पंजाब में पराली जलाने के कारण वायु प्रदूषण में वृद्धि के बारे में एनजीटी ने लिया संज्ञान

नई दिल्ली। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने पंजाब और हरियाणा को एक जनवरी से एक सितंबर 2024 के बीच पराली जलाने से निपटने के लिए समयबद्ध योजना बनाने का निर्देश दिया है। एनजीटी ने जोर दिया है कि खेतों में पराली जलाना गंभीर समस्या है और उपचारात्मक कार्रवाई की तैयारी अभी से शुरू होनी चाहिए।

एनजीटी ने कही ये बात
दरअसल, पंजाब में पराली जलाने के कारण वायु प्रदूषण में वृद्धि के बारे में एक अखबार की रिपोर्ट का एनजीटी ने संज्ञान लिया है। इसी मामले में पीठ सुनवाई कर रही है। एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने कहा कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में पराली जलाने की 36,632 घटनाएं हुईं और इनमें से 2,285 घटनाएं इस साल 15 सितंबर से 28 नवंबर के बीच हुईं।

जिलेवार आंकड़ों पर पीठ ने कही ये बात
पीठ ने कहा कि जिलेवार आंकड़ों के अनुसार, 15 सितंबर से 16 नवंबर के बीच पंजाब के संगरूर जिले में सबसे अधिक 5352 पराली जलाने की घटनाएं हुईं जबकि हरियाणा के फतेहाबाद जिले में 476 स्थानों पर पराली जली। पीठ ने यह स्वीकार किया है कि खेत में पराली जलाने की घटनाएं कम हो रही हैं। पीठ में न्यायिक सदस्य जस्टिस अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल भी शामिल हैं।

पीठ ने बुधवार को पारित एक आदेश में कहा कि रिपोर्ट के अनुसार 28 नवंबर को हरियाणा में खेतों में आग लगने की कोई घटना नहीं हुई जबकि पंजाब में केवल 18 घटनाएं हुईं। इसमें कहा गया है कि धान के अवशेष जलाने का मुद्दा मुख्य रूप से 15 सितंबर से 30 नवंबर के बीच उठा।

अवशेष जलाने की गंभीर समस्या हर साल पैदा होती है
एनजीटी ने कहा कि अवशेष जलाने की गंभीर समस्या हर साल पैदा होती है। इसलिए अगले साल यानी 2024 के लिए एक व्यापक योजना और उपचारात्मक कार्रवाई शुरू करने की जरूरत है। अब मामले की 19 जनवरी को सुनवाई होगी। ज्ञातव्य है कि दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का एक प्रमुख कारण पराली का जलाना भी माना जाता है। इसे लेकर दिल्ली, हरियाणा और पंजाब सरकार में कई बार तकरार हो चुकी है।

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