- नवंबर एवं दिसंबर माह में गुजिया एवं मिज कीट का प्रकोप शुरू होता है
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के बीकेटी,माल,मलिहाबाद सहित अन्य विकासखंडों में खेती के बाद बागवानी ही किसानों की आय का सबसे बड़ा ज़रिया है। और इसमें भी फल उत्पादन के तहत आने वाले क्षेत्र के तक़रीबन एक तिहाई भाग में, आम की बागवानी है। आपको लखनऊ सहित प्रदेश के, किसी भी हिस्से में, आम के छोटे-बड़े बाग ज़रूर मिल जाएंगे जिनमें कई अलग-अलग किस्मों के आम के पेड़ लगे होते हैं।अभी इन पेड़ों में नई टहनियां और पत्तियां बन रही हैं। इन्हीं नई पत्तियों और टहनियों पर मंजर लगते हैं। मगर आम का खतरनाक मिज कीट एवं गुजिया कीट का हमला करने का वक्त है, जो आम के बागवानी को काफी हानि पहुंचा सकते हैं। इस कीट के अधिक प्रकोप से आम के बौर और फलन नहीं हो पाती है। इसलिए, आम के बागों को इस हानिकारक कीट से बचाने के लिए सतर्क रहना जरूरी है, नहीं तो थोड़ी सी लापरवाही आम के उत्पाद में कमी का कारण बन सकती है।
जिला उद्यान अधिकारी बैजनाथ सिंह ने बताया कि नवंबर से लेकर दिसंबर माह में गुजिया एवं मिज कीट का प्रकोप शुरू होता है। जिससे फसल को काफी क्षति पहुंचती है। कीट को नियंत्रण के लिए बागों की जुताई- गुड़ाई करने समय से कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करना चाहिए। फेनिट्रोथियान 50 ईसी 1.0 मिलीलीटर अथवा डायजिनान 20 ईसी 2.0 मिलीलीटर अथवा डायमेथोएट 30 ईसी 1.5 मिली दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर बोर निकलने की अवस्था पर एक छिड़काव करें।उन्होंने यह भी बताया कि गुजिया कीट के शिशु जमीन से निकल कर पेड़ों पर चढ़ते हैं। मुलायम पत्तियों, मंजरियों एवं फलों से रस चूसकर क्षति पहुंचाते हैं। शिशु कीट 1-2 मिमी लंबे एवं हल्के गुलाबी रंग के चपटे तथा मादा वयस्क कीट सफेद रंग के पंखहीन एवं चपटे होते हैं। दिसंबर के अंतिम या जनवरी के प्रथम सप्ताह से 15-15 दिन के अंतर पर दो बार क्लोरीपाइरीफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 250 ग्राम प्रति पेड़ के हिसाब से तने के चारों ओर डालना चाहिए। अधिक प्रकोप की स्थिति में यदि कीट पेड़ों पर चढ़ जाते हैं तो ऐसी दशा में मोनोक्रोटोफॉस 36 ईसी 1.0 मिली अथवा डायमेथोएट 30 ईसी 2.0 मिली दवा को प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।