पिछले एक दशक में जमकर बारिश हुई

नई दिल्ली। दक्षिण पश्चिम मानसून की बारिश पर एक अहम रिपोर्ट सामने आई है। एक अध्ययन में दावा किया गया है कि पिछले एक दशक में जमकर बारिश हुई। देश के लगभग 55 प्रतिशत तहसीलों में 10 प्रतिशत से भी अधिक बारिश दर्ज की गई है। अध्ययन में दावा किया गया है कि पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों और जलवायु परिवर्तन के बावजूद 2012 से 2022 के दौरान आधे से अधिक भारत में जमकर बारिश हुई।

अध्ययन के अनुसार, पिछले एक दशक के दौरान 11 प्रतिशत तहसीलों में दक्षिण-पश्चिम मानसून की बारिश में गिरावट भी देखी गई। बारिश की मात्रा पर स्टडी करने वाली संस्था एक स्वतंत्र थिंक टैंक- द काउंसिल आन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) है। इसके विश्लेषण के अनुसार, पूरे भारत की 4500 से अधिक तहसीलों में पिछले 40 साल की बारिश के डेटा का अध्ययन किया गया। जिन तहसीलों में कम बारिश हुई है उसमें सिंधु-गंगा के मैदानी इलाके प्रमुख हैं। पूर्वोत्तर भारत और हिमालय के ऊपरी इलाकों में भी बारिश कम हुई है।

खास बात ये है कि इन क्षेत्रों को खेती-किसान के लिहाज से काफी अहम माना जाता है। प्रकृति के नाजुक हालात के कारण जलवायु परिवर्तन की घटनाओं का भी इन इलाकों में अधिक असर होता है। इस अध्ययन के अनुसार राजस्थान, गुजरात, मध्य महाराष्ट्र और तमिलनाडु के कुछ हिस्से पारंपरिक रूप से शुष्क माने जाते हैं। इनके लगभग एक चौथाई तहसीलों में जून-सितंबर की अवधि में बारिश 30 प्रतिशत से भी अधिक दर्ज की गई।

भारत में बारिश के बदलते पैटर्न को समझने के मकसद से हुए इस अध्ययन में कहा गया है कि बारिश के बदलते पैटर्न का कारण जलवायु परिवर्तन की तेज दर है। इन तहसीलों में कम अवधि में अधिक बारिश होना चिंताजनक माना गया है। अध्ययन के अनुसार, बारिश के कारण अचानक बाढ़ जैसी घटनाएं भी अधिक हो रही हैं।

बिहार, उत्तराखंड, असम और मेघालय की स्थिति

बारिश में 10 प्रतिशत से भी अधिक बढ़ोतरी को बेहद उत्साहजनक नहीं माना जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि बारिश जरूरत के अनुसार अलग-अलग मौसमों में नहीं हुई। जिन तहसीलों में दक्षिण पश्चिम मानसून की बारिश कम हुई है, इसमें 87 प्रतिशत बिहार, उत्तराखंड के साथ-साथ असम और मेघालय जैसे प्रदेश भी शामिल हैं। खरीफ फसल की बुआई के लिए अहम जून-जुलाई के दौरान बारिश में कमी की मार झेलने वाले किसानों को उत्पादन खराब होने का दंश भी झेलना पड़ा है।

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