क्या ऐसा तो नहीं जनता का फोन रिसीव करना अधिकारी अपना तौहीन समझते…..

जब अधिकारी आम जनों का फोन ही नहीं उठाते तो डायरी, कैलेंडर व वेबसाइट में नंबर प्रदर्शित करने की क्या जरूरत

योगी सरकार की मंशा है कि जनता के अधिकांश काम ऑनलाइन सरकारी दफ्तर जाए बगैर हो, अधिकारीगण पालन क्यों नहीं करते

पूरे प्रदेश में अधिकारियों की फोन नहीं उठाने की बीमारी सर चढ़कर बोल रही है

दलाल, सेटिंग वाले नेता और कमीशन खोर दोस्तों का फोन घंटी बजते ही उठता है

जनता का फोन नहीं उठाने की बीमारी सिर्फ जिले के शासकीय अधिकारियों में ही है.

गोण्डा : जनता के प्रति गैर जवाबदेही – दूरदराज से सरकारी दफ्तर आने वाले व्यक्ति को जब अधिकारी के दौरे में या छुट्टी में होने की जानकारी मिलता है तो वह अधिकारी से फोन पर संपर्क करता है लेकिन अधिकारी फोन या तो बंद रहता है या कवरेज से बाहर या फिर अधिकारी फोन ही नहीं उठाता।ऐसे में उस व्यक्ति के ऊपर मुसीबत का पहाड टूट पड़ता है।आने-जाने खर्चा और उस पर समय खराब होने और काम नहीं बनने का दुख आम लोगों की तकलीफ और बढ़ा देता है।चाहे जो भी दिन हो शनिवार और रविवार (अवकाश) के दिनों में चाहे जनता को कितनी भी परेशानियां क्यों न हों सभी अधिकारियों ने फोन नहीं उठाने का एक तरह से नियम ही बना लिए है।

 जनता उठा रही परेशानी 

सरकारी काम-काज समय सीमा में नहीं होने से आम लोगों को बड़ी परेशानी उठानी पड़ रही है।इस पर सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों का रवैया और भारी पड़ रहा है।योगी सरकार की मंशा है कि सभी सरकारी योजनाएं और सुविधाएं लोगों तक आसानी पहुंचे।इसके ज्यादातर सुविधाओं को ऑनलाइन किया गया है।कई मामलों में सिंगल विंडो सिस्टम भी शुरू किया गया है।सुविधाओं को आनलाइन करने के पीछे लोगों को सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने और दलालों के चंगुल में फंसने से बचाना मुख्य ध्येय है।लेकिन योगी सरकार की इस मंशा पर अधिकारी-कर्मचारी पानी फेर रहे हैं।आम तौर पर सरकारी नुमाइन्दों का मुख्य काम लोगों को सुविधा पहुंचाने का होता है।लेकिन व्यवस्था अनुसार लोगों की समस्याओं को दूर करना इनकी जिम्मेदारी होती है।लेकिन वर्तमान में अधिकारी कर्मचारी जवाबदारियों से बचने ड्यूटी के नाम पर समय ही काटते हैं।और सिर्फ ऑफिस में पहुंचकर  जनता दर्शन के दौरान सिर्फ फोटो खिंचवाकर चले जाते हैं।वैसे तो ये खुद को इतना व्यस्त जताते हैं कि अपनी समस्यायों और परेशानियों को लेकर फोन करने वाले लोगों की काल तक रिसीव नहीं करते।कई बार लोग अपने कामों के संदर्भ में जानकारी लेने के लिए अधिकारियों व संबंधित कर्मचारियों को फोन लगाते हैं लेकिन मजाल है कि कोई अधिकारी-कर्मचारी फोन रिसीव कर संबंधित व्यक्ति की समस्या का समाधान कर दे या परामर्श दे दे।

 जिले के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के दफ्तर के बाबू से लेकर तहसीलदार,एसडीएम,एडीएम यहां तक कलेक्टर भी आम लोगों का फोन रिसीव नहीं करते।

  आनलाइन सुविधाओं में फोन पर संपर्क जरूरी

सरकार ने हर योजनाओं और सुविधाओं का लाभ लोगों को आनलाइन उपलब्ध कराने के लिए प्राय: सभी योजनाओं और सुविधाओं के लिए वेबपोर्टल बनाया है। इसके माध्यम से लोग सरकारी कार्यालयों का चक्कर लगाए बगैर संबंधित सुविधा ले सकता है।लेकिन कभी-कभी सिस्टम समझ नहीं आने पर या किसी तरह की असुविधा होने पर लोग संबंधित अधिकारी या कर्मचारी से फोन पर संपर्क कर सुझाव चाहता है लेकिन जब वह फोन करता है तो उसका रिप्लाई नहीं मिलता।प्राय: हर सरकारी वेबपोर्टल में संबंधित अधिकारियों का फोन नंबर प्रदर्शित किया जाता है।लेकिन ये कभी फोन पर उपलब्ध नहीं होते अगर गलती से फोन की घंटी बज भी गई तो ये रिसीव ही नहीं करते।योगी सरकार के आदेश की अवहेलना करते हुए ये अधिकारी लोक सेवक होने के दायित्व को तो नजर अंदाज करते हीं हैं सरकार के प्रति अपनी जवाबदेही से भी बचते रहते हैं।जनता से संवाद कायम करने का पहला कर्तव्य अधिकारियों का होता है।लेकिन तहसील स्तर से लेकर जिला प्रशासन और यहां तक की पुलिस के अधिकारी भी जनता का फोन उठाना जरूरी नहीं समझते।डीएम और पुलिस अधीक्षक तो नए नंबरों पर रिस्पांस ही नहीं देते कोई नंबर से एक से ज्यादा बार घंटी बजी तो उसे ब्लेक लिस्ट में डाल देते हैं।कभी फोन का स्विच ऑफ करके व्हाट्सएप पर डाल देते हैं या फिर फोन को अधिकांश समय छुपा हुआ फोन बनाकर रखते हैं जिससे आम जनता को बहुत तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है।

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