लोकसभा चुनाव 2024: पुराने दिग्गजों को नजरअंदाज कर भाजपा ने नए चेहरों पर लगाया दांव…

बरेली | भाजपा का मजबूत गढ़ बन चुकी बरेली मंडल और उसके आसपास की सात सीटों में इस बार समीकरण बदले हैं। बरेली, बदायूं और पीलीभीत में पुराने दिग्गजों को नजरअंदाज कर भाजपा ने नए चेहरों पर दांव लगाया है। इसमें नए चेहरों के सामने इस मजबूत गढ़ को बचाने के साथ ही पार्टी के विश्वास पर खरे उतरने की चुनौती है।

उधर, लखीमपुर खीरी, शाहजहांपुर, धौरहरा और आंवला सीट पर पार्टी ने पुराने चेहरों पर ही भरोसा जताया है। इसमें खीरी से दो बार चुनावी किला भेद चुके अजय मिश्र टेनी, धौरहरा से रेखा वर्मा और आंवला से हैट्रिक की कवायद में जुटे धर्मेंद्र कश्यप को भी अपने ही प्रदर्शन से साबित करने की चुनौती है।

बरेली मंडल और आसपास की सात लोकसभा सीट की तीन पुराने चेहरों में कई हैट्रिक के कगार पर हैं और उनके सामने अपने ही प्रदर्शन को बेहतर कर वर्चस्व बचाने की चुनौती है। फिलहाल पार्टी ने पुराने समीकरणों के आधार पर प्रत्याशियों का चयन किया है। बरेली से संतोष गंगवार की जगह पर पूर्व मंत्री छत्रपाल गंगवार को मौका दिया है। इसमें जातीय समीकरण को उसी आधार पर साधने की कोशिश हुई है।

इसी तरह बदायूं में संघमित्रा मौर्य की जगह दुर्विजय सिंह शाक्य पर भरोसा जताया है। इसमें भी सैनी, मौर्य, शाक्य वोट बैंक को साधने के समीकरण को ध्यान में रखकर ही प्रत्याशी मैदान में उतारा गया है।यहां बता दें कि सपा-कांग्रेस गठबंधन ने इस चुनाव में मुस्लिम चेहरों से किनारा किया है। उसके पीछे मुस्लिम मतों को एकजुट करने के साथ ही हिंदू मतों में सेंधमारी की रणनीति है। ऐसे में भाजपा के सामने हिन्दू मतों को पूरी तरह साधने की भी चुनौती है।

टिकट नहीं मिलने वालों के रुख पर नजर
आठ बार सांसद रहे संतोष गंगवार अपनी उम्र की बाधा की वजह से टिकट की रेस से बाहर हुए। हालांकि उन्होंने अब तक पार्टी लाइन पर रहकर ही अपना रुख स्पष्ट किया है। उधर, बदायूं सांसद संघमित्रा मौर्य ने भी उनकी जगह पर प्रत्याशी बने शाक्य को सोशल मीडिया पर बधाई देकर अपनी नाराजगी जाहिर नहीं होने दी। पीलीभीत में भी दो बार के सांसद रहे वरुण गांधी ने चुप्पी साधकर पार्टी की सहानुभूति हासिल की है। ऐसे में टिकट कटने वालों के रुख पर भी पार्टी की नजर होगी।

बसपा का प्रदर्शन तय करेगा परिणाम
मुस्लिम मतों को साधने के लिए बसपा ने बदायूं, पीलीभीत सहित कई सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। सपा भी मुस्लिम मतों पर भरोसा कर रही है और हिन्दू मतों में सेंधमारी करने की कोशिश में है। ऐसे में बसपा के प्रदर्शन भी काफी हद तक परिणाम निर्भर होगा।

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