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नई दिल्ली। ज्यादातर लोग जब हवाई मार्ग से सामान की खेप पहुंचाने के लिए बुकिंग करते हैं, तो एयरलाइंस के अधिकृत एजेंट के जरिए करते हैं और एजेंट द्वारा समान पहुंचाने के लिए दी गई समय सारिणी को ही सही मानते हैं, लेकिन कभी-कभी जब समान की खेप तय समय पर नहीं पहुंचती और देरी पर हुए नुकसान का हर्जाना मांगा जाता है तो एयरलाइंस यह कहते हुए मुकर जाती हैं कि दिखाओ मेरे साथ कौन सा एग्रीमेंट हुआ था, जिसमें इस तय समय में समान पहुंचाने की बात थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में जो आदेश दिया है, उसके मुताबिक एयरलाइंस एजेंट द्वारा बुकिंग के समय दी गई समय सारिणी से नहीं मुकर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एयरलाइंस अपने एजेंट की ओर से किये गए वादे और दी गई समय-सारिणी से बंधी है।
क्या है मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के समान पहुंचने में देरी पर 30 लाख रुपये मुआवजा देने के आदेश को सही ठहराते हुए कुवैत एयरवेज अपील खारिज कर दी। यह मामला 1996 का है, जिसमें हस्तशिल्प का बहुत सारा सामान अमेरिका पहुंचना था। एयरलाइंस के ट्रैवल एजेंट ने बुकिंग करते वक्त सात दिनों में सामान की खेप पहुंचाने की समय सारिणी दी थी, जबकि सामान डेढ़ महीने बाद पहुंचा, जबकि सामान जल्दी पहुंचाने के लिए समुद्री मार्ग से 10 गुना अधिक भाड़ा देकर हवाई मार्ग से सामान भेजा गया।
सामान समय पर न पहुंचने पर मैसर्स राजस्थान इम्पोरियम, जो कि विभिन्न देशों में हस्तशिल्प के सामानों का एक्सपोर्टर था, ने एनसीडीआरसी में शिकायत दाखिल कर मुआवजा दिलाने की मांग की थी। एनसीडीआरसी ने देरी से सामान पहुंचने पर हुए नुकसान के लिए नौ फीसद ब्याज के साथ 25 लाख रुपये और मानसिक पीड़ा व मुकदमा खर्च के लिए पांच लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ कुवैत एयरवेज ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी।
SC ने एनसीडीआरसी के फैसले को सही ठहराया
एनसीडीआरसी द्वारा तय मुआवजे को और बढ़ाने की मांग लेकर मैसर्स राजस्थान आर्ट इम्पोरियम ने भी अपील दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों अपीलें खारिज कर दी हैं और एनसीडीआरसी के फैसले को सही ठहराया है। न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने एनसीडीआरसी के फैसले में दखल देने से इन्कार करते हुए गत 9 नवंबर को फैसला सुनाया।
क्या बोली अदालत?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में प्रतिवादी कुवैत एयरवेज ने यह दलील नहीं दी है कि डग्गा एयर एजेंट्स उसका एजेंट नहीं है और न ही यह दलील दी है कि एजेंट ने एजेंसी के लिए तय शर्तों के बाहर जाकर काम किया है। कोर्ट ने कहा कि कॉन्ट्रेक्ट एक्ट 1972 की धारा 186 और 188 एजेंट को कानून सम्मत ढंग से जरूरी काम करने का अधिकार देती है। कोर्ट ने कहा कि एयरलाइंस का यह कहना नहीं है कि डग्गा एयर एजेंट उसका एजेंट नहीं है और उसे सामान की खेप पहुंचाने की समय सारिणी देने का अधिकार नहीं था, ऐसे में एयरलाइंस जिम्मेदारी मुक्त नहीं होती।
एयरलाइंस अपने एजेंट द्वारा सामान एक सप्ताह में पहुंचने के, किये गए वादे से बंधी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तय समय बीत गया और वास्तव में सामान डेढ़ महीने बाद पहुंचा तो यह सामान पहुंचाने में हुई लापरवाही पूर्ण देरी थी। कोर्ट ने कहा कि वह एनसीडीआरसी के फैसले में दखल देने का इच्छुक नहीं है और दोनों अपीलें खारिज कर दीं।