वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पुरातत्वविद के अनुसार ज्ञानवापी के तहखाने के नीचे मंदिर का इतिहास उत्खनन के जरिये पता किया जा सकता है। एएसआइ सर्वे में ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार (जीपीआर) सर्वे भी यही इशारा कर रहे हैं। मंदिर के तहखाने के फर्श के तीन मीटर नीचे भी फर्श मिलने से कई सवाल उठ रहे हैं। एक कुआं भी है, लेकिन वहां अब तक कोई पहुंच नहीं पाया है।
बीएचयू के प्राचीन इतिहास विभाग के प्रोफेसर और पुरातत्वविद अशोक कुमार सिंह ने बताया कि जीपीआर सर्वे के मुताबिक मंदिर का इतिहास गुप्त काल (240 ईसवी से 550 ईसवी) का हो सकता है। पुरातत्वशास्त्र में माना जाता है कि कहीं पुरातात्विक साक्ष्य मिलते हैं तो उसके प्रत्येक एक मीटर नीचे जाने पर पूरी शताब्दी बदलती जाती है। हम समय में पीछे चलते जाते हैं।
खोदाई के साथ-साथ बदलता गया मंदिर का इतिहास
वाराणसी के बभनियांव गांव की खोदाई में भी ऐसा ही हुआ था। गांव में खोदाई की गई तो पहले 500 साल पुरानी वस्तुएं मिलीं। इसके बाद 1000 वर्ष पुरानी, फिर 1500 वर्ष और इसके बाद 2000 साल प्राचीन वस्तुएं, पूजा की सामग्री, मंदिर की दीवार, प्रदक्षिणा पथ आदि मिले थे। जैसे-जैसे खोदाई होती गई, मंदिर का इतिहास बदलता गया। ज्ञानवापी के मसले पर जितना नीचे जाएंगे, स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर के बारे में उतनी ही बातें सामने आएंगी।
एएसआइ ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि मस्जिद से पहले वहां बड़ा हिंदू मंदिर था। 839 पेज की सर्वे रिपोर्ट में कई अहम जानकारियां दी हैं, जिसमें से एक जीपीआर सर्वे हिंदू मंदिर की प्राचीनता का सच सामने ला रहा है। तहखाने के नीचे फर्श का पता चला है, लेकिन वह किस सामग्री से बना है, किस राजवंश और किस वर्ष में बना है, अभी पता नहीं चल पाया है।