वाराणसी। वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर स्थित व्यास जी के तहखाने पर वर्ष 1993 से पहले किसका कब्जा था, यह तथ्य अहम हो चला है। इलाहाबाद हाई कोर्ट का कहना है कि 1993 से पहले किसका कब्जा था, यह साफ हो जाए तो फैसला हो जाएगा। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ में बुधवार को ढाई घंटे तक चली बहस के बाद भी पूजा संबंधी जिला जज वाराणसी के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई अधूरी रही।
अब 12 फरवरी को सुबह 10 बजे से सुनवाई होगी। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता ने बताया कि जिला जज के आदेश की प्रमाणित प्रति मिल गई है। कोर्ट ने इसे 24 घंटे में दाखिल करने का निर्देश दिया।
मंदिर पक्ष के वकीलों ने रखा अपना पक्ष
सुनवाई शुरू होते ही मंदिर पक्ष से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये अधिवक्ता हरिशंकर जैन व कोर्ट में उपस्थित अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने पक्ष रखा। उन्होंने जिला जज के आदेश को सही बताया। कहा, वादी का व्यासजी के तलगृह (तहखाने) में भौतिक कब्जा रहा है। प्रशासनिक अधिकारियों व वादी की तरफ से 28 नवंबर, 2014 को चाभी से ताला खोलकर तलगृह से जितेंद्र नाथ व्यास की मौजूदगी में सामान निकाला गया। पांच नवंबर, 2016 को रामचरितमानस पाठ का सामान रखा गया। एक चाभी व्यास व दूसरी प्रशासन के पास रहती थी। हालांकि यह बात ट्रायल कोर्ट की पत्रावली पर नहीं है। रामायण पाठ किया गया था।
31 जनवरी को अदालत ने पास किया था आदेश
मंदिर पक्ष का कहना था कि सीआरपीसी की धारा 151 व धारा 152 को एक साथ देखा जाएगा, इसमें कोर्ट को अंतर्निहित शक्ति है। धारा 152 में आदेश देते समय कुछ छूट गया है तो अदालत स्वयं प्रेरणा से या अर्जी दाखिल होने पर आदेश कर सकती है। वादी अधिवक्ता द्वारा ध्यान खींचने पर जिला जज की अदालत ने छूटे आदेश को 31 जनवरी को पारित किया। यह आदेश दोनों पक्षों को सुनकर पारित किया गया। विपक्षी ने कोई आपत्ति नहीं की। तलगृह में 68 साल से रामायण पाठ हो रहा था। वर्ष 1993 में बैरिकेडिंग के बाद रोक दिया गया। फिर भी वादी का कब्जा रहा है। जैन ने कहा, जिला अदालत का आदेश विधि सम्मत है। कानूनी अधिकार के तहत पारित है।
मस्जिद पक्ष के वकील ने कही ये बात
उधर, मस्जिद पक्ष की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी व पुनीत गुप्ता ने जिला जज के आदेश को अधिकार क्षेत्र के बाहर का बताया। उन्होंने कहा कि जिला जज ने विधि प्रक्रिया के खिलाफ आदेश दिया है, इसे रद किया जाए। नकवी ने कहा, काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट कानून केस में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित कमेटी में जिलाधिकारी पदेन सदस्य हैं। उन्हें रिसीवर नियुक्त कर विरोधाभासी कार्य का आदेश दिया गया है। यह कोर्ट के आदेश का उल्लंघन भी है।
मस्जिद पक्ष की तरफ से नहीं दिया गया कब्जे का साक्ष्य
मस्जिद पक्ष के वकील ने अदालत में कहा कि जिला जज ने 31 जनवरी का आदेश स्वयं नहीं दिया है और ऐसा आदेश जारी करने के लिए उनके समक्ष कोई अर्जी नहीं दी गई। इसलिए आदेश अवैध है। कब्जे का अधिकार ट्रायल में तय होगा। जिला जज ने पूजा अधिकार देकर आधा वाद स्वीकार कर लिया है, इसका उन्हें कानूनी अधिकार नहीं है। मस्जिद पक्ष के वकील ने माना कि 31 जनवरी का आदेश पारित करते समय दोनों का पक्ष सुना गया था, किंतु कहा कि धारा 152 की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। मस्जिद पक्ष की तरफ से कब्जे का साक्ष्य नहीं दिया गया।
कोर्ट ने कहा, धारा 151 व धारा 152 एक साथ देखी जाएगी। इसमें भूल सुधार या छूटी मांग पर अदालत को आदेश देने का अधिकार है। वह स्वयं या अर्जी पर दे सकती है। नकवी ने दीन मोहम्मद केस व काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट एक्ट केस का हवाला देते हुए कहा कि जिला जज ने 17 जनवरी का आदेश देकर प्रांगन्याय (रेसजुडीकेटा) का उल्लंघन किया है।
1993 में बैरिकेडिंग के आदेश की मांगी जानकारी
कोर्ट ने महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र से 1993 में बैरिकेडिंग लगाने संबंधी आदेश के बाबत जानकारी मांगी। महाधिवक्ता ने कहा, ‘सुरक्षा कारणों से ऐसा किया गया है। सरकार कानून व्यवस्था कायम रखने को प्रतिबद्ध है।’