काठमांडू: भारत से नौ टन आपातकालीन राहत सामग्री की दूसरी खेप सोमवार को नेपाल के उत्तर पश्चिमी पर्वतीय क्षेत्र में भूकंप प्रभावित परिवारों के लिए पहुंची, जहां लोगों को भोजन, गर्म कपड़े और दवाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है. इस बीच, देश में आज फिर से भूकंप का तेज झटका आया. नेपाल में तीन नवंबर को आधी रात से थोड़ी देर पहले 6.4 तीव्रता का भूकंप आया था, जिसकी वजह से 153 लोगों की जान चली गयी थी और 250 से अधिक लोग घायल हो गये थे. अधिकारियों ने बताया कि नेपाल के जाजरकोट और रुकुम पश्चिम जिले भूकंप के कारण सबसे अधिक प्रभावित हुए, जहां करीब 8000 मकान क्षतिग्रस्त हो गये. उनमें सरकारी एवं निजी दोनों ही तरह के मकान हैं.
भारत, नेपाल के भूकंप प्रभावित जिलों में आपातकालीन राहत सामग्री भेजने वाला पहला देश बन गया है. भारत के विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘इस कठिन घड़ी में नेपाल को भारत का समर्थन मजबूत और दृढ़ बना हुआ है.”
भारतीय मिशन के उप प्रमुख प्रसन्न श्रीवास्तव ने राहत सामग्री की दूसरी खेप बांके के मुख्य जिला अधिकारी श्रवण कुमार पोखरेल को सौंपी.
भारत की ओर से भेजी गई नौ टन राहत सामग्री की दूसरी खेप को भारतीय वायु सेना के विशेष सी-130 विमान से नेपालगंज पहुंचाया गया. इसमें आवश्यक चिकित्सा और स्वच्छता आपूर्ति, तंबू, स्लीपिंग बैग और कंबल शामिल हैं.
भारत ने राहत सामग्री की पहली खेप में 11 टन से अधिक सामग्री रविवार को नेपाल को सौंपी थी, जिसमें तंबू, तिरपाल, कंबल और स्लीपिंग बैग के साथ-साथ आवश्यक दवाएं और चिकित्सा उपकरण शामिल थे.
भारतीय दूतावास ने एक बयान में कहा, ‘‘जाजरकोट में आए भूकंप के बाद नेपाल सरकार को हरसंभव सहायता देने के लिए भारत प्रतिबद्ध है.”
बांके के मुख्य जिला अधिकारी श्रवण कुमार पोखरेल ने बताया कि सशस्त्र पुलिस बल नेपाल के कर्मियों के संरक्षण में नेपालगंज हवाई अड्डे से राहत सामग्री प्रभावित क्षेत्रों में भेजी गयी है.
उन्होंने बताया कि एक ट्रक राहत सामग्री जाजरकोट के लिए और एक ट्रक राहत सामग्री रुकुम पश्चिम के लिए है. उन्होंने कहा कि राहत सामग्रियां संबंधित जिलों के मुख्य जिला अधिकारियों को सौंपी जाएंगी.
भारतीय वायुसेना का विशेष सी-130 विमान 10 करोड़ रुपये की आपात राहत सामग्री की पहली खेप लेकर रविवार को नेपाल पहुंचा था. अधिकारियों के अनुसार राहत सामग्रियों में प्लास्टिक के 625 तिरपाल, 1000 ‘स्लीपिंग बैग’, 1000 कंबल, बड़े आकार के 70 तंबू, टेंट से संबंधित चीजों के 35 पैकेट और 48 अन्य वस्तुएं शामिल थीं.
इस बीच, नेपाल के राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र ने बताया कि जाजरकोट और आसपास के इलाके में सोमवार को स्थानीय समयानुसार अपराह्न चार बजकर 31 मिनट पर फिर से भूकंप का तेज झटका महसूस किया गया, जिसकी तीव्रता 5.8 दर्ज की गई.
केंद्र ने बताया कि इसके बाद अपराह्न चार बजकर 40 मिनट पर 4.5 तीव्रता का एक और भूकंप का झटका महसूस किया गया.
नेपाल के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने देश में आए विनाशकारी भूकंप के मद्देनजर अपनी 10 दिवसीय यूरोप यात्रा रद्द कर दी है. उनके कार्यालय ने सोमवार को यह जानकारी दी.
राष्ट्रपति की प्रेस सलाहकार किरण पोखरियाल ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया राष्ट्रपति पौडेल मंगलवार सुबह भूकंप प्रभावित इलाकों का दौरा करेंगे.
भूकंप पीड़ितों ने अपने मृत रिश्तेदारों का रविवार को अंतिम संस्कार किया. विषम भौगोलिक क्षेत्र होने के कारण राहत सामग्री कई क्षेत्रों में अब तक पहुंच नहीं पायी है.
चिउरीटोल के निवासी सुरेश बीके के अनुसार, भूकंप के कारण गांव में 13 लोगों ने अपनी जान गंवाई है, जबकि कई अन्य घायल हुए हैं.
सुरेश ने कहा कि गांव में कम से कम 56 मकान पूरी तरह नष्ट हो गए हैं, जबकि 110 मकानों की हालत ऐसी हो गई है कि वहां रहा नहीं जा सकता. ग्रामीण मदद पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं.
काठमांडू पोस्ट अखबार के अनुसार सुरेश ने कहा, ‘‘हमें अब तक कोई मदद नहीं मिली है. हमारी सारी फसलें, अनाज, खाने-पीने की चीजें, कपड़े एवं अन्य कीमती चीजें मलबे में दब गईं. हम उन्हें निकालने में सक्षम नहीं हैं, क्योंकि हमारी मदद के लिए कोई सुरक्षाकर्मी नहीं है.”
उन्होंने कहा, ‘‘बाहर असहनीय ठंड है और शुक्रवार रात से हममें से कोई सोया नहीं है.”
भूकंप पीड़ितों को तुरंत मदद की आवश्यकता है और उन्होंने सरकार पर आपात स्थितियों के दौरान भी मदद पहुंचाने में देरी का आरोप लगाया है.
चिउरीटोल निवासी कलावती सिंह ने कहा कि ठंड में दो रातें गुजारने के बाद गांववाले बीमार पड़ने लगे हैं.
सिंह ने कहा, ‘‘ बुजुर्ग और बच्चे बीमार पड़ रहे है. हमारे पास गर्म कपड़े नहीं हैं और हम खुले में रात-दिन बिता रहे हैं.”
उन्होंने कहा, ‘‘ कोई डॉक्टर या चिकित्सकीय मदद नहीं है. हमारे पास अधिकतम दो दिनों के लिए खाने-पीने की चीजें हैं. हमें और मदद शीघ्र पहुंचने की आशा है. ”
आठबिस्कोट नगर पालिका के स्थानीय निवासी कर्ण बहादुर बीके ने कहा कि परिवार के जीवित सदस्यों के लिए तिरपाल, कंबल और भोजन का प्रबंधन करना हर गुजरते दिन के साथ मुश्किल साबित हो रहा है. उनके 27 वर्षीय चचेरे भाई की शुक्रवार को भूकंप के कारण मौत हो गई थी.
कर्ण ने कहा, ‘‘आखिरकार मैं अपने परिवार के लिए एक तिरपाल तंबू ढूंढने में सफल रहा. यहां सीमित संसाधन हैं और लोग संघर्ष कर रहे हैं. अब तक मदद नहीं पहुंची है. लोग भूख के कारण बीमार हो रहे हैं और खाने के लिए लड़ रहे हैं. बच्चे और बुजुर्गों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है, लेकिन मदद दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही.”
‘माई रिपब्लिका’ अखबार के अनुसार उप प्रधानमंत्री ने रविवार को कहा था कि सरकार ने भूकंप प्रभावितों के उपचार, राहत एवं पुनर्वास को प्राथमिकता में रखा है.
उन्होंने कहा था कि सरकार पूरी राजकीय मशीनरी को लगाकर भूकंप के कारण घायल हुए लोगों को एक ही दिन में बाहर निकालकर अस्पतालों में भर्ती कराने में सफल रही. उन्होंने कहा था कि भूकंप प्रभावितों के बीच राहत सामग्री का वितरण रविवार को ही शुरू हो गया.
सोमवार को, अधिकारियों ने कुछ नामों के दोहराव का हवाला देते हुए भूकंप से मरने वालों की संख्या को 157 से संशोधित कर 153 कर दिया.
इससे पहले, भूकंप के केंद्र जाजरकोट में 105 और रुकुम पश्चिम जिले में 52 लोगों की मौत की खबर थी. अब जाजरकोट में जिला प्रशासन कार्यालय ने जिले में मरने वालों की संख्या को संशोधित कर 101 कर दिया है. रुकुम पश्चिम में मरने वालों की संख्या में कोई बदलाव नहीं किया गया है.
गृह मंत्रालय के प्रवक्ता नारायण प्रसाद भट्टाराई के मुताबिक, ‘‘शुरुआती आकलन के मुताबिक करीब तीन हजार मकान पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए हैं, जबकि पांच मकान आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए हैं.” उन्होंने कहा, ‘‘अंतिम आंकड़ा अभी आना बाकी है.”
जाजरकोट के स्वास्थ्य कार्यालय में सूचना अधिकारी कृष्ण बहादुर खत्री ने कहा कि आने वाले दिनों में संभावित संक्रामक बीमारियों को रोकना चुनौतीपूर्ण होगी, क्योंकि लोग सर्दियों के बावूजद खुले में रहने को मजबूर हैं.
भूकंप में घरों के साथ-साथ शौचालय भी क्षतिग्रस्त हो गए हैं. अधिकारियों का कहना है कि शौचालयों के नष्ट होने से लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं, जिससे जल स्रोतों के प्रदूषित होने का खतरा है. विशेषज्ञों के अनुसार वेक्टर जनित बीमारियों जैसे मलेरिया, डेंगू और काला-अजार आदि का खतरा भी बढ़ जाता है.