- गैर प्रांतों की शराब सूबे में बिकने से सरकार को होगा भारी राजस्व का नुकसान
निष्पक्ष प्रतिदिन,लखनऊ। लोकसभा चुनाव करीब देख राजधानी लखनऊ सहित सूबे के अन्य जिलों में हरियाणा की शराब डंप की जा रही है। शराब तस्कर जिले में बड़ी खेप डंप कर रहे हैं। ताकि चुनाव का ऐलान होते ही चेकिंग के चक्रव्यूह में उनका व्यवसाय प्रभावित न हो। डंप शराब चुनाव में बेचकर मोटी कमाई करेंगे। लखनऊ में पहले भी लाखों रुपये की हरियाणा की शराब पकड़ी जा चुकी है।लेकिन अभी तक गुर्गों पर पुलिस का शिकंजा कसता रहा, लेकिन बड़े शराब माफिया के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं की गई।
लोकसभा चुनाव की आहट से आदर्श आचार संहिता को करीब देखते हुए लखनऊ सहित सूबे सभी जिलों के शराब माफिया सक्रिय हो गए हैं। क्योंकि शराब माफिया यह जानते हैं कि चुनाव का ऐलान होने के साथ ही पुलिस की गतिविधि तेज हो जाएगी। चुनाव में शराब की खूब बिक्री भी होगी। जिससे शराब माफिया मोटी कमाई कर सकेंगे।वैसे भी पुलिसिया कार्रवाई में शराब सरगना को पुलिस लेनदेन कर राहत दे ही देती है। जबकि पुलिस व आबकारी विभाग का दावा है कि कोई भी शराब माफिया दूसरे प्रदेशों की शराब डंप नहीं कर रहा है। यदि ऐसी जानकारी मिली तो सख्त कार्रवाई होगी। अभी गत दिनों पारा थाने की पुलिस ने भरोसा मोड़ पारा में एचपी पेट्रोल पम्प पर खड़े ट्रक की तलाशी ली तो उसमें बड़ी संख्या में मॉकडावेल ब्रांड के अंग्रेजी शराब के गत्ते मिले। पुलिस ने शराब की पेटियां उतरवा कर गिनती कराई तो कुल 645 पेटी शराब निकली , इसमें 750 एमएल के 175 गत्ते , 375 एमएल के 235 गत्ते , 180 एमएल के 235 गत्ते मिले । ट्रक की तलाशी ली तो उसमें फर्जी व कूटरचित तैयार इनवाइस बिल , टैक्स इनवाइस व ई – वे बिल मिला था।इससे पहले भी लखनऊ पुलिस और एसटीएफ कई बार हरियाणा की लाखों रुपये की अवैध शराब पकड़ चुकी है।
बता दें कि हरियाणा की शराब राजधानी सहित सूबे के सीमावर्ती जिलों में आसानी से आ जाती है। इसके लिए खासा नेटवर्क सक्रिय रहता है। हरियाणा से शराब की पेटियां नहीं, बल्कि ट्रक के ट्रक निकलते रहते हैं। दरअसल हरियाणा की शराब यूपी में दोगुने दामों पर बिकती है।अलग टैक्स होने के कारण यह स्थिति बनती है। जाहिर सी बात है कि गैर प्रांतों की शराब सूबे में बिकने से सरकार को भारी राजस्व का नुकसान भी हो रहा है। शराब के कारोबारी चंद लाइसेंसों की आड़ में हरियाणा की शराब जिन जिलों में बेचते हैं। इसकी जानकारी बाकायदा संबंधित थाना क्षेत्र की पुलिस और आबकारी निरीक्षकों को भी होती है, लेकिन इसके एवज में मिलने वाले प्रसाद के कारण चुप्पी साधना ही बेहतर समझा जाता है। इससे इतर शराब के यह कारोबारी राजनीतिक रसूख वाले होते हैं, और शराब के खिलाफ कार्रवाई करने वाले अधिकारियों का पलक झपकते ही स्थानांतरण कराने का माद्दा रखते हैं। ऐसे में पुलिस और आबकारी विभाग के अधिकारियों की इन तस्करों के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत भी नहीं पड़ती।वहीं शराब कारोबार से जुड़े एक शख्स का कहना है,कि आबकारी अफसर और कर्मचारियों का ध्यान सिर्फ कमाई में रहता है। क्षेत्रीय से लेकर जिला अफसर और उससे ऊपर तक सरकारी शराब की दुकानों व ठेकों से महीना तय है। दुकान की बिक्री के हिसाब से रकम पहुंचाई जाती है। यही वजह है कि आबकारी अफसर शराब, बीयर और देशी शराब की दुकानों में चेकिंग के नाम पर केवल औपचारिकता निभाते हैं।अफसर दुकान व ठेके का स्टॉक और रजिस्टर का मिलान भी अपने तरीके से करते हैं। यही वजह है कि राजधानी के शहरी व ग्रामीण इलाकों के सरकारी ठेकों में नकली और गैर प्रांत की शराब बिक रही है।
मार्केट से आधे रेट में बेचने के बाद भी होता है मुनाफा
सूत्रों के मुताबिक यूपी में अन्य प्रदेशों की अपेक्षा शराब और बीयर का रेट दो गुना से भी ज्यादा है, इसलिए शराब माफिया मोटा मुनाफा कमाने के लिए शराब और बीयर की तस्करी करते हैं। शराब माफिया मार्केट से कम रेट पर हरियाणा की शराब और बीयर बेचते है। इसलिए उनका माल हाथों हाथ बिक जाता है। ज्यादातर शराब माफिया पहले आर्डर लेने के बाद ही बीयर और शराब की खेप मंगवाते है। अब तो वे सीधे वाइन शॉप, मॉडल शॉप और बार में हरियाणा की शराब की सप्लाई कर देते हैं। जिससे उनको माल बेचने में कोई दिक्कत नहीं होती है।
सरकारी खजाने में लगा रहे है सेंध
सरकार को आबकारी विभाग से सबसे ज्यादा राजस्व मिलता है। जिससे सरकारी खजाना भरा रहता है। इससे मिलने वाले धन को अन्य मदों में खर्चा किया जाता है। सरकार एक्साइज ड्यूटी से शराब पर टैक्स वसूलती है। हरियाणा से चोरी छुपे शराब की पेटियां शहर लाई जाती है। जिसमें कोई एक्साइज ड्यूटी नहीं दी जाती है। ये बोतलें मार्केट में चोरी छुपे बेची जाती हैं। जिससे हर महीने सरकार को लाखों रुपए का चूना लग रहा है।
मोटी कमाई के लालच में जुड़े सफेदपोश
सूत्रों के मुताबिक शहर में हरियाणा की शराब हाथों हाथ बिक जाती है। इस अवैध धंधे की अंधी कमाई के चलते करीब तीन दर्जन से अधिक गैंग सक्रिय हो गए है। जिसमें कई सफेदपोश कारोबारी भी है। वे गोरखधंधे में फाइनेंसर की भूमिका निभाते हैं। वे माल बिकते ही अपना हिस्सा ले लेते हैं। इस गोरखधंधे में जुड़े लोगों को मार्केट से आधे रेट में शराब की पेटियां मिल जाती है। जिसे ये मार्केट से 25 फीसदी कम रेट पर शराब की पेटियां वाइन शॉप और मॉडल शॉप में बेचते है। जिससे उनको और शॉप मालिक को 25-25 प्रतिशत का मुनाफा हो जाता है।