देश में लागू भारतीय दंड संहिता में जुड़ गया नया अध्याय

  • भारतीय दंड संहिता में लागू हुई भारतीय न्याय संहिता
  • पहले दिन जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार ने दिया प्रशिक्षण

बाराबंकी। देश में लागू भारतीय दंड संहिता में आज सोमवार से एक नया अध्याय जुड़ गया। भारत पर शासन के लिए बनाए गए नियमों में समयानुसार बदलाव कर दिया गया है। जिसके अनुसार भारतीय दंड संहिता में भारतीय न्याय संहिता को लागू कर दिया गया है। अब सभी थानों में बीएनएस की धाराओं में एफआईआर दर्ज होगी। जिसके लिए विगत 6 दिनों से जिले का अभियोजन विभाग पुलिस कर्मियों को प्रशिक्षण दे रहा है। सोमवार को जहां एक तरफ थाना कुर्सी में अपर पुलिस महानिदेशक लखनऊ एस. बी. शिराडकर भारतीय न्याय संहिता के संबंध लोगों को जागरुक कर रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ शहर कोतवाली में आयोजित कार्यशाला में जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार भी लोगों को प्रशिक्षित करते नजर आए। एसपी दिनेश कुमार सिंह ने भी अपने संबोधन में भारतीय दंड संहिता में लागू भारतीय न्याय संहिता के संबंध में विस्तृत वर्णन किया। वहीं कार्यक्रम का सफल संचालन अपर पुलिस अधीक्षक उत्तरी चिरंजीव नाथ सिंह द्वारा किया गया। इसके अतिरिक्त एसपी के निर्देशन में सोमवार को जनपद भर के समस्त थानों पर भारतीय दंड संहिता में लागु भारतीय न्याय संहिता के संबंध में लोगों को जागरूक किया गया। शहर कोतवाली में आयोजित कार्यक्रम में एआरटीओ अंकिता शुक्ला, जिला अभियोजन अधिकारी, सीओ नगर जगत राम कनौजिया, नगर कोतवाल अजय कुमार त्रिपाठी व अन्य अधिकारी कर्मचारी सहित बड़ी संख्या में अधिवक्ता व आम जनता उपस्थित रही। यहां पत्रकारों से बात करते हुए जिला अभियोजन अधिकारी ने बताया कि भारतीय दंड संहिता में लागू भारतीय न्याय संहिता ने लोगों के अधिकारों को और मजबूत व पुलिस को और ताकतवर बनाने का काम किया है। अब आप अपने साथ हुए अपराध की किसी भी राज्य में आसानी से आनलाइन एफआईआर दर्ज करा सकते है। सामुदायिक सेवा व सामाजिक सेवा सहित ट्रांसजेंडरों को मिलने वाले अधिकारों ने इस भारतीय न्याय संहिता में एक नया अध्याय जोड़ दिया है।
(बॉक्स )
(1) बलात्कार पीड़िता

नए बदलाव में बलात्कार पीड़िता की मेडिकल जांच रिपोर्ट 7 दिनों के अंदर जांच अधिकारी को भेजनी होगी।

. बलात्कार पीड़िता के बयान को मोबाइल या किसी भी ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से रिकॉर्ड किया जा सकेगा।

. बलात्कार पीड़िता, सामूहिक बलात्कार पीड़िता, एसिड हमले की पीड़िता का बयान, जहां तक साध्य हो एक महिला मजिस्ट्रेट द्वारा या उसकी अनुपस्थिति में एक पुरुष मजिस्ट्रेट द्वारा एक महिला की उपस्थिति में दर्ज किया जाएगा।

2: ऑनलाइन एफआईआर

. बलात्कार / सामूहिक बलात्कार सहित संज्ञेय अपराध के संबंध में ऑनलाइन एफआईआर दर्ज की जा सकती है।

3: जीरो एफआईआर

. संज्ञेय अपराध के लिए किसी भी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की जा सकेगी।

4: सामुदायिक सेवा

कारागृहों पर बोझ कम करने के लिए सामुदायिक सेवा को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में पहली बार एक शास्ति के रूप में शामिल किया गया है।

सामुदायिक सेवा का अर्थ वह कार्य है जो कोर्ट द्वारा दोष सिद्ध हुए व्यक्ति की शास्ति के रूप में पालन करने के लिए आदेशित किया जायेगा जो कि सामुदायिक हित में हो एवं जिसके एवज में अपराधी किसी भी तरह की पारिश्रमिक का हकदार नहीं होगा।

5: वीडियो मोवाइल रिकॉर्डिंग

  • मोबाइल फोन में वीडियो रिकोर्डिंग भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत एक दस्तावेज एवं दस्तावेजी साक्ष्य होगा।

6: अपराध से अर्जित धन की वसूली

अपराध से अर्जित की गयी सम्पत्ति की वसूली के लिए पुलिस आवेदन कर सकती है। मजिस्ट्रेट उसे कुर्क और जब्त कर

सकता है और मुकदमे के नतीजे की प्रतीक्षा किए बिना जांच के दौरान ही पीड़िता को वितरित कर सकता है।

अपराध की अर्जित सम्पति सरकार द्वारा जब्त कर ली जाएगी (सम्पति की सिविल जब्ती)

7: अभियोजन की वापसी

पीड़ित व्यक्ति को सुनवाई का अवसर दिए बिना अनियोजन वापस नहीं लिया जाएगा।

8: पुलिस रिपोर्ट की आपूर्ति

पुलिस रिपोर्ट और अन्य दस्तावेजों की प्रति 14 दिनों के भीतर आरोपी और पीडित को निःशुल्क दी जानी है।

9: पुलिस जाँच

पुलिस अधिकारी 90 दिनों के भीतर इलेक्ट्रॉनिक संचार सहित किसी भी माध्यम से सूचना देने वाले या पीड़ित व्यक्ति को उसकी प्रगति के बारे में सूचित करेगा।

10: फास्ट ट्रैकिंग प्रक्रियाएँ

छोटे अपराधों के लिए जहां शामिल राशि 20,000 रुपये से अधिक नहीं है, वहाँ संक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया को अनिवार्य बनाया गया है।

गवाहों से साक्ष्य मोबाइल फोन सहित अन्य ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से लिया जा सकता है।

11: आरोपी अदालत में इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से उपस्थित हो सकते है।

  • जहां परिस्थितियां किसी भी पक्ष के नियंत्रण से परे हैं, दूसरे पक्ष की आपत्तियों को सुनने के बाद और लिखित में कारणों को दर्ज करने के बाद अदालत द्वारा दो से अधिक स्थगनादेश नहीं दिया जा सकता है।

.घोषित अपराधी की अनुपस्थिति में जाँच, मुकदमा या निर्णय की प्रक्रिया चलाई जा सकेंगी (धारा 356 भारतीय नागरिक सुरक्षा

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