- विजयलक्ष्मी पंडित, हेमवती नंदन बहुगुणा, शीला कौल, अटल बिहार वाजपेयी, लालजी टंडन भी रह चुके हैं यहां से सांसद
- अटल के गढ़ में सेंध लगाना नहीं आसान, 1991 से अब तक यहां नहीं हारी भाजपा
- वर्तमान में देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह लड़ रहे तीसरी बार चुनाव
अजय सिंह चौहान
निष्पक्ष प्रतिदिन,लखनऊ। देश की मशहूर हाई प्रोफाइल लोकसभा सीटों में राजधानी लखनऊ सीट का भी नाम आता है। यह सीट दिवंगत पूर्व प्रधामनंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीतिक कर्मभूमि रही है। सपा और बसपा इस सीट पर आज तक अपना खाता भी नहीं खोल नहीं पायी हैं। यहां पर 1991 से लगातार भाजपा का कब्जा है। मौजूदा समय में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह लखनऊ से सासंद हैं। भाजपा के इस गढ़ को भेदना विपक्षी दलों के लिए आसान नहीं होगा।आंकड़ों पर गौर करें तो लखनऊ संसदीय क्षेत्र से 1991 से लेकर 2019 तक लगातार भाजपा जीतती आ रही है। यदि 1996 के आम चुनाव से लेकर अब तक की बात करें तो यहां से सपा, कांग्रेस या फिर बसपा की ओर से कोई न कोई बाहरी नामचीन चेहरा या फिर किसी बॉलीवुड के सितारे को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा जाता रहा है। हालांकि इस शहर पर न तो कभी बॉलीवुड के सितारों का जादू चला है और न ही किसी बड़े नामचीन नाम का असर हुआ। सभी को यहां हार का सामना करना पड़ा है।अब सवाल ये है कि क्या इस बार बसपा व इंडिया गठबंधन की संयुक्त ताकत राजनाथ का विजय रथ रोक सकेगी?क्या इस बार भी अटल की सीट पर अटल रहेंगे राजनाथ सिंह?जीत का ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो मतगणना के बाद ही पता चलेगा, लेकिन चर्चा है कि कई साल बाद विपक्ष ने भाजपा को घेरने की इस बार मजबूत घेराबंदी की है।
इस बार के लोकसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा ने इस बार भी राजनाथ सिंह पर ही दांव लगाया है। वहीं इंडिया गठबंधन ने इस सीट से रविदास मेहरोत्रा को उम्मीदवार बनाया है। हालांकि रविदास मेहरोत्रा का यहां अपना जनाधार है।रविदास साल 2022 में मोदी-योगी लहर के बावजूद लखनऊ मध्य सीट से विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी।वे साल 2012 से इस सीट पर जीतते रहे हैं।हालांकि 2017 में प्रदेश में कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद वे यहां से हार गए थे।अब उन्हें पार्टी ने राजनाथ सिंह की हैट्रिक तोड़ने का मिशन दिया है।रविदास अपने जनाधार के आलावा सपा व कांग्रेस के वोट बैंक के सहारे इस सीट पर राजनाथ को टक्कर देने उतरे हैं। बसपा ने लखनऊ उत्तरी से विधानसभा का चुनाव लड़ चुके सरवर अली को मैदान में उतारकर चुनाव को रोमांचक बना दिया है।सरवर मालिक लखनऊ की उत्तरी सीट से 2022 में बसपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। हालांकि इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इतना ही नहीं बीते नगर निगम चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने बसपा नेता सरवर मलिक की पत्नी शाहीन बानो को लखनऊ मेयर के लिए उम्मीदवार घोषित किया था। उन्हें भी बीजेपी की सुषमा खर्कवाल ने शिकस्त दे दी थी। सरवर मलिक की गिनती बसपा सुप्रीमो मायावती के बेहद करीबियों में होती है।लखनऊ लोकसभा सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें लखनऊ पश्चिम, लखनऊ उत्तर, लखनऊ पूर्व, लखनऊ मध्य और लखनऊ कैंट विधानसभा सीट शामिल है। पांचों विधानसभा सीटों पर इस बार भाजपा का तीन सीटों पर कब्जा था।लेकिन लखनऊ पूर्व विधानसभा सीट से भाजपा के विधायक गोपाल टंडन की मृत्यु के बाद यहां लोकसभा चुनाव के साथ ही इस सीट पर उप चुनाव होना है।इसलिए फिलहाल मौजूदा समय में लखनऊ संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली पांचों विधानसभा सीटों में से दो पर ही भाजपा का कब्जा है।
त्रिकोणीय हो सकता है मुकाबला
सपा ने लखनऊ मध्य से विधायक रविदास मेहरोत्रा को उम्मीदवार बनाया है। रविदास ने केकेसी से अपनी राजनीति शुरू की थी। उनकी गिनती मुलायम सिंह के करीबियों में होती है। इसी के चलते सपा ने भाजपा का गढ़ में सेंध लगाने की जिम्मेदारी रविदास को सौंपी है। हालांकि बसपा ने लखनऊ सीट पर मुस्लिम दांव खेल दिया है। लखनऊ में ठीक-ठाक मुस्लिम आबादी होने के कारण मुकाबला त्रिकोणीय बन सकता है। सरवर मलिक के मजबूत चुनाव लड़ने से इंडिया गठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार रविदास मेहरोत्रा को नुकसान हो सकता है।
स्थानीय मुद्दे
- वैसे तो लोकसभा चुनाव देश के मुद्दे पर लड़ा जाता है, लेकिन स्थानीय मुद्दों का भी महत्व होता है। आशियाना के रहने वाले अंकित कुमार, सुजीत सिंह का कहना है कि 2014 के बाद 2019 में विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा गया था। लेकिन लखनऊ का मुद्दा था रोजाना का लगने वाला जाम, सुरक्षा, सड़क, बिजली पानी, अनियमित कॉलोनियों का नियमितीकरण रहा है। हालांकि जाम से निजात दिलाने के लिए किसान पथ का निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चुका है। इसकी वजह से रिंग रोड पर लगने वाला जाम ख़त्म होगा। इसके अलावा कई फ्लाईओवर को मंजूरी दी गई है, जिनमें कई पर काम शुरू हो चुका है।वहीं शहर को स्वच्छ बनाने के लिए भी कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। गोमती नदी के सफाई का मुद्दा भी अहम है। स्मार्ट सिटी के तौर पर विकसित करने के लिए मॉडर्न ट्रैफिक मैनेजमेंट पर भी तेजी से काम हो रहा है।
राजनीतिक इतिहास
आजादी के बाद लखनऊ संसदीय सीट पर कुल 17 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा 8 बार भाजपा और 6 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है। इसके अलावा जनता दल, भारतीय लोकदल और निर्दलीय ने एक-एक बार जीत दर्ज की है।
भाजपा की जीत का सिलसिला अभी तक कायम
पांच बार इस सीट से जीते अटल बिहारी वाजपेयी
वाजपेयी की जीत का सिलसिला लगातार पांच आम चुनावों तक चलता रहा। वाजेपयी ने अंतिम बार वर्ष 2004 में यहां से चुनाव लड़ा था। उन्होंने जीत हासिल की थी। हालांकि उनकी सेहत खराब होने की वजह से वर्ष 2009 में इस सीट से भाजपा ने उनके नजदीकी लालजी टंडन को इस सीट से उम्मीदवार बनाया। वह भी इस सीट से संसद पहुंचने में कामयाब रहे। इसके बाद पिछले आम चुनाव में उम्र का हवाला देते हुए लालजी टंडन का टिकट काट दिया गया। फिर राजनाथ को यहां से टिकट मिला। राजनाथ भी इस सीट से भारी अंतर से चुनाव जीतने में सफल रहे।
जातीय समीकरण साध रहे सभी राजनितिक दल
लखनऊ लोकसभा में करीब 18 प्रतिशत मतदाता राजपूत और ब्राह्मण हैं। वहीं, तकरीबन 18 फीसदी मुस्लिम वोटरों की भागीदारी है। यही नहीं, 28 फीसदी ओबीसी, 0.2 फीसदी अनुसूचित जनजाति और करीब 18 फीसदी अनुसूचित जाति के मतदाता हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर लखनऊ लोकसभा में 26.36 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। सभी जातियों की आबादी को देख राजनीतिक दल मतदाताओं को साधने के लिए हर जुगत लगा रहे हैं।
लाकेसभा वर्ष जीता हुआ प्रत्याशी
2019 राजनाथ सिंह, भाजपा
2014 राजनाथ सिंह, भाजपा
2009 लालजी टंडन, भाजपा
2004 अटल बिहारी वाजपेयी, भाजपा
1999 अटल बिहारी वाजपेयी, भाजपा
1998 अटल बिहारी वाजपेयी, भाजपा
1996 अटल बिहारी वाजपेयी, भाजपा
1991 अटल बिहारी वाजपेयी, भाजपा
1989 मांधाता सिंह, जनता दल
1984 शीला कौल, कांग्रेस
1980 शीला कौल, कांग्रेस
1977 हेमवती नंदन बहुगुणा, भारतीय लोकदल
1971 शीला कौल, कांग्रेस
1967 एएन मुल्ला, निर्दल
1962 बी के धवन, कांग्रेस
1957 पुलिन बिहारी बनर्जी, कांग्रेस
1952 (लखनऊ सेंट्रल) विजय लक्ष्मी पंडित, कांग्रेस
1952 (लखनऊ-बाराबंकी) मोहन लाल सक्सेना