बरेली| बरेली के सुरेश शर्मा नगर के तिहरे हत्याकांड में जिन आठ छैमारों को फांसी की सजा सुनाई गई है, उनमें से एक महिला हाशिमा के बेटे को पढ़ाने की जिम्मेदारी भी फांसी की सजायाफ्ता शबनम के कंधों पर है।
अमरोहा के बावनखेड़ी नरसंहार कांड की चर्चित खलनायिका शबनम बरसों से सेंट्रल जेल टू के अहाते में बंद रहकर शिक्षा की अलख जगा रही है। वह बंदी-कैदियों के दस बच्चों की शिक्षिका बनी हुई है।
जिला जेल (सेंट्रल जेल टू) में ही वह छैमार गिरोह काफी समय से बंद है जिसने 2010 में सुरेश शर्मा नगर में सॉफ्टवेयर इंजीनियर योगेश मिश्रा, उनकी पत्नी व मां की निर्ममता से हत्या कर करीब अस्सी लाख रुपये की डकैती डाली थी। मामले में पुलिस ने आठ छैमार और एक सराफ को गिरफ्तार कर जेल भेजा था।
इनमें दो महिलाएं नाजिमा व उसकी बहू हाशिमा भी थीं जिन्होंने घटना से पहले रेकी की थी। हाशिमा जब जेल भेजी गई थी तो वह गर्भवती थी। उसने जेल में ही बेटे को जन्म दिया था। अब हाशिमा को फांसी की सजा सुनाई गई है।
जेल लौटीं नाजिमा व उसकी बहू हाशिमा फांसी की सजा से काफी घबराई हुई हैं। हाशिमा को अपने बेटे के भविष्य की चिंता भी सता रही है। उसके साथ पति, सास समेत सभी परिजनों को फांसी होने की स्थिति में बेटे की परवरिश को लेकर डर उसके मन में बैठा है।
जेल सूत्रों के मुताबिक ऐसे में जेल में पहले से बंद शबनम उन्हें दिलासा दे रही है। दरअसल शबनम को खुद काफी समय पहले फांसी की सजा हो चुकी है और उसकी दया याचिका राष्ट्रपति के यहां विचारणीय है।
अमरोहा के बाबनखेड़ी गांव निवासी शबनम ने 15 अप्रैल 2008 को प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने पिता शौकत अली, मां हाशमी, भाई अनीस अहमद, भाभी अंजुम, अनीस के दस माह के बेटे अर्श, भतीजी राबिया और भाई राशिद की कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी थी।
शबनम ने खाने में नशा देकर पहले पूरे परिवार को बेहोश किया था और फिर सलीम के साथ उन्हें कुल्हाड़ी से काट डाला था। बताते हैं कि इस तरह के नृशंस हत्याकांड में देश में किसी महिला को तब पहली बार फांसी की सजा हुई थी।
उच्चतम न्यायालय तक से उसकी दया याचिका खारिज हो चुकी है। शबनम जब जेल गई थी तो वह गर्भवती थी। उसका बेटा ताज उर्फ बिट्टू अब 15-16 साल का हो चुका है और कभी-कभार जेल में उससे मिलने आता है। सेंट्रल जेल में शबनम बंदियों के दस बच्चों को पढ़ा रही है। हाशिमा का बेटा भी इनमें शामिल है।