लखीमपुर। लोकसभा चुनाव में यह कार्यकर्ताओं की नाराजगी थी या माननीयों का गुस्सा। संगठन के पदाधिकारियों की गुटबाजी या फिर पार्टी के फैसले से नाराजगी, वजह कोई भी हो लेकिन जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के हाथ से तराई पट्टी की यह दोनों सीटें फिसल गईं उससे एक बात तो साफ है कि अगर यह तीनों ही चीजें न होतीं तो भारतीय जनता पार्टी इस बार हैट्रिक भी बनाती और कांग्रेस और सपा के बाद एक नया इतिहास भी रचती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
बताया जाता है कि मतदान के दिन ही भाजपाई कार्यकर्ता यह समझ चुके थे कि इस बार खीरी और धौरहरा दोनों ही सीट भारतीय जनता पार्टी के हाथ से जाने वाली है। जिसे देखकर वह कई मतदान केंद्रों पर मुस्कराते भी नजर आए और ये जानकारी देने भी पीछे नहीं रहे।
भाजपाई सूत्र बताते हैं कि दोनों ही सीटों पर इस बार प्रत्याशियों के चयन के निर्णय को लेकर कार्यकर्ता सहमत नहीं थे। पार्टी के अंदर रह कर वह इस बात का विरोध तो नहीं कर पाए, लेकिन अपनी नाराजगी का अंदाज जरूर बदल दिया। बात अकेले कार्यकर्ताओं के ही विरोध की नहीं थी। पार्टी के कुछ माननीय भी पार्टी के फैसले से खुश नहीं थे। पार्टी लाइन से हटना तो उनके लिए मुनासिब नहीं था, लिहाजा उन्होंने अपनी विधानसभा में ऐसा खेला कर दिया, जिससे न रहा बांस और न बजी बांसुरी।
कुर्मी, मुस्लिम मतदाताओं का एकतरफा मतदान भी वजह
दस साल पहले भाजपा जिस जातीय गुणा-गणित को खत्म कर चुकी थी वही जातीय समीकरण इस चुनाव में एक बार फिर से सिर चढ़कर बोले। जिले में एससीएसटी के बाद कुर्मी बिरादरी का वोट 18 फीसद ही सबसे ज्यादा है। उसके बाद करीब 14 फीसद मुस्लिम मतदाता हैं। ये दोनों इस बार एक राय होकर अपने पुराने किले समाजवादी पार्टी में चले गए। जिससे सपा प्रत्याशी की जीत का आधार इतना मजबूत हुआ कि जिसे हिला पाना भाजपा के लिए लोहे के चने चबाने जैसा हो गया।
धौरहरा में हाथी ने बिगाड़ दिया भाजपा का खेल
हम भी खेलेंगे नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे। छोटे बच्चों की जुबान से अक्सर कही जाने वाली ये कहावत धौरहरा के रण में चरितार्थ होती नजर आई। यहां भाजपा से अपने टिकट की दावेदारी कर रहे पूर्व भाजपा नेता श्याम किशोर अवस्थी को जब टिकट नहीं मिला तो उन्होंने बसपा में कुंढी खटकाई।
उनका तीर निशाने पर लगा और बसपा ने धौरहरा से श्याम किशोर को इस गरज से अपना उम्मीदवार बना दिया कि ये भाजपा को हराकर उसकी झोली में एक सीट डाल सकते हैं। पर श्याम किशोर बसपा की खाली झोली में कोई सीट तो नहीं डाल पाए अलबत्ता धौरहरा के हजारों ब्राहृम्णों का वोट जरूर हथिया लिया और इसी से भाजपा महज 4449 मतों से हार गईं।