सालभर पहले आम आदमी पार्टी ने भाजपा को उसके सबसे मजबूत गढ़ गुजरात में घेर कर खूब सुर्ख़ियां बटोरीं थी। इसका नतीजा ये हुआ था कि भाजपा की तमाम कोशिश के बाद भी गुजरात में आप ने विधानसभा में इंट्री दर्ज करवा दी थी। पार्टी की इस उपलब्धि की तुलना भाजपा के तेलंगाना के प्रदर्शन से की जा सकती है। इतनी सीटें गुजरात में मुख्यमंत्री रहे केशुभाई पटेल और शंकर सिंह वाघेला भी नहीं जीत पाए थे। पार्टी को 14 फ़ीसदी (40 लाख से अधिक) मतों से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया था। तब ये माना गया था आम आदमी पार्टी दिल्ली और पंजाब के बाद अब गुजरात पर फ़ोकस करेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अगर राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के वोट प्रतिशत को देखें तो पार्टी को बड़ी मायूसी हाथ लगी है।
गुजरात में अब आम आदमी पार्टी के 5 विधायक थे , पार्टी ने करीब 13 फीसदी वोट शेयर हासिल किया था। हाल ही में विसावदर सीट से आम आदमी पार्टी विधायक भूपत भयानी के इस्तीफा देने के बाद अब तकरीबन 40 पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने पार्टी को अलविदा कह दिया।इसके साथ ही भरूच विधानसभा के 43 पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं ने सामूहिक रूप से पार्टी प्रदेशाध्यक्ष इशुदान गढ़वी को अपना इस्तीफा सौंप दिया। यह भरूच जिले में पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका माना जा रहा है। भूपत भयानी ने विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद आम आदमी पार्टी पर जमकर निशाना था। उन्होंने कहा था कि आम आदमी पार्टी कोई राष्ट्रवादी पार्टी नहीं है। मैं लोगों के हित में काम करना चाहता था। मैं एक राष्ट्रवादी आदमी हूं और पहले भाजपा में था। गौरतलब है कि सितंबर में आदिवासी नेता और ‘आप’ के प्रदेश उपाध्यक्ष अर्जुन राठवा विधानसभा चुनाव में हारने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए थे। वहीं ‘आप’ उपाध्यक्ष पद से निष्कासित वशराम सागथिया 21 जून को गुजरात कांग्रेस प्रमुख शक्तिसिंह गोहिल की उपस्थिति में कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
‘आप’ को बीते दिनों एक और झटका लगा था। ‘आप’ के सूरत नगर निगम के दो पार्षद भाजपा में शामिल हो गए। यही नहीं, बीते दो सालों में केजरीवाल की पार्टी से करीब एक दर्जन पार्षद भाजपा में शामिल हो गए हैं। सूरत नगर निगम में ‘आप’ के पहले 27 पार्षद थे लेकिन अब इनकी संख्या 15 पर सिमट गई है।
पिछले साल फरवरी में ‘आप’ के छह पार्षद भाजपा में शामिल हो गए थे। हालांकि उनमें से दो फिर ‘आप’ में लौट आए। इस महीने की शुरुआत में भी ‘आप’ के छह पार्षद पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। ‘आप’ के एक नेता ने कहा, दो पार्षदों को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए हटा दिया गया क्योंकि वे दूसरों को पैसे का वादा करके भाजपा में शामिल होने के लिए उकसा रहे थे। भाजपा ने इन दावों को खारिज कर दिया है और कहा है कि पार्षद अपनी मर्जी से शामिल हुए थे और उन पर कोई दबाव या प्रलोभन नहीं दिया गया था।
गौरतलब है कि पार्टी गुजरात में पहले की अपेक्षा कम अग्रेसिव है। पार्टी नेता संजय सिंह एक दौरे को छोड़ दिया जाए तो केंद्रीय नेतृत्व के नेताओं ने गुजरात के दौरे नहीं किए। चुनाव प्रचार में पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने आख़िरी कार्यक्रम 28 नवंबर, 2022 को किया था। इसके बाद उनका कोई भी दौरा नहीं हुआ है। इसके चलते पार्टी में पहले जैसा जोश नहीं दिख रहा है। केजरीवाल की गुजरात से दूरी के जो भी कारण हों, लेकिन राज्य में इसे उनकी उदासीनता के तौर पर देखा जा रहा है। राजनीतिक हलकों में इसको लेकर तरह तरह की चर्चाएं होती है। विधानसभा चुनावों में पार्टी काफी आक्रामक प्रचार किया था। तब ये माना गया था कि गुजरात चुनावों की राष्ट्रीय फलक पर चर्चा ही आप की वजह से हुई, क्योंकि तब कांग्रेस की राष्ट्रीय लीडरशिप गुजरात में चुनावों में बहुत एक्टिव नहीं हुई थी। राहुल गांधी ने सिर्फ दो रैलियां की थीं।
राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि आप के केंद्रीय आलाकमान की उदासीनता के चलते अब तक 70 के क़रीब नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। कुछ भाजपा में गए हैं तो वहीं ज़्यादातर नेताओं में कांग्रेस में इंट्री ली है। इनमें भेमाभाई चौधरी, अर्जुन राठवा, प्रफुल्ल वसावा, वशराम सगठिया और निखिल सवानी जैसे युवा नेता भी शामिल हैं। पार्टी के नेताओं में अजीब सी बेचैनी है। वैसे तो केजरीवाल गुजरात यूनिवर्सिटी के द्वारा किए मानहानि के को लेकर पूरे साल सुर्ख़ियों में रहे। गुजरात विधानसभा चुनावों में से लेकर अब तक सालभर ऐसे कई मौक़े आए जब ये राज्य के नेताओं को केंद्रीय नेतृत्व की अनुपस्थिति खली। चाहे वह पार्टी के युवा नेता युवराज सिंह जाडेजा की गिरफ़्तारी हो या फिर पार्टी के राज्य विधायक दल के नेता चैतर वसावा के ख़िलाफ़ पुलिस केस। केजरीवाल के आने की चर्चा हुई लेकिन आख़िर में कोई कार्यक्रम नहीं बन पाया। ऐसे में सवाल यह उठ रहा कि जिस राज्य में आप को दिल्ली पंजाब के बाद सर्वाधिक सीटें और वोट मिले। क्या केजरीवाल उस गुजरात को भूल गए हैं?
राजनीतिक विश्लेषक दिलीप गोहिल गुजरात में केंद्रीय नेतृत्व की कम सक्रियता के लिए हालात को जिम्मेदार मानते हैं। गोहिल कहते हैं अभी क्यों, गुजरात विधानसभा चुनावों में भी केजरीवाल पूरा फोकस नहीं कर पाए थे, क्यों तभी एमसीडी चुनाव घोषित हो गए थे। इसके चलते कैंपेन का आखिरी हफ्ते थोड़ा फीका भी पड़ गया था। गोहिल कहते हैं अब उनके पास उनके विश्वस्त सहयोगी मनीष सिसोदिया भी नहीं है, ऐसे में ठीक है कि वे लंबे वक्त से गुजरात में नहीं आए हैं, इसके अपने-अपने हिसाब से देखा जा सकता है लेकिन इसमें उनकी मजबूरी ज्यादा झलकती है। क्यों कि वे एक साथ कई मोर्चों पर पूरी तरह घिरे हुए हैं। गोहिल कहते हैं देखना दिलचस्प होगा कि अब केजरीवाल ‘ इंडिया ‘ गठबंधन में किस तरह से आगे बढ़ते हैं, क्या वे दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस के लिए सीट छोड़ेंगे? अगर वे ऐसा करते हैं तो हो सकता है कि तब लोक सभा चुनाव प्रचार के लिए गुजरात का रुख करें।
आम आदमी के जो भी विधायक गुजरात में रह गए है उनका भी रिकार्ड कोई अच्छा नहीं है । एक विधायक और आदिवासी नेता चैतर वसावा पर वन विभाग के कर्मियों को धमकाने और हवा में बंदूक लहराने से संबंधित आरोप लगे थे ।वैसे करीब डेढ़ महीने तक फरार रहने के बाद उन्होंने गुजरात के नर्मदा जिले के डेडियापाडा शहर में पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। उनके साथ सैकड़ों समर्थक भी थे। ‘आप’ नेता चैतर वसावा के सरेंडर के वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किए गए । नर्मदा के पुलिस उपाधीक्षक घनश्याम सरवैया के अनुसार आत्मसमर्पण करने पर चैतर वसावा को तीन अन्य आरोपी व्यक्तियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया है। ‘आप’ के प्रवक्ता और गुजरात के राज्य सचिव जयेश संगदा ने भले ही पार्टी का बचाव करते हुए कहा कि भाजपा सरकार एक सच्चे नेता और आदिवासी समुदाय के असली नायक चैतर वसावा को चुप कराने की कोशिश कर रही है। वे चाहते हैं कि वह ‘आप’ छोड़कर भाजपा में शामिल हो जाएं। वह हार नहीं मानेंगे। पूरी पार्टी उनके साथ मजबूती से खड़ी है।जबकि चैतर वसावा की गिरफ्तारी से ठीक एक दिन पहले ही ‘आप’ विधायक भूपेंद्र भयानी ने पार्टी छोड़ दी थी ।
हाल ही में गुजरात में आप पार्टी में मची भगदड़ पर गुजरात भाजपा ने सोशल मीडिया से केजरीवाल पर बड़ा हमला बोला है। पार्टी ने कुछ दिनों में आप गुजरात में गायब हो जाएगी। आम आदमी पार्टी पार्टी और केजरीवाल के खोखले दावों से उनकी ही पार्टी के विधायक तंग आ गए हैं। विसावदर के विधायक भूपतभाई भायानी ने इस्तीफा देकर देश विरोधी पार्टी को छोड़ने का जो फैसला किया है इसका अनुसरण बाकी भी चार विधायक कर सकते है । भाजपा की ओर से कहा गया है कि जनता में भटकाने का काम करने वाली आम आदमी पार्टी अब गुजरात से गायब होने की दिशा में है। आप आदमी पार्टी छोड़ने वाली भूपत भायानी के अगले कुछ दिनों में भाजपा में शामिल होंने की अटकलें हैं।