ज़ैदपुर बाराबंकी। फसलों में आइपीएम-इंट्रीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट विधि से किसान खुशहाली की तरफ बढ़ने लगे हैं। सिस्टम ने कीटों का प्रकोप ही कम नहीं किया बल्कि उत्पादन में सहायक भी बना है। गन्ना निदेशक भारत सरकार व जिला सलाहकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन ने खेतों का निरीक्षण किया। किसानों को आईपीएम का प्रयोग करने के लिए जागरुक किया।
जिले में लगभग सवा सौ से अधिक किसान आईपीएम विधि से साग सब्जी उगा रहे हैं। जिसमें ज़ैदपुर,देवा,मसौली, सफदरगंज के किसान अधिक हैं। बाराबंकी जिले के ब्लाक मसौली के ग्राम पल्हरी के प्रगतिशील कृषक आनंद कुमार मौर्य के खेत का निरीक्षण डॉ वीरेंद्र सिंह गन्ना निदेशक भारत सरकार,कैलाश नारायण जिला सलाहकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन बाराबंकी ने किया। प्रगतिशील कृषक आनन्द कुमार मौर्य सब्जियों,मेंथा की सहफसली खेती, अनाज,खेती की प्राकृतिक खेती एवं आइपीएम विधि से विगत दस वर्षों से खेती कर रहे हैं। और किसानों के सम्पर्क में रहकर आसपास के किसानों को भी इस विधि से खेती करने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। और किसान इस विधि को अपनाने लगे हैं।
प्रगतिशील कृषक आनन्द कुमार मौर्य ने बताया कि अपनी फसलों को कीट एवं बीमारियों से बचाने के लिए रासायनिक कीटनाशकों का अनुचित एवं अंधाधुंध प्रयोग न करें। रासायनिक कीटनाशक हर किसी के स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदेह है। आईपीएम तकनीक से फसलों को रोग मुक्त बना सकते हैं। आईपीएम वनस्पति संरक्षण के साथ पर्यावरण पारिस्थितिक तंत्र जैव विविधता एवं प्रकृति को शुद्ध सुरक्षित रखता है। आनन्द ने बताया कि सब्जियां कुशीनगर गोरखपुर एवं बिहार की मंडियों में सप्लाई की जाती हैं। वह विगत 10 वर्षो से आइपीएम सिस्टम का प्रयोग करते हैं। इस विधि से कीटनाशक दवाओं का प्रयोग नहीं होता है। फल शुद्ध व स्वादिष्ट होते हैं। रोग न लगने से उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है। बिना रासायनिक दावाओं के खेती की जा सकती है। प्रत्येक सीजन में प्रति एकड़ खेती को कीटों से बचने के लिए लगभग 25 हजार रुपये की दवाई लग जाती है। इस विधि से 22 हजार का खर्च किसान को बच जाता है। इस सिस्टम की लागत महज 3 हजार रुपये है। जो पांच वर्ष तक चलेगा। इसमें किट चिपक कर मर जाते हैं। इस विधि से बिना रसायन दबाव के प्रयोग से खेती की जा सकती है।