कोझिकोड। जाने-माने लेखक अमीश त्रिपाठी ने कहा है कि प्राचीन काल में मंदिर का निर्माण अक्सर दशकों या फिर सदियों तक चलता था। ऐसे में मंदिर बनाने वाले को पता होता था कि वह इसे पूरा होते देख नहीं पाएगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि गर्भगृह तैयार हो जाने के बाद मूर्ति स्थापित की जाती है। इसके बाद प्राण प्रतिष्ठा हो सकती है।
उन्होंने भाजपा द्वारा अधूरे मंदिर में रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा कराने और इसे पाप करार देने के कांग्रेस के आरोपों का जवाब देते हुए यह बात कही। पौराणिक और ऐतिहासिक चरित्रों पर कई उपन्यास लिख चुके अमीश त्रिपाठी ने कांग्रेस के आरोपों पर तीन प्रमुख पूजा समारोहों की ओर इशारा किया।
उन्होंने कहा कि मैं राजनीति पर टिप्पणी नहीं करना चाहता, लेकिन मंदिर निर्माण की शुरुआत में जो प्रमुख समारोह होता है, वह गर्भगृह को चिह्नित करना है। यह पहली बड़ी पूजा है। दूसरी पूजा है गर्भगृह पूरा हो जाने के बाद वहां मूर्ति की स्थापना। इसके बाद प्राण प्रतिष्ठा हो सकती है।