सुदामा चरित्र की कथा सुनकर भाव-विभोर हुए श्रद्धालु

बलिया। मित्रता करो तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है,जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही सहायता कर दे। उक्त बातें गुरुवार को स्थानीय क्षेत्र कोड़रा गांव स्थित सत्संग भवन में चल रहे श्री मद्भागवत गीता ज्ञान यज्ञ में कथा वाचक संत बालक दास ने कही। सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए बताया कि आजकल स्वार्थ की मित्रत्रा रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है,तब तक मित्रता रहती है। जब स्वार्थ पूरा हो जाता है, मित्रता खत्म हो जाती है। उन्होंने कहा कि एक सुदामा अपनी पत्नी के कहने पर मित्र कृष्ण से मिलने द्वारिकापूरी जाते हैं। जब वह महल के गेट पर पहुंच जाते हैं,तब प्रहरियों से कृष्ण को अपना मित्र बताते है और अंदर जाने की बात कहते हैं। सुदामा की यह बात सुनकर प्रहरी उपहास उड़ाते है और कहते है कि भगवान श्रीकृष्ण का मित्र एक दरिद्र व्यक्ति कैसे हो सकता है। प्रहरियों की बात सुनकर सुदामा अपने मित्र से बिना मिले ही लौटने लगते हैं। तभी एक प्रहरी महल के अंदर जाकर भगवान श्रीकृष्ण को बताता है कि महल के द्वार पर एक सुदामा नाम का दरिद्र व्यक्ति खड़ा है और अपने आप को आपका मित्र बता रहा है। द्वारपाल की बात सुनकर भगवान कृष्ण नंगे पांव ही दौड़े चले आते हैं और अपने मित्र को रोककर सुदामा को गले लगा लेते हैं। कहने लगे कि तुम अपने मित्र से बिना मिले ही वापस जा रहे थे। भगवान श्रीकृष्ण को सुदामा के गले लगा देखकर प्रहरी और नगरवासी अचंभित हो जाते हैं। भगवान कृष्ण- सुदामा को अपने साथ महल के अंदर लेकर पहुंचे और मित्र को सिंहासन पर बैठाकर खुद नीचे बैठकर सेवा की। भगवान श्रीकृष्ण को नीचे बैठा देखकर उनकी रानियां भी दंग रह गई,कि कौन है जिन्हें भगवान सिंहासन पर बैठाकर खुद नीचे बैठे हैं। भगवान कृष्ण ने आंसुओं से मित्र के पैर धोए और पैर से कांटे निकाले। यह दृश्य देखकर महल में उपस्थित लोग भावुक हो गए। संत बालक दास ने कहा कि सुदामा से भगवान ने मित्रता का धर्म निभाया और दुनिया के सामने यह संदेश दिया कि जिसके पास प्रेम धन है वह निर्धन नही हो सकता। सुदामा चरित का भावपूर्ण सरल शब्दों में वर्णन किया कि लोग भाव विभोर हो गए।

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