- भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए इंडिया गठबंधन-बसपा ने उतारे दिग्गज प्रत्याशी
- बसपा मो. सरवर मलिक के आने से इंडिया गठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार रविदास मेहरोत्रा की मुश्किलें बढ़ी
लखनऊ। लोकसभा सीट वाले उत्तर प्रदेश में लखनऊ सबसे महत्वपूर्ण सीट मानी जाती है। यूपी की राजधानी लखनऊ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कर्मूभूमि रही है। यहां अटल जी पांच बार सांसद चुने गए। यहीं से सांसद रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। इस सीट को बीजेपी का गढ़ माना जाता है। इस सीट पर 1991 से अभी तक बीजेपी का कब्जा है। हालांकि, 2024 लोकसभा चुनाव में इस संसदीय सीट पर बीजेपी ने देश के रक्षामंत्री सांसद राजनाथ सिंह पर तीसरी बार भरोसा जताते हुए उन्हें उम्मीदवार घोषित किया है। इसके साथ ही इंडिया गठबंधन ने विधायक रविदास मेहरोत्रा को उम्मीदवार बनाया है। इसी को देखते हुए बसपा ने लखनऊ सीट पर मुस्लिम दांव खेल दिया है। लखनऊ में ठीक-ठाक मुस्लिम आबादी होने के कारण मुकाबला तो त्रिकोणीय हो सकता है।क्योकि मो. सरवर मलिक के मजबूत चुनाव लड़ने से इंडिया गठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार रविदास मेहरोत्रा को नुकसान हो सकता है, क्योंकि मुस्लिम में सेंधमारी होने से सपा को घाटा हो सकता है।
जानकारों की माने तो लखनऊ सीट में बीजेपी उम्मीदवार राजनाथ सिंह के आगे कोई नहीं टिकने वाला है। राजनाथ सिंह का एक लंबा चौड़ा राजनीतिक इतिहास रहा है। इनके रहते हुए लखनऊ में कई ओवरब्रिज, आउटर रिंग रोड समेत कई विकास से जुड़े काम हुए हैं। वहीं राजनाथ सिंह की छवि कट्टर न होने की वजह से मुस्लिमों उनकी अच्छी पकड़ है। उन्हें मुस्लिम वोट भले ही ज्यादा संख्या में न मिले लेकिन कोई भी खुलकर उनका विरोध नहीं करेगा। लखनऊ में बसपा की तुलना में सपा ज्यादा मजबूत है। इसलिए राजनाथ सिंह को इंडिया गठबंधन के संयुक्त कैंडिडेट रविदास मेहरोत्रा टक्कर दे सकते हैं, लेकिन कांटे की टक्कर जैसा कोई मुकाबला होने की उम्मीद नहीं है।
लखनऊ पर 3 दशकों से रहा है भाजपा का कब्जा
लखनऊ लोकसभा क्षेत्र भाजपा के लिए कितना अहम है, इस बात का अंदाजा आप ऐसे लगा सकते हैं कि इस सीट पर साल 1991 में दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने जो जीत का झंडा गाड़ा, कमल का वह ध्वज आजतक लहरा रहा है। तब से सपा और कांग्रेस ने कितने ही प्रत्याशियों को लखनऊ से लड़ाया, लेकिन भाजपा तब से इस सीट पर अजेय है। लखनऊ, असल में पूर्व पीएम और भाजपा के संस्थापक सदस्य रहे अटल बिहारी बाजपेयी की भी कर्मभूमि रहा है।
जातीय समीकरण साध रहे सभी राजनितिक दल
लखनऊ लोकसभा में करीब 18 प्रतिशत मतदाता राजपूत और ब्राह्मण हैं। वहीं, तकरीबन 18 फीसदी मुस्लिम वोटरों की भागीदारी है। यही नहीं, 28 फीसदी ओबीसी, 0.2 फीसदी अनुसूचित जनजाति और करीब 18 फीसदी अनुसूचित जाति के मतदाता हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर लखनऊ लोकसभा में 26.36 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। सभी जातियों की आबादी को देख राजनीतिक दल मतदाताओं को साधने के लिए हर जुगत लगा रहे हैं।
बसपा के दांव से इंडिया गठबंधन को होगा नुकसान
बता दें, यूपी में 80 लोकसभा सीट होने चलते 7 चरणों में वोटिंग होगी। वहीं लखनऊ लोकसभा सीट के लिए पांचवे फेंज यानी 20 मई को वोटिंग होनी है। बीजेपी ने लखनऊ से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को कैंडिडेट घोषित किया है। इसके साथ ही सपा ने विधायक रविदास मेहरोत्रा को उम्मीदवार बनाया है। इसी को देखते हुए बसपा ने लखनऊ सीट पर मुस्लिम दांव खेल दिया है। लखनऊ में ठीक-ठाक मुस्लिम आबादी होने के कारण मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है। सरवर मलिक के मजबूत चुनाव लड़ने से इंडिया गठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार रविदास मेहरोत्रा को नुकसान हो सकता है, क्योंकि मुस्लिम में सेंधमारी होने से सपा को घाटा हो सकता है।
‘यूपी में कोई नहीं बीजेपी की टक्कर में’
वरिष्ठ पत्रकार गोविंद मिश्रा की मानें तो ना यूपी में कहीं कोई फाइट है और ना ही लखनऊ में कोई फाइट है। सपा कैंडीडेट रविदास मेहरोत्रा सिर्फ एक सीट से विधायक हैं, जबकि राजनाथ सिंह लखनऊ की कई सीट पर बीजेपी उम्मीदवारों को जिता चुके हैं। मेयर भी बीजेपी का है, इसलिए राजनाथ सिंह का विस्तार रविदास मेहरोत्रा या इंडिया गठबंधन या फिर बसपा के मो. सरवर मलिक से निश्चित तौर पर ज्यादा है।
लखनऊ लोकसभा चुनाव 2019 का परिणाम-
प्रत्याशी पार्टी कुल वोट प्रतिशत
राजनाथ सिंह बीजेपी 633026 56 – 64%
पूनम शत्रुघ्न सिन्हा सपा 285724 25 – 57%
आचार्य प्रमोद कृष्णम
कांग्रेस 180011 16 – 11%