बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती भले अभी कह रही हैं कि वे भाजपा के गठबंधन एनडीए और विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया से समान दूरी रखेंगी लेकिन असल में यह उनका अंतिम स्टैंड नहीं है। यह एक पोजिशनिंग है, जो अभी के समय के हिसाब से की जा रही है। मायावती अगले साल के लोकसभा चुनाव को लेकर अपने पत्ते अभी नहीं खोलने जा रही हैं। बसपा के जानकार सूत्रों का कहना है कि मायावती अगला लोकसभा चुनाव किसी गठबंधन में शामिल होकर लड़ेंगी या अकेले लड़ेंगी इस बारे में वे अपने जन्मदिन के मौके पर यानी 15 जनवरी को कोई बड़ी घोषणा कर सकती हैं। आमतौर पर मायावती का जन्मदिन बड़े राजनीतिक महत्व का होता है। अगले साल लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आ रहा उनका जन्मदिन और अहम हो गया है।
बताया जा रहा है कि मायावती ने पिछले दिनों कुछ नेताओं को इसका संकेत दिया है कि वे अगले साल जनवरी में कोई बड़ी घोषणा करेंगी। ध्यान रहे कई पार्टियों के नेता उनसे गठबंधन के लिए संपर्क कर रही हैं। कांग्रेस और भाजपा के अलावा समाजवादी पार्टी भी उनके संपर्क में है। घोसी विधानसभा सीट के उपचुनाव में मायावती ने उम्मीदवार नहीं दिया था, जिसका फायदा सपा को हुआ था। सपा ने इसके लिए उनको धन्यवाद भी दिया। उससे पहले जुलाई में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के जन्मदिन के मौके पर उनको बधाई देकर मायावती ने सद्भाव दिखाया था। सो, दोनों पार्टियों के बीच ऐसा नहीं है कि सब कुछ खत्म हो गया है। पिछले लोकसभा चुनाव के जैसे तालमेल से इस बार भी इनकार नहीं किया जा सकता है। ध्यान रहे पिछले चुनाव में सपा से तालमेल का सीधा फायदा बसपा को हुआ था।
बहरहाल, बसपा के जानकार सूत्रों के मुताबिक मायावती के जनवरी तक फैसला टालने के पीछे दो कारण हैं। पहला कारण तो यह है कि नवंबर में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं, जिनके नतीजे दिसंबर में घोषित होंगी। वे देखना चाहती हैं कि विपक्षी गठबंधन खास कर कांग्रेस पार्टी का इन चुनावों में क्या प्रदर्शन रहता है। इन नतीजों के आधार पर वे अपने विकल्पों का आकलन करेंगी। बताया जा रहा है कि कांग्रेस भी तालमेल के लिए बसपा के संपर्क में है और प्रियंका गांधी वाड्रा ने मायावती के भतीजे आकाश आनंद से बात की है। अगर कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा होता है और मायावती को लगता है कि कांग्रेस का वोट उसकी ओर वापस लौट रहा है तो वे उस हिसाब से तालमेल का फैसला करेंगी।
दूसरा कारण यह है कि वे सरप्राइजए एलीमेंट रखना चाहती हैं। अभी से तालमेल की घोषणा के कई नुकसान हैं। पहला नुकसान तो यह हो सकता है कि केंद्रीय एजेंसियां सक्रिय हो जाएंगी, जिसकी आशंका काफी समय से जताई जा रही है और कहा जा रहा है कि इस वजह से ही मायावती निष्क्रिय हैं। दूसरा नुकसान यह है कि भाजपा को नए सिरे से तैयारी का मौका मिल जाएगा। अगर वे 15 जनवरी को घोषणा करती हैं तो वह चौंकाने वाला होगा क्योंकि फरवरी या मार्च में लोकसभा चुनाव की घोषणा होनी है।