कार्तिक पूर्णिमा को दिन को देव दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। दिवाली की तरह देव दिवाली का दिन भी काफी खास होता है। भगवान शिव की जीत की खुशी के रूप में इस दिन को मनाया जाता है। बहुत से लोग देव दिवाली के दिन विशेष पूजा अर्चना करते हैं। इस दौरान विशेष फल पाने के लिए जरूरी है कि आप पूजा में कुछ जरूरी चीजों को शामिल करना ना भूलें। आइए जानते हैं देव दिवाली की पूजा आपको कैसे करनी है। कार्तिक पूर्णिमा के त्योहार को ही देव दिवाली के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को त्रिपुरासुर पर भगवान शिव की जीत की खुशी को मनाया जाता है। इस दिन लोग दीपदान करते हैं और इसे देवताओं की दिवाली कही जाती है। कार्तिक पूर्णिमा को स्नान-दान का विशेष महत्व बताया गया है। देव दिवाली का खास संबंध काशी से है, इस दिन काशी बनारस के घाट में दीपदान की जाती है और पूरा घाट दीप से रौशन होकर जगमगाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शंकर ने इसी दिन देवों से स्वर्ग छीन कर उन्हें स्वर्ग से बाहर कर देने वाले असुर त्रिपुरासुर का संहार किया था। देवी देवताओं ने भगवान शुकर को आभार जताने के लिए दीप जलाए थे। मान्यता है कि इस दिन देवी-देवता काशी में दिवाली मनाते हैं इसलिए काशी में देव दिवाली बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन दीप दान और नदी स्नान का बहुत महत्व है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था और देवी लक्ष्मी तुलसी के रूप में प्रकट हुई थीं।
देव दिवाली से जुड़ी कथा
त्रिपुरासुर नाम के असुर ने धरतीवासियों को त्रस्त कर रखा था। धरतीवासी देवताओं से रक्षा की गुहार लगा रहे थे। परेशान हो सभी देवी-देवता भगवान शंकर के पास पहुंचे। भगवान शंकर ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर का संहार कर धरतीवासियों और देवी-देवताओं की रक्षा की थी। त्रिपुरासुर से छुटकारा मिलने के बाद देवी-देवताओं ने भगवान शंकर की नगरी काशी पहुंच कर वहां दीप जलाकर खुशियां मनाई और भगवान शंकर का आभार जताया। तब से कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाने लगी।
देव दिवाली के दिन क्या करना चाहिए
देव दिवाली के दिन दीप दान और नदी स्नान करना चाहिए। इस दिन दीप दान और नदी स्नान का बहुत अधिक महत्व है। दीप उन से और नदी स्नान से घर में सुख-समृद्धि आती है और यम, शनि और राहु-केतु का प्रभाव कम होता है। तभी से कार्तिक पूर्णिमा का तिथि को देव दिवाली कहा गया क्योंकि सभी देवता पृथ्वी पर आकर दिवाली मनाए थे इसलिए इसे देव दिवाली कहा गया।