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नई दिल्ली। नेशनल गर्ल चाइल्ड डे, जो हर साल 24 जनवरी को मनाया जाता है। इसके माध्यम से लोगों में जेंडर इक्वेलिटी को लेकर जागरूकता पैदा करने का प्रयास किया जाता है। हालांकि अब धीरे-धीरे स्थिति बदल रही है। पिछले कुछ सालों में लड़कियों के हित में कई सारी योजनाएं शुरू की गई हैं। जो उन्हें आगे बढ़ाने का काम कर रही हैं, लेकिन इसमें और ज्यादा योगदान की जरूरत है। जिसके लिए पेरेंट्स को आगे होना होगा। जी हां, अगर आप बेटी के माता-पिता हैं, तो कैसे उनकी परवरिश करनी है, इस पर ध्यान देना होगा। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ पेरेंटिंग टिप्स के बारे में।
बेटे और बेटियों में फर्क करना
बेटे और बेटियों में फर्क परवरिश के दौरान की जाने वाली सबसे बड़ी गलती है। आज के मॉर्डन जमाने में भी ऐसी कई फैमिलीज़ देखने को मिल जाएंगी, जहां बेटों को प्रियोरिटी दी जाती है और बेटियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता। इससे बेटियों के मेंटल हेल्थ पर बुरा असर पड़ता है। वहीं अगर आप ये फर्क नहीं करते, तो इससे बच्चों में पॉजिटिव प्रभाव देखने को मिलते हैं।
लड़कियों पर पाबंदियां लगाना
जिन घरों में बेटियों को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता वहां पेरेंट्स उन पर कई तरह की पाबंदियां लगाकर रखते हैं। किस तरह से स्कूल जाना है, कैसे खेलना है, कैसे पहनना है, ज्यादा हंसना नहीं है, ज्यादा बोलना नहीं जैसी चीज़ें। वहीं बेटे एकदम फ्री रहते हैं। ये सारी चीज़ें बच्चियों के विकास में बाधा बन सकती हैं। उनके अंदर डर और झूठ बोलने जैसी आदतें विकसित हो सकती हैं।
बोलने की आजादी न देना
आज भी ऐसी कई जगहें हैं, जहां बेटियों को बोलने की आजादी नहीं होती, ये बिल्कुल भी सही नहीं। इससे कई बार बच्चियां शोषण का शिकार होती रहती हैं, लेकिन इस बार में किसी को बता नहीं पाती। बचपन की ये आदत बड़े होने पर भी उन्हें झेलनी पड़ती है। घरेलू हिंसा और अब्यूज़ सहती रहती हैं, लेकिन आवाज उठाने से डरती हैं।
बेटे और बेटी में तुलना करना
कई सारे पेरेंट्स बेटों से बेटियों की तुलना करने लगते हैं। हर समय उनकी कमियां गिनाते हैं। कुछ अच्छा करने पर प्रोत्साहित भी नहीं करते। दूसरों से तुलना करने पर लड़कियों का स्वाभिमान आहत होता है। वो काबिल होने के बावजूद खुद को कमजोर समझने लगती हैं। जिंदगी में कुछ करने की चाह भी कई बार इस तुलना से मर जाती है।
खेलने को सिर्फ गुड्डे-गुड़िया देना
लड़कियों को खेलने के लिए बचपन में गुड्डे-गुड़ियों का ही ऑप्शन मिलता है वहीं लड़के के पास कई सारे ऑप्शन्स होते हैं। ये भी लड़के-लड़कियों के बीच भेदभाव क्रिएट करने का काम करता है। बेशक लड़कियां, लड़कों की तुलना में सॉफ्ट होती हैं, लेकिन उन्हें स्ट्रॉन्ग बनाने की शुरुआत पेरेंट्स को ही करनी होगी। उन्हें भी आउटडोर गेम्स खेलने के लिए प्रोत्साहित करें।