लोकसभा चुनाव 2024: अकबरपुर लोकसभा सीट से ये प्रत्याशी लड़ेंगे चुनाव…

कानपुर। लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने के साथ ही कभी बिल्हौर के नाम से जानी जाने वाली अकबरपुर लोकसभा सीट पर भी सियासी पारा चढ़ना शुरू हो गया है। चुनाव में इस बार जहां भारतीय जनता पार्टी की ओर से देवेंद्र सिंह भोले हैट्रिक लगाने के लिए कदमताल कर रहे हैं। वहीं, इस सीट पर लोकसभा चुनाव में सपा एक बार भी अपना खाता खोलने में नाकाम रही है।

इस बार पार्टी कांग्रेस के साथ मिलकर पूर्व सांसद राजाराम पाल के चेहरे के दम पर इलाके में अपनी साइकिल दौड़ाने की जुगत में लगी है। इसके अलावा दो बार लोकसभा चुनाव में जीत का स्वाद चख चुकी बहुजन समाज पार्टी बसपा इस बार ब्राह्मण चेहरे राजेश द्विवेदी की बदौलत सोशल इंजीनियरिंग की मदद से चुनाव में जीत का परचम लहराने के लिए मैदान में उतरी है। हालांकि सभी दलों और उनके प्रत्याशियों के पक्ष में कई तरह के लाभ और कई तरह की चुनौतियां भी हैं।

चूंकि सभी पार्टियों ने चुनाव की घोषणा से पहले ही प्रत्याशियों के नाम का एलान कर दिया था। इसलिए माना जा रहा है कि सभी के पास चौथे चरण के चुनाव से पहले तक अपनी कमजोरियों व चुनौतियों को दूर कर जीत हासिल करने का समय है। फिलहाल सभी दलों के प्रत्याशी प्रचार में जुट गए हैं। देखना यह है कि तीनों में से किस दल की सियासी रणनीति उसे जिताने में सफल रहती है।

देवेंद्र सिंह भोले
ताकत:
भाजपा की ओर से चुनाव मैदान में उतरे देवेंद्र सिंह भोले लगातार दो बार सांसद बन चुके हैं। भाजपा के फुट सोल्जर्स से लेकर आरएसएस के कार्यकर्ताओं का नेटवर्क उनके पास है। ठाकुर होने की वजह से जातीय समर्थन मिल सकता है। साथ ही मोदी की गारंटी है जिसके भरोसे देश भर के नेता चुनाव मैदान में हैं।

कमजोरी: दो बार सांसद होने के बाद उनके खिलाफ सत्ता विरोधी लहर बड़ा फैक्टर है। इसके अलावा जो पांच विधानसभा क्षेत्र उनके लोकसभा क्षेत्र में आते हैं, उनमें बिठूर, अकबरपुर रनियां के विधायकों से उनका बैर जग जाहिर है। साथ ही शहर में रह रहे कई भाजपा नेताओं से उनकी पंचायत चुनावों को लेकर रही रार उन्हें नुकसान पहुंचा सकती है।

राजाराम पाल
ताकत:
सपा-कांग्रेस गठबंधन की वजह से स्थिति बेहतर हैं। कई बार सांसद और विधायक रह चुके राजाराम पाल मिलनसार नेता माने जाते हैं। सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं और कांग्रेस से पूर्व सांसद रहने की वजह से पार्टी भी पूरी मदद कर रही है। वहीं, बसपा से भी सांसद रहने के कारण वहां भी दोस्तों की काफी संख्या है। अकेले पिछड़े नेता हैं जो चुनाव मैदान में हैं, इसलिए जातीय समीकरण उनके लिए बेहतर हैं।

कमजोरी: भले सपा-कांग्रेस साथ है लेकिन इस सीट पर अल्पसंख्यक वोटों की संख्या खास नहीं है। पिछले दो चुनाव में उनकी हार का अंतर पौने तीन लाख से ज्यादा रहा है। पिछले चुनावी आंकड़ों को देखें तो विपक्षी भोले को 5.81 लाख वोट मिले थे जबकि सपा-कांग्रेस को अब तक के सभी चुनावों में मिले अधिकतम वोटों का जोड़ भी इस आंकड़े के आसपास नहीं पहुंचता है। वहीं, पांचों विधानसभा सीटों पर विपक्षी भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल एस के विधायक हैं।

राजेश द्विवेदी
ताकत:
ब्राह्मण नेता होने के नाते सवर्ण वोटों को अपने पक्ष में कर सकते हैं। सीट पर ओबीसी के बाद अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। सवा लाख अल्पसंख्यक वोटों में से वह अपने पक्ष में मतदान की उम्मीद कर सकते हैं। सत्ताधारी सांसद के खिलाफ नाराजगी का लाभ मिल सकता है।

कमजोरी: पिछले सभी लोकसभा चुनावों के आंकड़ों को देखें तो चेहरा ब्राह्मण हो या पिछड़ा, बसपा को डेढ़ से दो-सवा दो लाख वोट मिलते रहे हैं। सपा से गठबंधन की वजह से पिछले चुनाव में बसपा प्रत्याशी तीन लाख का आंकड़ा पार कर पाया था। सपा-कांग्रेस गठबंधन की वजह से अल्पसंख्यक वोटों की हिस्सेदारी में नुकसान हो सकता है।

क्या कहते हैं आंकड़े
आंकड़ों की बात करें तो कानपुर शहर के कल्याणपुर, बिठूर महाराजपुर व घाटमपुर विधानसभा क्षेत्र के अलावा कानपुर देहात की अकबरपुर रनियां विधानसभा क्षेत्र को मिलकर अकबरपुर लोकसभा क्षेत्र बनता है। इस लोकसभा क्षेत्र में करीब 18 लाख मतदाता हैं। जातीय गणित की बात करें तो इस सीट पर ओबीसी और अनुसूचित जाति का दबदबा है। करीब पौने सात लाख पिछड़े वर्ग के मतदाता हैं जबकि एससी वोटरों की संख्या करीब साढ़े चार लाख है। सामान्य श्रेणी के मतदाताओं की संख्या करीब पौने छह लाख है। वहीं, सवा लाख मुस्लिम मतदाता हैं।

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