हरिशंकर व्यास,
एकनाथ शिंदे के खेमें का असली शिवसेना घोषित होना अंहम सियासी संकेत है। इससे48 लोकसभा सीटों की चुनावी तस्वीर साफ हुई है। महाराष्ट्र में भाजपा अकेले अपने दम पर, अधिकाधिक सीटों पर लड़ेगी। शिंदे और अजित पवार के लोगों को भाजपा 48 में से दस सीटे बांटे तो बड़ी बात होगी।दोनों के जमीनी आधार को लेकर भाजपा गलतफहमी में नहीं है। सबने माना हुआ था कि शिंदे गुट की ठाकरे परिवार के भगवा वोटों पर पकड़ नहीं है। सो पहली बात भाजपा बनाम ठाकरे परिवार के बीच अगला चुनाव आर-पार का है। भाजपा की पहली प्राथमिकता मुंबई, थाने, पूणे की पट्टी से ठाकरे पार्टी के सफाए की होगी।
भाजपा राम मंदिर की हवा और नरेंद्र मोदी के चेहरे पर महाराष्ट्र में वैसे ही परिणामों की उम्मीद में है जैसे उत्तरप्रदेश में उम्मीद है। सोचे, यदि यूपी में भाजपा 80 में से 75 सीटे जीते और महाराष्ट्र की 48 में से चालीस सीटे जीते तो मई के चुनावों में भाजपा की 400 सीटों का हल्ला साकार हो सकता है। क्या ऐसा सिनेरियों उद्धव ठाकरे, शरद पवार, कांग्रेस नेता, अखिलेश और मायावती को समझ आ रहा होगा? ये इस हिसाब से क्या कोई करों-मरों वाली चुनावी तैयारियां करते हुए है।
हां, अयोध्या में मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की हवा काफी हद तक अखिल भारतीय होनी है। नरेंद्र मोदी, अमित शाह आदि भाजपा नेताओं ने तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और तेलंगाना की चुनिंदा सीटों पर जैसा ध्यान दिया है वह चौंकाने वाला है। पिछले चुनावों में 30 प्रतिशत के आसपास के भाजपा वोटों वाली तमाम सीटों पर माइक्रों लेवल पर भाजपा-संघ नेता काम करते हुए है। जैसे भाजपा चुनाव में नेताओं के भाषणों की शुरूआत कॉरपेट बमबारी से करती है और माहौल बनाती है वैसे ही इस बार विन्ध्य पार भाजपा बड़ा हल्लाबोल बनाएगी। केंद्रीय मंत्रियों और नामी चेहरों को चुनाव में उतारेगी तो चुएक-एक संभव सीट पर विपक्ष की फूट का फायदा उठा कर 35 प्रतिशत वोटों से सीट जीतने की मेहनत करेगी।
ध्यान रहे केरल, तमिलनाडु में भी ऐसी पांच-छह सीटे है जहां भाजपा को 25-30 प्रतिशत वोट मिले हुए है। सो यदि केरल में कांग्रेस-लेफ्ट फ्रंट चुनाव में आमने-सामने हुए (जिसकी संभावना है) तो भाजपा चुनाव में पांच-आठ प्रतिशत बढ़वा कर कुछ सीटों पर अनहोनी कर सकती है। चैन्नई दक्षिण में यदि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण उम्मीदवार हुई तो द्रविड पार्टियों के आपसी मुकाबले में उनके जीतने के अवसर बन सकते है। जब काशी-तमिल संगम और दक्षिण के तीर्थों को अयोध्या, काशी से जोडऩे जैसेहल्ले है और चुनावी प्रबंधों, संसाधनों में सबकुछ रिकार्ड तोड होगा तोविपक्ष की फूट वाली सीटों पर भाजपा अपना वोट आधार कुछ प्रतिशत बढ़ा ले तो वह विपक्ष के लिए बहुत नुकसानदायी होगा।
इस रणनीति में महाराष्ट्र में सर्वाधिक काम होना है। मुमकिन है प्रदेश की 48 सीटों में भाजपा 35-40 सीटे अकेले लड़े औरवह2019 से भी अधिक सीटे पा जाए। यों कांग्रेस-उद्धव ठाकरे गुट में सीट बंटवारे की बात हो रही है। शरद पवार भी भतीजे अजित पवार से दूरी बनाए हुए है। बावजूद इसके लोकसभा चुनाव की घोषणा तक ठाकरे- कांग्रेस-पवार खेमें का एलायंस बिखरा औरअनिश्चितताओं में रहेगा। संस्पेस चलेगा। इन्हे संसाधनों का भी टोटा होगा। भाजपा प्रदेश में शिंदे, अजित पवार के चेहरों को कतई आगे नहीं रखेगी। केवल नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ेगी।रणनीति में केवल मोदी और मंदिर का वह हल्ला रहेगा जिससे ठाकरे के भगवा वोट टूटेंगे तो कांग्रेस की दलित-आदिवासी, ओबीसी राजनीति वैसे ही बेअसर होगी जैसे छतीसगढ़, राजस्थानके हाल के विधानसभा चुनावों में थी।
तभी लोकसभा चुनाव में विन्ध्य पार का मुकाबला कांटे वाला होगा। हालांकि धारणा बनी हुई है कि दक्षिण भारत में इंडिया एलायंस भारी है। ध्यान रहे विन्ध्य पार के बड़े-छोटे-केंद्रशासित आठ प्रदेशों की 162 लोकसभासीटों में भाजपा के कोई पचास सांसद है। धारणा है कि कर्नाटक, महाराष्ट्र मेंभाजपा की सीटे घटेगी और कांग्रेस की बढेगी। कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार बन गई है तो वह लोकसभा में भी कामयाब होगी। कर्नाटक को लेकर अपने को शक है क्योंकि भाजपा ने देवगौड़ा की वोकालिग्गा बहुल पार्टी जनता दल (एस) से पुख्ता तालमेल बनाया है। और फिर यदि कुछ नुकसान हुआ भी तो उसकी भरपाई के लिए आठ राज्यों की 162 सीटोंमें से महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना की 20-30 अतिरिक्त सीटों पर कांटे की लड़ाई बना जीतने में समर्थ है।