भू-माफियाओं और राजस्व कर्मियों की सांठगांठ कामयाब, पीड़ित ने लगाई न्याय की गुहार
बाराबंकी। तहसील नवाबगंज के अतिरिक्त मजिस्ट्रेट प्रथम के न्यायालय से जारी होने वाले स्थगन आदेशों का पालन नहीं हो रहा है। न्यायालय से स्थगन आदेशों की अवहेलना राजस्व कर्मियों और कथित भू माफियाओं के लिए मजाक बनकर रह गए हैं। लोग कोर्ट का आदेश लेकर दर-दर भटक रहे हैं। पर उसका अनुपालन राजस्व विभाग की लापरवाही के कारण नहीं हो पा रहा है। बताते चलें कि बीते 12 जनवरी 2024 को अतिक्रमण व विवादित भूमि के मामलों में शिकायत पर तहसील नवाबगंज के अतिरिक्त मजिस्टेªट प्रथम के न्यायालय की ओर से स्थगन आदेश जारी किए जाते हैं। स्थगन आदेश जारी होने के बाद भी उक्त स्थानों पर मिट्टी पटाई और मार्बल का ढेर लगवा दिया गया। इसकी शिकायत के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हा रही है। विदित हो कि नगर पालिका क्षेत्र के ओबरी स्थित गाटा संख्या 602/1 रकबा 0.253 हे. व 602/2 रकबा 0.481 हे. भूमि विवाद 1981 से राजस्व न्यायालय में लम्बित है। उक्त भूमि को 10 सितम्बर 1940 में मोहम्मद सिद्दीक एडवोकेट ने आरजू बेगम पत्नी शेख जैनुल इबाब को बेचा। जिसे आरजू बेगम ने 14 मार्च 1944 को महाराज कुमार मोहम्मद महमूद हसन खान महमूदाबाद को रजिस्टर्ड बैनामा किया। जिस पर राजा साहब ने एक बड़े भवन का निर्माण कराया। कुछ समय बाद राजा साहब लखनऊ रहने लगे और कालान्तर में भवन धीरे-धीरे जमींदोज हो गया।
1952 में जमींदारी समाप्ति के बाद राजस्व कर्मियों ने उक्त भूमि बाबूलाल को पट्टा कर दिया। जिस पटटे को न्यायालय ने निरस्त कर दिया। इसके बाद महाराज कुमार मोहम्मद महमूद हसन खान ने भूमि का दाखिल खारिज कराकर अपने नाम किया। जो भू अभिलेखों पर दर्ज है। कुछ वर्षों बाद महाराज कुमार मोहम्मद महमूद हसन खान ने 08 मई 1981 को उक्त भूखंड इन्दिरा शर्मा के नाम रजिस्टर्ड बैनामा किया। जिस भूमि पर श्रीमती शर्मा बैनामा के आधार पर स्वामित्व और कब्जा बना हुआ है। इसी बीच पाकिस्तान से आए शरणार्थी जीवनदास का नाम कुछ प्रभावशाली लोगों ने उपरोक्त भूमि पर दर्ज कर दिया। जिस पर कार्रवाई करते हुए अतिरिक्त जिलाधिकारी ने 15 दिसंबर 1982 को जीवनदास का नाम खारिज कर दिया। कुछ समय बाद जब जीवनदास की मृत्यु हुई तब राजस्व निरीक्षक व लेखपाल ने गलत तरीके से मृतक जीवनदास की पत्नी सुमित्रा देवी का नाम जरिये पाका 11 भू अभिलेखों पर दर्ज कर लिया। जिसे निरस्त कराने के लिए पीड़िता इन्दिरा शर्मा ने शासन व प्रशासन के उच्चाधिकारियों से शिकायत की। जिसे गम्भीरता से लेते हुए अपर आयुक्त अयोध्या ने 2006 में जांचोपरान्त यह पाया कि जीवनदास का नाम गलत एवं आधारहीन है। ऐसा करने वाले राजस्व कर्मियों पर कार्रवाई होनी चाहिए। यह आदेश जब अलमदरामद के लिए तहसील पहुंचा। तो राजस्व कर्मियों ने इस आदेश पर कोई कार्रवाई नहीं की। इसी बीच कृष्ण कुमार तथा सुरेन्द्र नाथ के पक्ष में सुमित्रा देवी ने बैनामा कर दिया। जिसके दाखिल खारिज में तथ्यों को छिपा कर दाखिल खारिज करा लिया।
भूमि स्वामिनी ने इस कारनामे को भू-माफिया की सांठगांठ से राजस्व अधिकारियों पर आरोप लगाया है। उनका कहना है कि कुछ भू माफियाओं और राजस्व कर्मियों की सांठ गांठ से उक्त भूमि का क्रय विक्रय होता गया। ताज्जुब की बात यह है कि अतिरिक्त मजिस्ट्रेट प्रथम के न्यायालय से जारी होने वाले स्थगन आदेशों का पालन नहीं हो रहा है। जिस पर उन्होंने साफ तौर पर लिखा है कि विवादित भूमि के क्रय विक्रय पर दौरान मुकदमा रोक लगाई जाती है तथा मौके पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। इसके बाद भी उक्त भूमि पर मिट्टी पटाई और मार्बल उतारा गया।