आधुनिक तरीकों से खेती करने के लिए उसकी सही जानकारी होना जरुरी, आइये जाने ऐसे लोगो के बारे में जिन्होंने खेती में उच्च शिक्षा हासिल किया…

इंदौर। कृषि क्षेत्र रोजगार, अन्न पूर्ति के साथ देश की आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करता है। हरित क्रांति के बाद खेती करने के परंपरागत तौर-तरीकों में बदलाव आया है। इस कारण उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है। अब तक तो उच्च शिक्षा प्राप्त युवा खेती कर रहे हैं। वे आधुनिक तरीकों से खेती कर इसे नया रूप दे रहे हैं। पैदावार बढ़ाने के साथ ही जैविक कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है।

अब किसान आधुनिक साधनों से और नए तरीकों से कृषि कर रहा है। उसकी वजह साफ है परिवार में नई पीढ़ी ने शिक्षा की और ध्यान दिया और वह उच्च शिक्षित हुई। इससे उसने खेती के नए साधनों का उपयोग किया और खेती को उन्नत बनाया। नए किसान तो इंजीनियरिंग, एमबीए या स्नातक शिक्षा हासिल कर खेती की और आकर्षित हुए और वे आज अच्छे से खेती कर अधिक उपज ले रहे हैं।

एमए के बाद लौटे खेत में
हरदा जिले के खिरकिया तहसील के कड़ोला के रंजीत सिंह चावड़ा जो इंदौर में रहकर एम.ए. तक शिक्षा प्राप्त कर प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारियों में व्यस्त हो गए, पारिवारिक जिम्मेदारी और पिताजी की सलाह से उन्होंने अपना रुख खेती की ओर किया और वे 181 बीघा भूमि पर पारिवारिक खेती को संभाल रहे हैं और उस पर नए तरीकों से खेती कर रहे हैं।

20 बीघा में जैविक खेती
रंजीत चावड़ा करीब 20 बीघा में जैविक खेती भी करते हैं। वे अपने खेतों में गेहूं, चना, सोयाबीन के साथ सब्जियों को बोते हैं और अच्छी उपज प्राप्त कर रहे हैं। चावड़ा का कहना है कि आज के युवा खेती की और ध्यान दें और अपने पारिवारिक कार्य को आगे ले जाएं। रंजीत के अनुसार आज वह एक संपन्न और सक्षम किसान बन गए हैं।

नौकरी छोड़ खेती करने लगे धर्मेंद्र
इंदौर-उज्जैन हाईवे पर स्थित दर्जी कराड़िया गांव के निवासी धर्मेंद्र पांचाल बीएससी तक शिक्षित होने के बाद कुछ साल नौकरी करने लगे। उन्हें लगा कि इससे बेहतर है कि मैं पिता के साथ खेती करूं तो ज्यादा अच्छा होगा। वे अपने परिवार की 20 बीघा जमीन पर खेती करने लगे। धीरे-धीरे वे आधुनिक तरीकों से यह कार्य करने लगे। आज वे सोयाबीन, गेहूं, चना, आलू, प्याज, लहसुन और गोभी बोने लगे। उन्होंने परिश्रम किया और अब उन्हें अधिक लाभ होने लगा है और वे खुश हैं।

सॉफ्टवेयर इंजीनियर कौस्तुभ ने थामी खेत की डगर
इंदौर निवासी ऋषि कौस्तुभ, सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, जो अमेरिका और ब्रिटेन में जॉब कर फिलहाल इंदौर में कार्यरत हैं। उन्होंने इंदौर में देवगुराड़िया के समीप सनावदिया गांव में 20 बीघा भूमि पर जैविक खेती शुरू की थी। उन्होंने गेहूं, चना के साथ सब्जियों पर ज्यादा फोकस किया और जैविक सब्जियों की पैदावार की। जैविक खेती करने का कौस्तुभ का एक ही उद्देश्य था कि आज के वक्त में सब्जियों में जो कीटनाशक डालें जा रहे हैं वे जैविक खेती में इस्तेमाल नहीं होंगे और लोगों को इसके प्रति जागरूक किया जाए। कुछ कारणों से कौस्तुभ इसे ज्यादा समय तक नहीं कर पाए। उन्होंने यह खेती अब बंद कर दी है पर उनकी यह इच्छा है कि जब उन्हें मौका मिलेगा वे पुनः जैविक खेती करेंगे।

मप्र को सात बार मिला कृषि कर्मण अवॉर्ड
मध्य प्रदेश वैसे भी कृषि के मामले में देश में अव्वल है। प्रदेश को सात बार कृषि कर्मण अवॉर्ड के अलावा अधोसंरचना निधि के सर्वाधिक उपयोग के लिए वेस्ट फॉर्मिंग स्टेट, मिलेट मिशन योजना में और प्रधानमंत्री फसल बीमा एक्सीलेंस अवॉर्ड से सम्मनित हो चुका है। इस तरह कृषि क्षेत्र में प्रदेश नए कीर्तिमान बना रहा है। इस तरह युवाओं की खेती में सहभागिता से जाहिर है कि आज का युवा अच्छे तौर-तरीकों से खेती किसानी की ओर आकर्षित होने लगा है।

क्यों मनाया जाता है किसान दिवस
देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में किसानों के हितों के लिए कई निर्णय लिए गए और विधेयकों का मसौदा तैयार किया गया। चरणसिंह ने “जय युवा, जय किसान” का नारा दिया था। 23 दिसंबर को चरणसिंह के जन्म दिवस पर 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस दिन को राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी। तब से देश में किसान दिवस मनाया जाने लगा।

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