अंदाजा लगा लेती तो आज शायद उसका ऐसा हाल नहीं होता। तब सिर्फ एससी-एसटी को आरक्षण दिया गया था।

बार-बार चूकी कांग्रेस
गर्दिश में जी रही अन्य जातियों की पहचान के लिए काका कालेलकर की अध्यक्षता में आयोग बनाया गया था। आयोग ने 1955 में रिपोर्ट भी सौंप दी थी, लेकिन इसे तहखाने में डालकर छोड़ दिया गया। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व चाहता तो सिफारिशों को लागू कर वोट में तब्दील कर सकता था। दूसरी पहल, 1977 में कांग्रेस के विरोध में बनी जनता सरकार ने बीपी मंडल की अध्यक्षता में आयोग बनाकर की।

आयोग ने 1980 में रिपोर्ट सौंपी, किंतु कांग्रेस की इंदिरा गांधी एवं राजीव गांधी की सरकारों ने उसे भी फाइलों में दबा दिया। तीसरी पहल, बनी वीपी सिंह की सरकार ने 1990 में मंडल आयोग की उन सिफारिशों को लागू कर की, जो दशकभर से किसी उद्धारक का इंतजार कर रही थी। कांग्रेस फिर चूक गई। यहां तक कि प्रतिपक्ष के नेता के रूप में राजीव गांधी ने सदन में इसका विरोध किया।

ओबीसी का वोटिंग ट्रेंड विभिन्न राज्यों में भिन्न होता
इस बार 96.8 करोड़ मतदाता हैं, जिसमें सबसे ज्यादा ओबीसी हैं। केंद्र की ओबीसी सूची में कुल 2,479 जातियां हैं। राज्यों की सूची अलग होती है। संख्या भी अलग-अलग होती है। इसमें कहीं 50 प्रतिशत तो कहीं 10 प्रतिशत ओबीसी हैं। इन जातियों का वोटिंग ट्रेंड विभिन्न राज्यों में भिन्न होता है।

केंद्र में नरेन्द्र मोदी को शीर्ष तक पहुंचाने में ओबीसी की बड़ी भूमिका है। राज्यों में मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद एवं नीतीश कुमार की राजनीति भी ओबीसी की फैक्ट्री से ही निकली। आज भी कई राज्यों में राजनीतिक दलों का भविष्य ओबीसी वोटरों के मूड पर निर्भर करता है।

चुनाव आयोग के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं रहता है, जो बता सके कि किस वर्ग ने किस दल को वोट किया, किंतु लोकनीति सीएसडीएस का सर्वे बताता है कि 2009 से कांग्रेस का ओबीसी वोट घट रहा एवं भाजपा का बढ़ रहा। 2009 में भाजपा को सिर्फ 22 प्रतिशत ओबीसी वोट मिला था, जो 2014 में बढ़कर 41 प्रतिशत और 2019 में 48 प्रतिशत हो गया।

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