नई दिल्ली। अमेरिका, रूस और चीन भारत से पहले चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग कर चुके हैं, इसलिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के मून मिशन पर नासा सहित पूरी दुनिया की निगाहें टिकी थीं, क्योंकि इसका सबसे बड़ा कारण यह रहा कि आज भारत का चंद्रयान-3 उस जगह पर उतरा है, जहां पर आज तक कोई देश नहीं पहुंच सका था। बेंगलुरु के इसरो कमांड सेंटर में वैज्ञानिकों की पूरी टीम के लिए यह बेहद अहम और तनाव भरा समय रहा, लेकिन भारत के चांद के दक्षिणी ध्रुव पर जाने वाला दुनिया का पहला देश बनते ही सारे वैज्ञानिक ख़ुशी से झूम उठे और एक दूसरे को बधाई दी। चांद का दक्षिणी ध्रुव बेहद खास और रोचक इसलिए है, क्योंकि यहां हमेशा अंधेरा रहता है। साथ ही उत्तरी ध्रुव की तुलना में यह काफी बड़ा भी है। हमेशा अंधेरे में होने के कारण यहां पानी होने की संभावना भी जताई जा रही है। इसरो ने चांद के इस हिस्से में मौजूद क्रेटर्स में सोलर सिस्टम के जीवाश्म होने की संभावना भी जताई है। चंद्रयान-3 से भेजा गया प्रज्ञान रोवर चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर घूम कर इन सब बातों का पता लगाएगा।
अब क्या-क्या शोध करेगा प्रज्ञान रोवर
भारत का चंद्रयान-3 मिशन अब तक के मिशनों से अलग है। इस मिशन से व्यापक भौगौलिक, मौसम सम्बन्धी अध्ययन और चंद्रयान-1 द्वारा खोजे गए खनिजों का विश्लेषण करके चंद्रमा के अस्तित्त्व में आने और उसके क्रमिक विकास की और ज़्यादा जानकारी मिल पाएगी। चंद्रमा पर रहने के दौरान कई और परीक्षण भी किये जाएंगे, जिनमें चांद पर पानी होने की पुष्टि और वहां अनूठी रासायनिक संरचना वाली नई किस्म की चट्टानों का विश्लेषण शामिल हैं। चंद्रयान-3 से चांद की भौगोलिक संरचना, भूकम्पीय स्थिति, खनिजों की मौजूदगी और उनके वितरण का पता लगाने, सतह की रासायनिक संरचना, ऊपर मिट्टी की ताप भौतिकी विशेषताओं का अध्ययन करके चन्द्रमा के अस्तित्व में आने तथा उसके क्रमिक विकास के बारे में नई जानकारियां मिल सकेंगी।
क्या है रोवर प्रज्ञान
चंद्रयान-3 का रोवर प्रज्ञान 6-पहिए वाला एक रोबोट वाहन है, जो संस्कृत में ‘ज्ञान’ शब्द से लिया गया है। रोवर प्रज्ञान 500 मीटर (½ आधा किलोमीटर) तक यात्रा कर सकता है और सौर ऊर्जा की मदद से काम करता है। यह सिर्फ लैंडर के साथ संवाद कर सकता है। चांद की सतह पर लैंडिंग के करीब 2 घंटे के बाद विक्रम लैंडर का रैंप खुलेगा। इसी के जरिए 6 पहियों वाला प्रज्ञान रोवर चांद की सतह पर उतरेगा। इसी के जरिए चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र के अब तक के अछूते भाग के बारे में जानकारी मिलेगी। इसका वजन 27 किलोग्राम और विद्युत उत्पादन क्षमता 50 वॉट है। यह चांद की सतह पर मौजूद पानी या बाकी तत्वों का बारीकी से परीक्षण करेगा।