एक रुपये का पर्चा, हजारों का खर्चा

उन्नाव। कहने को तो सरकारी अस्पतालों में एक रुपये के पर्चे पर इलाज होता है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। एक रुपये का पर्चा बनवाकर बीमारों और घायलों को इलाज में हजारों का खर्चा करना पड़ता है। मरीजों को कभी जांच बाहर से करानी पड़ती है तो कभी दवा व चिकित्सा सामग्री बाहर से खरीदनी पड़ती है। जिला अस्पताल के हड्डी रोग विभाग में कुछ मरीजों से बात की गई तो यह हकीकत सामने आई।

बारा सगवर निवासी आदर्श (22) ने बताया कि वह फैक्टरी कर्मी है। काम के दौरान पैर में चोट लग गई। 12 जून को जिला अस्पताल पहुंचे। काउंटर पर एक रुपये देकर पर्चा बनवाया। ट्राॅमा सेंटर पहुुंचे, जहां डॉक्टर ने एक्सरे की सलाह दी। एक्सरे देखकर डॉक्टर ने पंजे में फ्रैक्चर बताया और कच्चा प्लास्टर लगवाने को कहा। आदर्श के मुताबिक फिर पर्चा काउंटर पर कच्चे प्लास्टर के लिए 68 रुपये की रसीद कटवाई। इसके बाद डॉक्टर ने उसे जो दवाएं लिखी, उसमें कोई भी जिला अस्पताल के दवा वितरण कक्ष और जन औषधि केंद्र में नहीं मिली। एक कर्मचारी ने बताया कि पर्चे में जो भी दवा लिखी हैं वह अस्पताल में नहीं बाहर मेडिकल स्टोर पर ही मिलेंगी। मेडिकल स्टोर में दवा मिली, लेकिन सात दिन की दवा पर 1500 रुपये खर्च हुए। डॉक्टर के मुताबिक इलाज में एक महीना लगेगा। पक्का प्लास्टर चढ़ेगा, दवा-इंजेक्शन व अन्य सामग्री भी खरीदनी पड़ेगी। अनुमान है कि इलाज पर 10 से 15 हजार रुपये खर्च आएगा।

हल्के फ्रैक्चर में 1150 रुपये खर्च
सदर तहसील के गजौली गांव निवासी जगरूप की पत्नी मंजू को घर में काम करने के दौरान पैर फिसलने से बाएं पैर के पंजे में चोट आने पर डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने एक्सरे कराने के बाद हल्का फ्रैक्चर बताया और कच्चा प्लास्टर लगाया। उन्होंने निर्धारित 68 रुपये फीस जमा की। डॉक्टर ने दवा लिखी वह बाहर अस्पताल के बाहर मेडिकल स्टोर में मिली और सात दिन की दवा 400 रुपये की मिली। सात दिन बाद डॉक्टर को दिखाने के बाद 267 रुपये पक्के प्लास्टर के लिए फीस जमा की। डॉक्टर ने फिर एक पर्ची पर बाहर की दवाएं लिखीं और 750 रुपये खर्च करने पड़े। मंजू ने बताया कि कहने को तो एक रुपये के पर्चे पर इलाज होता है, लेकिन सच्चाई तब पता चलती है जब एक रुपये के पर्चे पर इलाज शुरू होता है। दवा और सर्जिकल सामग्री पर अबतक 1150 रुपये खर्च हो चुके हैं।

सभी डॉक्टरों को दवा वितरण कक्ष से दवाएं लिखने के निर्देश पहले से ही दिए गए हैं। इसके बाद भी अगर कोई डॉक्टर बाहर की दवाएं लिख रहा है तो जांच कर उसपर कार्रवाई की जाएगी। रही बात प्लास्टर शुल्क, ऑपरेशन शुल्क, डॉयलिसिस, ईसीजी आदि के लिए जो शुल्क शासन से निर्धारित है वह तो जमा ही करना होता है। – डॉ. आरए मिर्जा, सीएमएस

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