आजादी के बाद से 2024 में पहली बार हाथ का चिन्ह मण्डल से ईबीएम से गायव

बरेली/बदायूं। मंडल की लोकसभा सीटों के चुनाव में इस बार ईवीएम पर हाथ का चिह्न नहीं होगा। आजादी के बाद यह पहला मौका है जब कांग्रेस प्रत्यक्ष तौर पर इन सीटों पर चुनावी मैदान में नहीं है। गठबंधन की सियासत में पहली बार बरेली मंडल की पांच सीटों सहित लखीमपुर खीरी व धौरहरा लोकसभा पर ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) में हाथ का सिंबल नहीं होगा। आजादी के बाद यह पहला मौका है जब कांग्रेस प्रत्यक्ष तौर पर इन सीटों पर चुनावी मैदान में नहीं है। बरेली मंडल की पांचों और खीरी की दो लोकसभा सीटों पर गठबंधन के तहत सपा के उम्मीदवार ताल ठोंक रहे हैं। ऐसे में यहां सपा के साथ कांग्रेस के कार्यकर्ता पूरी ताकत से जुटे हैं। बरेली मंडल की सभी लोकसभा सीट पर आजादी के बाद लंबे समय तक कांग्रेस का कब्जा रहा था। वर्ष 2009 में अंतिम बार बरेली और धौरहरा सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद कांग्रेस का जनाधार भी लगातार कम होता गया है।

बदायूं संसदीय क्षेत्र से पांच वार एतिहासिक जीत हुई
बदायूं ।लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने पांच बार चुनाव जीतकर सबसे ज्यादा समय तक कब्जा जमाने का रिकॉर्ड भी बनाया। आजादी के बाद हुए चुनाव में पार्टी लगातार दो बार जीती। यहां वर्ष 1984 में अंतिम बार कांग्रेस जीती थी। बाद में सांसद सलीम इकबाल शेरवानी ने अगला चुनाव समाजवादी पार्टी के सिंबल पर लड़ा था। इसके बाद कांग्रेस यहां नहीं लौट पाई।

बरेली में कांग्रेस आठ बार हाथ के चिन्ह से जीत कर इतिहास रचा था
बरेली लोकसभा सीट पर आजादी के बाद कांग्रेस ने आठ बार जीत दर्ज की। यहां कांग्रेस के सतीश चंद्र पहले सांसद बने और दो कार्यकाल पूरे किए। वर्ष 1971 में कांग्रेस ने यहां वापसी की, मगर इमजरेंसी के बाद बदले हालात में सीट जनता पाटी के खाते में चली गई। वर्ष 1981 और 1984 में कांग्रेस की बेगम आबिदा अहमद दिल्ली पहुंची थीं। यहां अंतिम बार वर्ष 2009 में कांग्रेस के प्रवीण सिंह ऐरन ने जीत दर्ज की थी।

आंवला से तीन बार जीते कांग्रेस के चिन्ह पर हुई थी जीत
आंवला लोकसभा सीट पर कांग्रेस तीन बार जीत दर्ज करने में सफल रही। यहां पहली बार वर्ष 1967 में सावित्री देवी जीती थीं और अगला चुनाव भी उन्होंने अपने नाम किया था। वर्ष 1984 में अंतिम बार यहां कल्याण सिंह सोलंकी ने कांग्रेस को जीत दिलाई थी। इसके बाद कांग्रेस इस सीट पर जीत दर्ज नहीं कर सकी।

चार दशक से दूर हुई पीलीभीत सीट
पीलीभीत सीट पर कांग्रेस महज चार बार चुनाव जीतने में सफल रही है। यहां पहला चुनाव कांग्रेस के मुकुंद लाल अग्रवाल ने जीता था। इसके बाद वर्ष 1971, 1980, 1984 में भी पार्टी जीत हासिल करने में सफल रही। हालांकि वर्ष 1989 में मेनका गांधी ने यह सीट कांग्रेस से छीन ली थी। तब से अब तक सपा को इस सीट पर जीत नसीब नहीं हो सकी।

शाहजहांपुर में सबसे ज्यादा बार दर्ज की जीत
शाहजहांपुर सीट पर सबसे ज्यादा छह बार कांग्रेस को जीत मिली है। पीलीभीत से भाजपा प्रत्याशी जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद यहां से चार बार सांसद रहे और जितिन प्रसाद भी वर्ष 2004 में यहां से जीते थे। यही इस सीट पर कांग्रेस की अंतिम जीत थी।

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