नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमेदारों द्वारा कोर्ट से सत्य छिपाने और कोर्ट को भ्रमित करने के लिए किसी भी हद तक जाने की प्रवृत्ति पर चिंता जताई है। जमानत अर्जियों में पूरी सच्चाई कोर्ट के सामने न रखने और कोर्ट को भ्रमित करने पर अंकुश लगाने के लिए जमानत अर्जियों के बारे में दिशा निर्देश जारी किये हैं।
क्या है मामला?
इसमें कहा गया है कि दाखिल की जाने वाली जमानत अर्जी में पूर्व में दाखिल की गई याचिकाओं और उन पर आये आदेशों का पूरा ब्योरा दिया जाए। ये आदेश न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और राजेश बिंदल की पीठ ने 19 जनवरी शुक्रवार को कुशा दुरुका बनाम उड़ीसा राज्य मामले में दिये। इस मामले में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर जमानत मांग रहे अभियुक्त ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पूरी सच्चाई नहीं रखी थी।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका लंबित रहते हुए हाई कोर्ट में दूसरी जमानत अर्जी दाखिल की और हाई कोर्ट से जमानत ले ली थी। हाई कोर्ट को भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका लंबित होने की बात नहीं बताई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने जताई थी चिंता
हाई कोर्ट से जमानत मिलने का तथ्य सामने आने पर सुप्रीम कोर्ट ने मामले का रिकार्ड और रिपोर्ट मंगाई थी, जिससे पूरी सच्चाई सामने आयी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में नैतिक मूल्यों में आती गिरावट पर चिंता जताई है। कहा है कि सदियों से भारतीय समाज में सत्य का महत्व रहा है लेकिन याचिकाकर्ता ने इसे छुपाने की कोशिश की है।
आजादी के बाद नैतिक मूल्यों में देखा गया है गिरावट
आजादी के पहले से सत्य न्याय का अभिन्न अंग रहा है। हालांकि आजादी के बाद से नैतिक मूल्यों में काफी बदलाव देखा गया है। पुराने नैतिक मूल्यों पर भौतिकता ने प्रभाव जमा लिया है। निजी लाभ के लिए मुकदमेदार झूठ का सहारा लेने और तथ्यों को छुपाने से नहीं हिचकते। पिछले 40 वर्षों में नैतिक मूल्यों में गिरावट आयी है और मुकदमेदार कोर्ट को भ्रमित करने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकते हैं। मुकदमेदारों की इस नई पौध के द्वारा पेश चुनौतियों से निपटने के लिए अब यह तय सिद्धांत है कि न्याय की धारा को प्रदूषित करने की कोशिश करने वाला किसी भी तरह की राहत का हकदार नहीं होता।
सत्य को छुपाना झूठ के समानः कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि सत्य को छुपाना, झूठ के समान है। नैतिक मूल्यों में आती गिरावट हमारी शैक्षणिक व्यवस्था के कारण भी हो सकती है। पीठ ने कहा आज हम सच के सिवाय कुछ भी सुन कर ज्यादा खुश होते हैं। सच के सिवाय कुछ भी पढ़ सकते हैं। सच के सिवाय कुछ भी बोल सकते हैं और सच के सिवाय किसी पर भी भरोसा कर सकते हैं। किसी ने सही कहा है कि झूठ मीठा होता है, जबकि सच कड़वा होता है, इसलिए ज्यादातर लोग झूठ को तरजीह देते हैं।
कोर्ट ने पुराने फैसले का दिया हवाला
कोर्ट ने अदालत से तथ्यों को छुपाने के मामलों में पूर्व के कई फैसलों में तय की गई व्यवस्था का भी हवाला दिया। जमानत अर्जियों और सजा निलंबन के मामले में भविष्य में किसी भी तरह का भ्रम न रहे इसके लिए दिशा निर्देश तय दिये हैं और इस आदेश की प्रति देश भर के उच्च न्यायालयों में भेजने के आदेश दिये हैं। मौजूदा मामले में कोर्ट ने याचिकाकर्ता की जमानत तो रद नहीं की है लेकिन उस पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है जो उसे उड़ीसा हाई कोर्ट के मध्यस्थता केंद्र में जमा करना होगा।
जमानत अर्जियों पर सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश
- दाखिल की गई जमानत अर्जी में पूर्व में दाखिल की गई जमानत अर्जियों और उन पर आए आदेशों का ब्योरा दिया जाएगा।
- लंबित अर्जियों का भी ब्योरा दिया जाएगा। अगर कोई अर्जी लंबित नहीं है तो साफ तौर पर लिखा जाएगा कि इस संबंध में किसी भी कोर्ट में कोई अर्जी लंबित नहीं है
- प्रधानी जैन मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में तय व्यवस्था का पालन होगा जो कहती है कि एक एफआईआर में शामिल सभी अभियुक्तों की जमानत अर्जियां एक ही न्यायाधीश के समक्ष सुनवाई के लिए लगेंगी
- जमानत अर्जी में सबसे ऊपर यह लिखा जाएगा कि यह जमानत अर्जी पहली है या दूसरी, तीसरी या कितने नंबर की है, ताकि कोर्ट को मामले में पेश दलीलों और तथ्यों को समझने में आसानी रहे
- कोर्ट की रजिस्ट्री भी जमानत अर्जी के साथ उस मामले में लंबित या निर्णीत अर्जियों का रिकार्ड सिस्टम से निकाल कर साथ संलग्न करेगी। यहां तक कि निजी शिकायत के मामलों में भी यही प्रक्रिया अपनाई जाएगी।
- जांच अधिकारी की यह जिम्मेदारी होगी कि वह सरकारी वकील को उस मामले में आए अन्य आदेशों और जमानत आदेशों की जानकारी देगा।