चंडीगढ़। इन दिनों दो बड़ी रोचक घटनाएं घटित हुई हैं, जिसने पंजाब की राजनीति का परिदृश्य ही बदल दिया है। इन घटनाओं का चुनाव परिणाम पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह तो चार जून को ही पता चलेगा, लेकिन नेताओं के बदलते हुए व्यवहार पर शोध कर रहे विद्यार्थियों के लिए यह एक रोचक विषय जरूर बन गया है।
बेअंत सिंह के पोते ने थामाा भाजपा का दामन
पहली घटना कांग्रेस के तीन बार के सांसद रवनीत बिट्टू की है, जो दिल्ली जाकर भाजपा में शामिल हो गए। ये वही बिट्टू हैं जो तीन कृषि कानूनों के पारित होने के बाद भाजपा नेताओं के प्रति ऐसे अपशब्द इस्तेमाल करते थे, जिनको लिखने पर कलम को भी शर्म आ जाए।
बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते जिनके परिवार में दो मंत्री, एक विधायक और एक सांसद (खुद रवनीत बिट्टू ) रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की विधवा जसवंत कौर बेअंत सिंह की मौत के बाद ताउम्र कैबिनेट दर्जा प्राप्त महिला रही हैं।
आप के इकलौते सांसद ने छोड़ी पार्टी
दूसरी घटना आम आदमी पार्टी के लोकसभा में एकमात्र सांसद सुशील रिंकू की है। वह कांग्रेस के पूर्व विधायक रहे। आम आदमी पार्टी में शामिल होने से पहले उन्होंने कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय में पार्टी को छोड़कर जाने वालों को गद्दार कहते हुए लंबा चौड़ा भाषण दिया, लेकिन कुछ ही दिन में आप में शामिल हो गए और जालंधर में हुए संसदीय उपचुनाव में पार्टी टिकट पर जीत गए।
जब लोकसभा और राज्यसभा में 50 से ज्यादा सांसदों को निलंबित किया गया तो पीली पगड़ी पहनकर खुद को बेड़ियों में बंधा दिखाकर उन्होंने संसद परिसर में प्रदर्शन किया। आम आदमी पार्टी ने उन्हें फिर से जालंधर से टिकट दे दी, लेकिन अभी उन्होंने अपना प्रचार अभियान भी शुरू नहीं किया था कि पता चला कि वह भी भाजपा में चले गए हैं। साथ ही अपने धुर विरोधी विधायक शीतल अंगुराल को भी ले गए हैं।
क्यों थामा भाजपा का दामन?
अब सवाल यह है कि जिस पार्टी को यह नेता पानी पी पीकर कोसते रहे हैं। उसमें वे क्या सोच कर गए हैं। रवनीत बिट्टू के पास तो इसका जवाब है। उनका कहना है कि वह तीन बार के सांसद हैं। जब भी विपक्षी बेंच पर बैठे होते थे तो सोचा करते थे कि क्या कभी हमारी भी बारी आएगी कि हम सत्तारूढ़ पार्टी की बेंच पर बैठेंगे।
सुशील रिंकू का जवाब कुछ अलग है। उनका कहना है कि वह कांग्रेस को छोड़कर आप में शामिल हुए तो उन्हें कई सब्जबाग दिखाए गए। पंजाब में सत्तारूढ़ होने के बावजूद पार्टी ने उनकी पीठ पर कभी हाथ नहीं रखा। इसलिए वह एक ऐसी पार्टी में शामिल हो रहे हैं, जिसकी तीसरी बार सरकार बनना तय है।
क्या भाजपा के पास नहीं हैं चेहरे?
सुशील रिंकू को तो आप से फिर टिकट मिल गया था, जबकि बिट्टू को भी टिकट मिलनी तय थी, लेकिन इन्होंने आप और कांग्रेस में रहकर लड़ने की बजाय भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने को प्राथमिकता दी। चूंकि, भारतीय जनता पार्टी पहली बार राज्य की सभी 13 सीटों पर लड़ रही है और सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी होने के बावजूद उसके पास इतने उम्मीदवार ही नहीं हैं कि वे सभी पर अपने काडर के उम्मीदवार खड़े कर सके।
इसलिए इन नेताओं को आप और कांग्रेस की बजाय भाजपा में अपना भविष्य सुनहरा दिख रहा है। इन्हें लग रहा है कि केंद्र में भाजपा सरकार बननी तय है। ऐसे में अगर वे चुनाव हार भी जाते हैं तो भी उनका भाजपा में भविष्य सुरक्षित है।
भाजपा ने भी दिया साफ संदेश
उधर, भाजपा भी बड़े चेहरों को लाकर अपनी मजबूती का संकेत दे रही है। भाजपा के लिए फिलहाल बात जीतने की नहीं है बल्कि मजबूत से लड़ने की है। शिअद के साथ गठबंधन में रहने के कारण पार्टी राज्य की 117 में से 23 विधानसभा और 13 में से 3 संसदीय सीटों तक ही सीमित रही है।
साल 2022 के चुनाव में पार्टी शिरोमणि अकाली दल से अलग होकर लड़ी, लेकिन मात्र दो सीटों तक सीमित होकर रह गई। अभी तक सभी राजनीतिक विश्लेषक उसे पंजाब में सबसे कमजोर पार्टी के रूप में देख रहे थे, लेकिन लगातार हो रहे राजनीतिक विस्फोटों के बाद भाजपा को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया गया है।
भाजपा 2024 में बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर 2027 के विधानसभा चुनाव में आप और कांग्रेस को चुनौती देने के मूड में है।