अहमदाबाद। यह बात है 1973/74 के क्रिकेटिंग सीज़न की। लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर रणजी ट्रॉफी खेलने राजकोट आए थे। यहां रेसकोर्स ग्राउंड पर सौराष्ट्र और मुंबई के बीच मैच खेला जा रहा था। किशोर त्रिवेदी नाम का ऑफ स्पिनर सौराष्ट्र के लिए अपना पहला मैच खेल रहा था। उनकी गेंदें अच्छी तरह टर्न हो रही थीं और उछाल पा रही थीं।
हालांकि, हम सभी जानते हैं कि सुनील गावस्कर का डिफेंस कितना अच्छा है। वे लगातार गेंद का डिफेंड कर रहे थे। इसके बाद स्पिनर ने वही किया जो टर्निंग ट्रैक पर बल्लेबाज का विकेट लेने में सबसे प्रभावी होता है – उसने गेंद को टर्न नहीं कराया। गावस्कर ने सोचा था कि गेंद टर्न होगी, उस पर खेलते हुए वह मात खा गए और त्रिवेदी ने अपने प्रथम श्रेणी करियर का पहला विकेट लिया। सीधी गेंद पर विकेट लेना और वह भी सुनील गावस्कर का! प्योर क्रिकेटिंग जीनियस मोमेंट।
फ़ास्ट फॉरवर्ड टु 2009…
मेरे पास प्रतिभा तो थी, लेकिन मंच नहीं था। हालांकि, क्रिकेट के प्रति प्रेम में मंच की कमी कभी भी स्पीड ब्रेकर नहीं बनी। 30 वर्षों तक बैंक क्रिकेट में अपनी पहचान बनाने के बाद, जिसमें 4 टूर्नामेंटों में रिकॉर्ड 130 विकेट अपने नाम करने के बाद, किशोर त्रिवेदी ने एक कोच के रूप में युवाओं की मदद करने का फैसला किया। 2009 की एक ऐसी शाम, जब वह नियमित रूप से कोचिंग कर रहे थे। वहां उनकी नजर एक युवा तेज गेंदबाज पर पड़ी, जिसका एक्शन अजीब लेकिन लीगल था। आज दुनिया उन्हें जसप्रीत जसबीर बुमराह के नाम से जानती है।
77 वर्षीय किशोर त्रिवेदी ने गुजराती जागरण से खास बातचीत में जसप्रीत के सफर के बारे में विस्तार से बात की। आगे का अंश उनके साथ की गई बातचीत पर आधारित।
जसप्रीत से पहली मुलाकात
अहमदाबाद में वस्त्रपुर झील के पास निर्माण हाई स्कूल में मेरा कैंप 2009 से चल रहा था। इस बीच, जसप्रीत वहां प्रैक्टिस करने आ रहा था। जसप्रीत की मां स्कूल की वाइस प्रिंसिपल थीं। शुरुआत में जसप्रीत में अनुशासन की कमी थी। तब उसकी आयु 15 वर्ष होगी। उन्होंने धीरे-धीरे गेंदबाजी करना शुरू किया और उनका एक्शन पहले से ही अजीब था। सभी लड़के मुझसे कहते थे कि सर ये थ्रो बॉलिंग है। उससे गेंदबाजी मत करवाओ। छोटी उमर से ही जसप्रीत रफ्तार से गेंदबाजी कर रहा था। उस समय, हम सिंथेटिक बोल से खेलते थे, तो बॉल और भी स्पीड में ट्रेवल करता था।
बड़े लड़के भी जसप्रीत से डरते थे
उस समय बुमराह के एक्शन और स्पीड के कारण उनसे बड़ी उम्र के लड़के भी उनके खिलाफ बल्लेबाजी करने से डरते थे। तो सब कहते हैं कि ये थ्रो बॉलिंग है। मैंने सभी को समझाया कि जसप्रीत थ्रो नहीं कर रहा है। उनका बॉलिंग एक्शन अजीब है, लेकिन लीगल है। फिर वह निर्माण हाई स्कूल में तीन साल तक मेरी कोचिंग में रहा। उस दौरान तमाम अच्छी टीमें अहमदाबाद मेजर ओपन इनविटेशन टूर्नामेंट में हिस्सा लेने आती थीं। इसे मंच देने के लिए कुछ चाहिए? इसलिए मैंने इसमें खिलाया।’ सीनियर्स के खिलाफ खेलने से उसे एहसास हुआ कि उसे अभी भी कितना सुधार करने की जरूरत है।
गुजरात टीम में जसप्रीत का चयन
फिर डिस्ट्रिक्ट सीनियर टीम का चयन हुआ। इसलिए मैंने अनिल पटेल (वर्तमान में गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव) को फोन किया। मैंने उससे कहा- मेरे कैंप में एक लड़का है। जसप्रीत बुमराह। मेरी नजर में पूरे गुजरात में कोई ऐसा गेंदबाज नहीं है जो उनके जितनी तेज गेंदबाजी कर सके। आप इसे देखो। यदि आप को सही लगे तो चयन करें। अनिल भाई बोले, अच्छा। भेजिए।
फिर जसप्रीत ने 2 दिन तक डिस्ट्रिक्ट प्रैक्टिस में हिस्सा लिया और वहां सेलेक्ट हो गया। डिस्ट्रिक्ट के बाद उनका चयन राज्य टीम में हुआ। राज्य के लिए खेलने के बाद आईपीएल से उनका सफर तेजी से आगे बढ़ा।
जॉन राइट को जस्सी में दिलचस्पी
उस दौरान न्यूजीलैंड के जॉन राइट, जो पहले टीम इंडिया के मुख्य कोच भी रह चुके थे, मुंबई इंडियंस के लिए युवा प्रतिभाओं को तलाशने के लिए यहां आए थे। उनकी नजर बुमराह पर पड़ी और उन्हें तुरंत दिलचस्पी हो गई। क्योंकि- उसकी एक्शन अजीब थी। तेज गति से गेंदबाजी कर रहा था और उसका यॉर्कर भी बेहतरीन था। उन्हें आईपीएल में ट्रायल के लिए मुंबई ले जाया गया था। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
जसप्रीत को एक्शन के लिए ये सलाह दी थी
मैंने शुरू से ही जसप्रीत से कहा था, ‘तुम कहीं भी खेल सकते हो। किसी भी कैंप में जाओगे सबसे पहले आपसे एक्शन के लिए कहा जाएगा। आपको कई सुझाव दिए जाएंगे। लेकिन एक्शन नहीं बदलनी। यह सही एक्शन है, लीगल है। यदि आप एक्शन बदलते हैं, तो आप अपनी लाइन लेंथ और आत्मविश्वास दोबारा हासिल नहीं कर पाएंगे।
वे जहां भी गए अपनी एक्शन बरकरार रखी और आज परिणाम आपके सामने है।’ उन्होंने लाइन-लेंथ पर ध्यान दिया और एक्शन पर किसी की नहीं सुनी। जसप्रीत बुमराह एक गॉड गिफ्टेड टेलेंट है। वरना आप ही बताओ – 15 कदम चलकर 140 किमी प्रति घंटे की स्पीड कैसे पैदा कर सकता है कोई? हर कोई ऐसा नहीं कर सकता।
यॉर्कर में महारत
मैं जसप्रीत को सबसे ज्यादा टारगेट बॉलिंग की प्रैक्टिस कराता था। पहले ऑफ स्टंप पर लाइन और लेंथ के साथ वेरिएशन का अभ्यास और फिर यॉर्कर का अभ्यास। यॉर्कर अभ्यास के लिए मैं यॉर्कर स्पॉट पर बैटिंग ग्लव्स रखता था। वहां उन्होंने 10 गेंदें फेंकनी होती थी। 10 गेंदें गिरने तक कोई इंटरवल नहीं।
पानी पीने की भी अनुमति नहीं है। आधा घंटा या एक घंटा उस पर निर्भर करता है। इसलिए धीरे-धीरे उन्हें पता चलने लगा कि यॉर्कर के लिए गेंद हाथ से कैसे छोड़नी है। फिर यह स्वाभाविक है कि वह यॉर्कर में महारत हासिल कर लेंगे।’
इस बात को लेकर बुमराह की मम्मी को टेंशन थी
एक बार जसप्रीत की मां ने मुझे फोन किया। उन्होंने कहा कि जसप्रीत सारा दिन क्रिकेट खेलता है। शिक्षा पर ध्यान नहीं देता। आप इसको को समझाया है कि उसे साथ में पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए। अगर वे अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं देगा तो क्या करेगा? आप ही समझाइये।
मैंने उनसे कहा कि जसप्रीत में प्रतिभा है। उसे 2 साल तक मेहनत करने दीजिए। मुझे यकीन है कि अगर वह लगातार 2 साल तक नियमित अभ्यास करेगा तो वह राज्य स्तर तक खेल सकेगा। साथ ही मैंने जसप्रीत से कहा, खेल के साथ-साथ पढ़ाई भी जरूरी है। हर साल आपको आसानी से पास होना होगा। इसके बाद तो जसप्रीत सिंसियर हो गया। वह प्रदर्शन करते रहे, कड़ी मेहनत करते रहे और इसी के साथ उनकी किस्मत उन्हें वहां ले आई जहां वह आज हैं।
एक्शन के कारण इंजर्ड रहेते है ?
अगर एक्शन की वजह से जसप्रीत चोटिल हो जाते तो वह 1 साल तक भी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट नहीं खेल पाते। अगर एक्शन की वजह से कोई दिक्कत होती तो इतना लंबा क्रिकेट खेलना संभव नहीं होता।’ वह इंजर्ड ओवर बर्डन के कारण हुए है। जसप्रीत तीनों फॉर्मेट में हैं। टेस्ट में प्रतिदिन 25 से 30 ओवर करने होते हैं। इस बोझ के कारण शरीर पर तनाव पड़ता है। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि जमीन पर फील्डिंग करते वक्त फिट मूवमेंट की वजह से पीठ पर जोर पड़ रहा हो।
मंच मिल जाए तो गॉड गिफ्टेड को गॉड फादर की जरूरत नहीं होती
हर प्रतिभाशाली खिलाड़ी को खेलने के लिए मंच की जरूरत होती है। इंटर स्कूल क्रिकेट में अंडर-14, अंडर-16 और अंडर-19 किसी भी ग्रुप में अगर आप बल्लेबाज हैं तो आपको 3-4 शतक चाहिए। यदि आप एक गेंदबाज हैं और आपके पास 25-30 विकेट हैं तो आपको डिस्ट्रिक्ट के लिए बुलाया जाता है। इसके लिए आपको सबसे पहले कोचिंग कैंप में तैयारी करनी होगी।
उसके बाद आप मैचों में कैसे खेलते हैं उसके आधार पर आपको जिले में खेलने का मौका मिलता है। इसलिए इंटर-स्कूल क्रिकेट बहुत महत्वपूर्ण है। ओपन सेलेक्शन में 600 लड़कों को बुलाया जाता है। 2 गेंद खेलने के बाद उसे ओके कहा जाता है। अगर आपने इंटर खेला है तो आपका नाम बोर्ड में जाएगा।
सेलेक्शन आने पर देखेंगे स्कोर, इस स्कूल के इस लड़के ने ऐसा प्रदर्शन किया है। यहीं से खिलाड़ी की आगे की यात्रा शुरू होती है। मेरा मानना है कि अगर क्रिकेट में सच्चा मंच मिल जाए तो गॉड गिफ्टेड को किसी गॉड फादर की जरूरत नहीं होती।