कर्मचारियों के वेतन और पेंशन का भुगतान न करने पर एमसीडी को मिली फटकार…

नई दिल्ली। कर्मचारियों के वेतन और सातवें केंद्रीय वेतन आयोग (सीपीसी) की सिफारिशों के तहत बकाया पेंशन भुगतान के मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली नगर निगम को फटकार लगाते हुए कहा कि अगर एमसीडी की जेब में कर्मचारियों को वेतन देने के पैसे नहीं हैं, तो राजधानी में सड़कों, अस्पतालों व विकास गतिविधियों की देखभाल कैसे करेगी?

अदालत ने कहा, आप (दिल्ली सरकार) कहते हैं कि केंद्र सरकार को भुगतान करना होगा, लेकिन अगर आप भुगतान नहीं करेंगे तो उन्हें (कर्मचारियों को) नुकसान होगा। कर्मचारी ऐसे व्यक्ति नहीं हैं, जिन्हें किसी आतंकवादी समूह ने बंधक बना रखा है और उनके लिए कोई फिरौती देने को तैयार नहीं है। उन्हें वेतन दिया जाना है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ के समक्ष एमसीडी ने कहा कि कर्मचारियों को इस साल जनवरी तक के वेतन और पेंशन का भुगतान कर दिया गया है।

आश्वासन दिया कि फरवरी के वेतन और पेंशन का भुगतान 10 दिन के भीतर किया जाएगा। उन्होंने कर्मचारियों को सीपीसी का बकाया भुगतान करने के लिए और समय मांगा था। एमसीडी के तर्कों पर पीठ ने कहा, इस मुद्दे को आपस में सुलझाएं और नगर निकाय को वित्तीय रूप से व्यवहार्य बनाएं। अगर, आप समस्या को हल नहीं करेंगे तो अदालत इसे भंग कर देगी।

पीठ ने कहा कि पिछले सात साल से अदालत मामले पर सुनवाई कर रही है और अब आगे ऐसा नहीं होगा। अदालत ने कहा, कर्मचारी फिरौती नहीं, अपना वेतन मांग रहे हैं। अदालत ने कहा कि यदि आप अपना कामकाज ठीक नहीं कर सकते हैं तो अदालत की राय है कि एक नई व्यवस्था की जरूरत है और यह (एमसीडी) भंग हो जाएगी। अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि सीपीसी के लाभों का भुगतान न करने पर जेल जा सकते हैं और एमसीडी के सिर्फ अधिकारी होने का यह मतलब नहीं है कि वे जिम्मेदार नहीं होंगे।

अदालत ने कहा कि अयोग्य लोगों को बताना होगा कि उनके लिए कोई गुंजाइश नहीं है। अदालत ने आपको सात साल का समय दिया लेकिन आप इसके लिए तैयार नहीं हैं। अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि कर्मचारियों को कब भुगतान करेंगे। आपको समय पर भुगतान करना होगा। अदालत ने एमसीडी को सीपीसी के बकाया भुगतान के मुद्दे को हल करने और बकाया राशि स्पष्ट रूप से बताते हुए हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। अगली सुनवाई 28 मार्च को होगी।

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