पिछले हफ्ते ही गोवा के काजू को GI टैग (Geographical Indication) मिला है. जिसे आ जाने से कहीं न कहीं लोकल विक्रेताओं को राहत मिली है. ये एक तरह की अनूठी मोहर की तरह है. यही वजह है कि गोवा में काजू इंडस्ट्री के लिए काफी बड़ी बात है. दरअसल, जीआई टैग इसलिए भी जरूरी है कि इससे लोगों को यह जानने में मदद मिलेगी कि जो काजू वे खरीद रहे हैं वह वास्तव में गोवा का है या नहीं.
अभी क्या होती है परेशानी?
कभी-कभी, दूसरी जगहों पर जो काजू मिलते हैं उन्हें दुकानदार ‘गोवा काजू’ के रूप में बेच देते हैं. इस कहीं न कहीं गोवा की काजू इंडस्ट्री को काफी नुकसान पहुंचता है. ये टैग इसे रोकने में मदद करेगा. यह एक क्वालिटी साइन की तरह है जो गारंटी देता है कि काजू प्रामाणिक हैं और उनमें विशेष गुण हैं.
दरअसल, काजू गोवा की पहचान का एक बड़ा हिस्सा है. जो लोग गोवा आते हैं वे अक्सर एक स्मृति चिन्ह के रूप में गोवा के काजू खरीदते हैं. लेकिन हाल के कुछ सालों में, गोवा के बाहर के कुछ व्यापारी सस्ते काजू बेच रहे हैं और उन पर ‘गोवा काजू’ का लेबल लगा रहे हैं, जिससे वास्तविक गोवा काजू बाजार प्रभावित हो रहा है.
केवल गोवा के काजू पर लगेगा ये टैग
इस जीआई टैग के साथ, केवल असली गोवा के काजू ही विशेष लोगो लगा सकते हैं, और यह दूसरों को नाम का दुरुपयोग करने से रोकेगा. यह गोवा के काजू की विरासत की रक्षा और संरक्षण करने का एक तरीका है. उम्मीद यह है कि इससे स्थानीय काजू उद्योग को बढ़ावा मिलेगा और पारंपरिक गोवा काजू प्रोसेसरों को निष्पक्ष तरीके से मार्केट में टिकने का मौका मिलेगा.
कहां से आया है काजू?
गौरतलब है कि काजू पहले गोवा के नहीं थे; उन्हें 16वीं शताब्दी के आसपास पुर्तगालियों द्वारा गोवा लाया गया था. शुरुआत में, काजू के पेड़ पर्यावरणीय कारणों से लगाए गए थे. लेकिन समय के साथ, लोगों को काजू के खाने योग्य गुण का पता चला और वे गोवा की अर्थव्यवस्था का एक जरूरी हिस्सा बन गए. काजू उद्योग छोटे कारखानों से बड़े कारखानों में विकसित हुआ और आज, यह गोवा की विरासत और व्यापार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो अपने बेहतरीन स्वाद और जैविक गुणवत्ता के लिए जाना जाता है.