पकड़े महज चार बच्चे, उड़ रही बालश्रम  काननू की धज्जियां  

जौनपुर। जनपद बाल एवं किशोर श्रमिको के निरीक्षण, चिन्हांकन एवं पुनर्वासन हेतु विशेष बाल श्रम चिन्हांकन अभियान संचालित कर बाल श्रमिको के निरीक्षण, चिन्हांकन हेतु टास्क फोर्स का गठन किया गया। सहायक श्रम आयुक्त द्वारा प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि चिन्हांकन के दौरान 4 किशोर श्रमिक जो मौके पर कार्य करते हुए पाये गये, उनके नियोजको के विरूद्व अधिनियम का उल्लंघन करते हुए पाये जाने के फलस्वरूप निरीक्षण टिप्पणी निर्गत कर दी गयी है। सिर्फ चार श्रमिक मिले जो हास्यास्पद है। चार सौ से अधिक बाल मजदूर काम कर रहे है और टास्ट फोर्स हर साल खानापूर्ति और दिखावे के लिए चिन्हाकन कर बाल श्रम को बढावा देने में सहयोग कर रही है। प्रबुद्धजनों ने मांग किया है कि जांच कराकर ुिर से चिन्हांकन कराया जाय। ज्ञात हो कि जिले में  में खुलेआम बालश्रम कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। हर चैराहे, हर नुक्कड़ पर एक बच्चा पंचर बनाता दिख जाता है। चाय की दुकानों में , होटल और ढाबों में अन्य तमाम प्रकार की दुकानों में बच्चे कप-गिलास धोते हुए दिख जाते हैं। गुटखे और पान-मसालों का दुकानों में भी बच्चों का इस्तेमाल किया जाता है। गरीबी के चलते कमाने को मजबूर इन बच्चों की आंखें स्कूल जाती राहों को ताकती हैं। बावजूद इसके पुलिस प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है।

बचपन एक ऐसी उम्र होती है, जब बिना किसी तनाव के मस्ती से जिंदगी का आनंद लिया जाता है। नन्हे होंठों पर फूलों सी खिलती हंसी, मुस्कुराहट, शरारत, जिद पर अड़ जाना यह सब बचपन की पहचान होती है। इन सबके उलट कुछ बच्चे अपने बचपन से महरूम हो गए हैं। उनका बचपन कभी साइकिल की दुकान में पंचर बनाते, तो कभी चाय की दुकान में जूठे-बर्तन धोते हुए खत्म हो रहा है। दुकानों पर सामान बेचते-बेचते उनके भविष्य का सपना भी कहीं बिक जाता है।  ज्ञात हो कि बालश्रम (निषेध और नियमन) कानून 1986 यह कानून 14 साल से कम उम्र के बच्चों को किसी भी तरह के शारिरीक श्रम की अनुमति नहीं देता। इसके तहत 13 पेशा और 57 प्रक्रियाएं हैं। इन्हें बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना गया है।फैक्ट्री कानून 1948रू यह कानून 14 साल से कम उम्र के बच्चों के नियोजन की मनाही करता है। 15 से 18 साल तक के किशोर किसी फैक्ट्री में तभी नियुक्त किए जा सकते हैं, जब उनके पास किसी डॉक्टर द्वारा जारी फिटनेस सर्टिफिकेट हो। इस कानून में 14 से 18 साल तक के बच्चों के लिए रोजाना साढ़े चार घंटे की कार्यावधि तय की गई है। रात में उनके काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया है।

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