गंगा स्नान के महत्व के बारे में जानिए…

भगवान शिव की जटाओं से निकलने वाली गंगा, जब हिमालय से होते हुए तराई क्षेत्रों में आती है तो इनका धार्मिक महत्व और अधिक बढ़ जाता है। इसलिए विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में गंगा जल का प्रयोग निश्चित रूप से किया जाता है। हमारे देश में जहां नदियों को पवित्र और महत्वपूर्ण दर्जा दिया जाता है, वहीं गंगा नदी को मां और देवतुल्य कहा गया है। गंगा को हमारे शास्त्रों में बहुत ही पवित्र और पुण्यकारी कहा गया है जिसमें स्नान मात्र से इंसान के सारे पाप धुल जाते हैं। हर साल कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि को गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और गंगा में स्नान किया जाता है। इसे कार्तिक पूर्णिमा भी कहा जाता है।

गंगा स्नान की तिथि
इस साल की बात करें तो गंगा स्नान की तिथि 27 नवंबर बताई जा रही है। पंचांग और उदया तिथि के मुताबिक देखा जाए तो कार्तिक माह की पूर्णिमा की तिथि 26 नवंबर की दोपहर को 3.53 मिनट से आरंभ हो रही है और 27 नवंबर को दोपहर 2.45 मिनट तक चलेगी। ऐसे में गंगा स्नान 27 नवंबर को मनाया जाएगा।

गंगा स्नान का महत्व
गंगा भगवान शिव की जटाओं से निकल कर धरती पर आई हैं। इन्हें देव तुल्य कहा गया है और इस नदी को वरदान है कि जो भी इसमें स्नान करेगा उसके समस्त जीवन के पाप कर्म धुल जाएंगे। ऐसे में हर साल गंगा करोड़ों लोग स्नान करते हैं। गंगा के घाट जैसे हरिद्वार, काशी आदि पर गंगा स्नान के दिन भारी भीड़ जुटती है और श्रद्धालु गंगा मां की आरती करके गंगा स्नान करते हैं और इस दिन दान पुण्य भी किया जाता है।

गंगा में स्नान ना कर पाएं तो…
अगर आप गंगा स्नान के दिन गंगा नदी नहीं जा सकते हैं तो मायूस होने की जरूरत नहीं है। आप घर पर ही नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं और इसके बाद भगवान विष्णु और मां गंगा की पूजा कर सकते हैं। इससे भी आपको गंगा स्नान का फल मिलेगा।

जब मां गंगा को हुआ भगवान शिव से प्रेम
गंगा स्नान का विशेष महत्व है। शिव पुराण की एक कथा के अनुसार, गंगा भी मां पार्वती की भांति भगवान शिव को पति के रूप में पाना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने साथ रखने का वरदान दिया। वरदान के कारण जब मां गंगा धरती पर अपने पूरे वेग के साथ आईं तो जल प्रलय आ गया।

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