नई दिल्ली। इसे प्रशासनिक प्रबंधन की कमी कहें या मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियां, लेकिन 2022 की तुलना में वर्ष 2023 की सर्दियां दिल्ली में अधिक प्रदूषित रही हैं। हैरानी की बात यह कि ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) के पहले और दूसरे चरण की पाबंदियां यहां पर सर्दियां शुरू होते ही यानी छह अक्टूबर से लागू कर दी गई थीं। बीच-बीच में तीसरे और चौथे चरण की पाबंदी भी लगती रहीं। बावजूद इसके प्रदूषण की स्थिति में सुधार नहीं हुआ।
यह आकलन शोध संस्थान क्लाइमेट ट्रेंड्स द्वारा जारी रिपोर्ट में सामने आया है। इस रिपोर्ट में देश के सात शहरों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, पटना, लखनऊ, चंडीगढ़ और वाराणसी का आकलन किया गया है। रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने के पीछे मुख्य रूप से मौसम संबंधी स्थितियां और बढ़े हुए उत्सर्जन जैसे कारक रहे। इसके उलट, अन्य मानसून पूर्व महीनों में प्रदूषण का स्तर संभवतया मौसमी और अन्य कारकों के चलते कम हो गया। यह बदलाव प्रदूषण को कम करने में व्यापक रणनीतियों की प्रभावशीलता को पहचानते हुए विशिष्ट मौसमी चुनौतियों से निपटने के लिए लक्ष्यबद्ध हस्तक्षेप की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
अन्य शहरों की स्थिति पर एक नजर
चंडीगढ़ में जनवरी, फरवरी और अगस्त से नवंबर तक इस साल प्रदूषण 2022 की तुलना में अधिक रहा। वहीं बाकी के महिनों में यह पिछले साल के बराबर या इससे कम रहा। लखनऊ में प्रदूषण कम करने की कोशिशों के बावजूद प्रदूषण बढ़ा। पूरे साल सिर्फ अगस्त और सितंबर में ही प्रदूषण भारतीय मानक (40 एमजीसीएम) से कम रहा। वहीं पटना में प्रदूषण 2022 की तुलना में अधिक रहा। कोलकाता में 2022 और 2023 दोनों ही सालों में प्रदूषण छह महीने मानकों के अंदर रहा। मुंबई में 2022 में चार ओर 2023 में छह महीने प्रदूषण भारतीय मानकों के अंदर रहा। सालाना स्तर पर प्रदूषण में यहां महज 0.3 प्रतिशत की कमी आई है।
पीएम के संसदीय क्षेत्र में प्रदूषण कम
पीएम नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में काफी अधिक निर्माण गतिविधियां के बावजूद 2022 की तुलना में 2023 में प्रदूषण कम हुआ। 2022 में यहां छह महीने प्रदूषण भारतीय मानकों के अंदर रहा था। 2023 में यह नौ महीने इस स्तर पर रहा। रिपोर्ट के अनुसार ऐसा तभी मुमकिन है जब यहां प्रदूषण को लेकर नियमों का सख्ती से पालन हो रहा है और निर्माण कार्य नियमों के मुताबिक ही हो रहे हैं।
2022 और 2023 के बीच मासिक औसत प्रदूषण स्तर की तुलना करने पर लखनऊ और वाराणसी जैसे शहरों में कुछ सुधार दिखाई देते हैं। लेकिन सर्दियों में जहां कोहरे और तापमान में गिरावट के कारण हवा की गुणवत्ता अन्य महीनों की तुलना में अधिक मायने रखती है, हम देखते हैं कि दिल्ली और चंडीगढ़ की स्थिति कई वर्षों से या तो एक जैसी है या उससे बदतर है। 2024 भी एक मील का पत्थर वर्ष है क्योंकि यह राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम लागू होने का पांचवां साल है। ऐसे सीमांत और अल्पकालिक सुधार बताते हैं कि हमें एक विज्ञान आधारित, सुनियोजित और व्यापक कार्ययोजना की जरूरत है जो प्रदूषण के स्रोतों और मौसम संबंधी कारक को ध्यान में रखे। – आरती खोसला, निदेशक, क्लाइमेट ट्रेंडस