यह निर्विवाद है कि देश की रक्षा से जुड़े मसलों को राजनीति से ऊपर रखा जाना चाहिए। मगर यह अपेक्षा उचित नहीं है कि सुरक्षा व्यवस्था को क्या दिशा और स्वरूप दिया जा रहा है, इस पर देश में कोई चर्चा ही नहीं हो।
जम्मू-कश्मीर में तैनात एक अग्निवीर की मौत ने देश की सुरक्षा के प्रति अपनाए जा रहे कैजुएल नजरिए को बेनकाब कर दिया है। हालांकि सेना ने इस बारे में उठाए जा रहे सवालों को दुर्भाग्यपूर्ण कहा है, लेकिन जो प्रश्न उठे हैं, उन्हें सिरे से खारिज नही किया जा सकता। सेना ने बताया है कि पंजाब निवासी अग्निवीर अमृतपाल सिंह की राजौरी सेक्टर में ड्यूटी के दौरान अपने ही बंदूक की गोली लग जाने से मौत हो गई।
विवाद इसको लेकर उठा कि अमृतपाल सिंह की अंत्येष्टि उस राजकीय सम्मान के साथ नही हुई, जो आम तौर पर ड्यूटी पर तैनात सैनिकों की मृत्यु होने के बाद उन्हें दी जाती है। अग्निवीरों को वेतन-भत्ते के साथ-साथ ड्यूटी पर मौत के बाद दी जाने वाली सुविधाएं स्थायी सैनिकों से नहीं हैं, यह बात तो पहले से विवादित रही है। यह निर्विवाद है कि देश की रक्षा से जुड़े मसलों को राजनीति से ऊपर रखा जाना चाहिए। बहरहाल, यह अपेक्षा उचित नहीं है कि आधुनिक चुनौतियों के बीच देश की सुरक्षा व्यवस्था को क्या दिशा और स्वरूप दिया जा रहा है, इस पर देश में कोई चर्चा नहीं हो।
अग्निवीरों की नियुक्ति एक तरह से राष्ट्रीय सुरक्षा के अस्थायीकरण की सोच के तहत हो रही है। ऐसा उस दौर में हो रहा है, जब पड़ोसी चीन युद्ध को परंपरागत दायरों के साथ-साथ साइबर, अंतरिक्ष और इलेक्ट्रॉमैग्निटिक जैसे नए दायरों मे लडऩे की तैयारी कर रहा है। साथ ही वह अपनी सैन्य व्यवस्था में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और रोबोटिक्स का इस्तेमाल करने लगा है।
ऐसी खबरें भी हैं कि चीन और पाकिस्तान सैन्य तैयारियों के क्षेत्र में तालमेल बढ़ा रहे हैं। उस स्थिति में भारत अपनी रक्षा व्यवस्था में उन लोगों को जिम्मेदारी दे रहा है, जिनकी नियुक्ति सिर्फ चार साल के लिए हो रही है और जिन्हें एवं जिनके परिजनों वैसी सामाजिक सुरक्षा का आश्वासन नहीं है, जो स्थायी सैनिकों को मिलता है। इसलिए इस सोच पर सवाल उठेंगे। बेहतर होगा कि सरकार इस बारे में देश को भरोसे में ले, ताकि वैसे विवाद से बचा जा सके, जो अमृतपाल सिंह की मौत के बाद खड़ा हुआ है।