आगमन संस्था का अजन्मी बेटियों के लिए यह दसवां श्राद्ध वर्ष है. पिछले 9 वर्षों में 67 हजार अजन्मी बेटियों के लिए यह मोक्ष अनुष्ठान कराया गया है. 10वें वर्ष में 15 हजार अजन्मी बेटियों का श्राद्ध कराया गया है. पितृपक्ष में काशी के दशाश्वमेध तीर्थ पर सामाजिक संस्था आगमन की ओर से कोख में मारी गई बेटियों के श्राद्ध का दुर्लभ अनुष्ठान किया गया.
इस वर्ष 15 हजार अजन्मी बेटियों का यह श्राद्ध दशाश्वमेध घाट पर ‘अंतिम प्रणाम का दिव्य अनुष्ठान’ नाम से किया गया. उत्तम काल, मध्याह्न में त्रिपिंडी श्राद्ध के विधान आरंभ हुए. इसमें प्रत्येक अजन्मी बेटी के निमित्त जौ, चावल और खोए का पिंड बनाकर उसका दान किया गया.
आगमन संस्था का अजन्मी बेटियों के लिए यह दसवां श्राद्ध वर्ष है. पिछले 9 वर्षों में 67 हजार अजन्मी बेटियों के लिए यह मोक्ष अनुष्ठान कराया गया है. 10वें वर्ष 15 हजार अजन्मी बेटियों का श्राद्ध कराया गया है. इस वर्ष के अनुष्ठान के बाद 10 सालों में कुल 82 हजार अजन्मी बेटियों के श्राद्ध का कर्मकांड पूरा हो चुका है.
आगमन के संस्थापक डॉ. संतोष ओझा ने बताया कि साल 2001 में जब हम आगमन टीम के साथ एड्स महामारी पर जन जागरण अभियान चलाते थे. उन दिनों एक ऐसा वाकया सामने आया, जहां एक शख्स ने बेटे की चाह में पत्नी के गर्भ में ही कन्या भ्रूण हत्या करा दी. इस घटना ने ही हमें बेटियों के जन्म को लेकर जागृत होने की प्रेरणा दी. तब से अगले एक दशक तक कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए जन-जागृति अभियान चलाए जाते रहे.
इसके अंतर्गत विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. साल 2013 में फिर एक घटना से मारी गई बेटियों के मोक्ष दिलाने की प्रेरणा मिली. तब लगा कि जब पेट में पल रही बेटियों को बचाने में हम सफल नहीं हो पाए तो कम से कम उनके मोक्ष की तो कामना कर ही सकते हैं. यहीं से बेटियों के मोक्ष के लिए ‘अंतिम प्रणाम का दिव्य अनुष्ठान’ कार्यक्रम की शुरुआत हुई.
काशी के विद्वान इस अनुष्ठान को लेकर एकमत नहीं थे. हमारे परिजन भी अनहोनी, अशुभता या बाधा को लेकर चिंतित थे. लिहाजा श्रेष्ठ विद्वानों से मिलकर शास्त्र सम्मत बातों की जानकारी और जैसे-तैसे परिजनों के नाराजगी और रजामंदी के बाद अनुष्ठान को काशी के दशाश्वमेध घाट पर प्रारंभ किया गया.