श्रीमद् भागवत कथा सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती हैं. मुरली मनोहर

ग्राम नरौली में हो रही साप्ताहिक ज्ञान यज्ञ के समापन पर मनाया गया उत्सव जमकर नाचे श्रोता

हैदरगढ़ बाराबंकी| नरौली गांव में साप्ताहिक ज्ञान यज्ञ महापुराण श्रीमद्भागवत के समापन के दिन कथा व्यास मुरली मनोहर शास्त्री जी ने श्रीमद्भागवत पुराण को मोक्ष का ग्रंथ बताते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत पुराण कथा सुनने से जीव को सांसारिक जीवन से जीवन काल में ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महाराज परीक्षित को कथा का सार और उनकी जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए शुकदेव जी कहते हैं -अपने आत्म को भगवान से अभिन्न समझना ही मुक्ति है।जीवन में कोई इच्छा न रहे अपनी आत्मा में स्थिर रहे यह भी मुक्ति ही है।जीव को मुक्ति का अनुभव जीते जी कर लेना चाहिए।
शास्त्री जी ने चार प्रकार की मुक्ति का उल्लेख करते हुए कहा कि मुक्ति के चार भेद हैं -सालोक्य,सामीप्य,सारुप्य और एकत्तव।सालोक्य भगवान के लोक में रहना,सामीप्य भगवान के समीप में रहने का सौभाग्य, सारुप्य के अन्तर्गत भगवान के स्वरूप को प्राप्त हो जाना और सायुज्य मुक्ति में भगवान मे लीन हो जाना है।
आज की कथा में व्यासजी ने भगवान के विवाहों की चर्चा करते हुए कहा कि कि भगवान की सोलह हजार एक सौ आठ रानियों में आठ पटरानियां है शेष सोलह हजार एक सौ भौमासुर द्वारा बंदी बनायी गई कन्याएं हैं जिनकी मुक्ति भगवान कृष्ण ने भौमासुर का वध करके उन्हें बंदी गृह से मुक्त कराया था।
आज समापन के दिन भारी संख्या में भक्तगण उपस्थित रहे मुख्य यजमान भवानी प्रसाद मिश्र, धर्मेंद्र मिश्रा, ब्रजेश मिश्रा,संजय सिंह, भूपेंद्र मिश्र,ध्रुव तिवारी, सुशील तिवारी, संतोष तिवारी,अनिल तिवारी,श्रीमद् भागवत कथा सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती हैं. मुरली मनोहर

ग्राम नरौली में हो रही साप्ताहिक ज्ञान यज्ञ के समापन पर मनाया गया उत्सव जमकर नाचे श्रोता

हैदरगढ़ बाराबंकी नरौली गांव में साप्ताहिक ज्ञान यज्ञ महापुराण श्रीमद्भागवत के समापन के दिन कथा व्यास मुरली मनोहर शास्त्री जी ने श्रीमद्भागवत पुराण को मोक्ष का ग्रंथ बताते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत पुराण कथा सुनने से जीव को सांसारिक जीवन से जीवन काल में ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महाराज परीक्षित को कथा का सार और उनकी जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए शुकदेव जी कहते हैं -अपने आत्म को भगवान से अभिन्न समझना ही मुक्ति है।जीवन में कोई इच्छा न रहे अपनी आत्मा में स्थिर रहे यह भी मुक्ति ही है।जीव को मुक्ति का अनुभव जीते जी कर लेना चाहिए।
शास्त्री जी ने चार प्रकार की मुक्ति का उल्लेख करते हुए कहा कि मुक्ति के चार भेद हैं -सालोक्य,सामीप्य,सारुप्य और एकत्तव।सालोक्य भगवान के लोक में रहना,सामीप्य भगवान के समीप में रहने का सौभाग्य, सारुप्य के अन्तर्गत भगवान के स्वरूप को प्राप्त हो जाना और सायुज्य मुक्ति में भगवान मे लीन हो जाना है।
आज की कथा में व्यासजी ने भगवान के विवाहों की चर्चा करते हुए कहा कि कि भगवान की सोलह हजार एक सौ आठ रानियों में आठ पटरानियां है शेष सोलह हजार एक सौ भौमासुर द्वारा बंदी बनायी गई कन्याएं हैं जिनकी मुक्ति भगवान कृष्ण ने भौमासुर का वध करके उन्हें बंदी गृह से मुक्त कराया था।
आज समापन के दिन भारी संख्या में भक्तगण उपस्थित रहे मुख्य यजमान भवानी प्रसाद मिश्र, धर्मेंद्र मिश्रा, डॉ राम बहादुर मिश्रा ब्रजेश मिश्रा,संजय सिंह, भूपेंद्र मिश्र,ध्रुव तिवारी, सुशील तिवारी, संतोष तिवारी,अनिल तिवारी, हरिशंकर मिश्र,रामभीख त्रिवेदी, ओमप्रकाश अवस्थी, अभिषेक मिश्रा राहुल, सुधीर मिश्रा, नंदकुमार मिश्र, नंदकिशोर मिश्र, परशुराम यादव, शिवकुमार तिवारी,अमित ओझा,शिवप्रसाद त्रिपाठी आदि भक्तगण उपस्थित रहे। हरिशंकर मिश्र,रामभीख त्रिवेदी, ओमप्रकाश अवस्थी, अभिषेक मिश्रा राहुल, सुधीर मिश्रा, नंदकुमार मिश्र, नंदकिशोर मिश्र, परशुराम यादव, शिवकुमार तिवारी,अमित ओझा,शिवप्रसाद त्रिपाठी आदि भक्तगण उपस्थित रहे।

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